Hindi mein nibandh mahapralaya
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बाढ़ यानि जल प्रलय: बाढ़ क्यों और कैसे आया करती है ? इसका प्राकृतिक कारण तो वर्षा का आवश्यकता से अधिक होना ही माना जाता है । पर कभी-कभी किसी नदी या बाँध आदि में दरारें पड़ने या टूटने के कारण तीव्र जल बहाव से प्रलय का सा दृश्य उपस्थित हो जाता है ।
जल प्रलय या बाढ़ का कारण चाहे प्राकृतिक हो या अप्प्राकृतिक । इस बात का स्मरण आते ही रोंगटे खड़े होने लगते हैं कि जल प्रलय में बह या डूब रहे मनुष्य अथवा पशु आदि की उस समय मानसिक दशा कैसी भयावह हुआ करती होगी । डुबने वाला किसी भी तरह बच पाने के लिए कितना सोचता और हाथ-पैर मारता होगा । इस बात की कल्पना तक कर पाना सहज नहीं ।
विगत वर्षों में मुझे बाढ़ से फिर बच आने और उसकी भयावह मारक दृश्य देखने का एक अवसर मिला था । उस सब को सोच कर आज भी कंपकंपी छूट जाती है । वरसात का मौसम था । चारों ओर वर्षा होने के समाचार आ रहे थे । दिल्ली में विगत कइ दिनों से लगातार वर्षा होती रही थी ।
लगातार वर्षा के कारण शहर और उसके आस-पास जल-निकासी के लिए जितने भी नाले आदि बनाए गये थे, वे सब लबालब भर गए थे । नजफगढ़ नाला अपने किनारों के ऊपर तक बहने लगा था । तब हम लोग पंजाबी बाग के ही नाले के पास बने एक भाग में डी.डी.ए. द्वारा बनाए गए क्वार्टरों में रहा करते थे ।
एक रोज शाम के समय देखा कि नालियों का पानी बाहर जाने के बजाए वापिस घरों में चला आ रहा है । इसका अर्थ अभिप्राय कुछ न समझ हम लोग यह सोच कर रात को निश्चित होकर सो गए कि वर्षा का जोर थमते ही पानी अपने आप निकल जाएगा ।
हम लोग सो रहे थे और पानी के निकास करने वाले सभी नाले लबालब भरे थे, इसलिये पानी वापिस ‘आकर घरों के आगन में, फिर कमरों में भरता रहा ? उस समय आधी रात से अधिक समय हो चुका होगा कि जब उन क्वार्टरों में चारों ओर ‘बाढ़-बाढ़’ का स्वर गूंजने लगा । हड़बड़ी में उठकर हम लोगों ने जब पांव धरती पर रखने चाहे, तो वे घुटनों से ऊपर तक भर चुके पानी में पड़े । बिजली जाने से गुप्पत अंधेरा हो गया था । घर का सारा सामान प्राय: डूब चुका था ।
जो हल्का था वह वहीं इधर-उधर टकरा कर कहीं बाहर निकल जाने को बैचेन हो रहा था । चारों ओर का शोर उसमें पानी का शोर भी सम्मिलित था, जो निरन्तर बढ़ता जा रहा था । हड़बड़ी में परिवार के सदस्यों ने एक-दूसरे के हाथ थाम कर दरवाजा खोला तो पानी गन्ध मार रहा था ।
सिर-मुँह सभी कुछ पानी के उफान से भीग गया । गोद में उठाये बच्चे पानी की मार से चीख उठे देखते ही देखते पानी का स्तर कमर से ऊपर उठने लगा । बड़ी मुश्किल से ऊपर जाने की सीढ़ी तक पहुँचे, पानी से संघर्ष करते हुए हम छत पर पहुँचे । मुड़कर देखा, लगा कि जैसे पानी भी सीढियाँ चढ़ता हुआ हमारा पीछा कर रहा है ।
राम-राम करते, एक दूसरे की तरफ निरीह आँखों से देखते हुए हम लोग अन्धेरे में छत पर ही बैठे रहे । हमने अनुभव किया कि हमारी तरह आस-पास के सभी लोग भी छत पर जाकर किसी-न-किसी उद्धारक का नाम लेकर पुकार रहे हैं । सुबह पौ फटते ही हमने देखा कि किश्तियों में बैठे कुछ स्वयंसेवक, सैनिक आदि हमारी तरफ बड़े आ रहे हैं ।
दिन उजाले में वह सारा दृश्य और भी भयावह लग रहा था । नावों में आए सहायता दल अपने साथ खाने-पीने का सामान तो लेकर आए ही थे और कुछ ही समय वाद कुछ हेलीकॉप्टर सैनिकों से भरे हुए हमारे ऊपर मंडरा रहे थे और बाढ़ में फंसे हुए लोगों को सीढ़ी डालकर निकाल रहे थे । हमने भी उनके साथ वहाँ से निकल जाना ही उचित समझा ।
कुछ आवश्यक सामान वहाँ से निकाल एक दिन सूखे राहत कैम्प में और उसके बाद अपने ननिहाल में शरण लेनी पड़ी । उस बाढ़ में गए साजो-सामान की भरपाई तो आज तक भी सम्भव नहीं हो पाई । ऐसा होता है जल-प्रलय ।