Hindi nibandh on bhshtachar
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भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ होता है – आचार से अलग या भ्रष्ट होना। अत: यह भी कहा जाता है कि समाज स्वीकृत आचार संहिता की अवहेलना करके दूसरों को कष्ट पहुँचाकर अपने निजी स्वार्थों और इच्छाओं को पूरा करना ही भ्रष्टाचार कहलाता है। अगर दूसरे शब्दों में कहा जाये तो भ्रष्टाचार वह निंदनीय आचरण होता है जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य अपने कर्तव्य को भूलकर अनुचित रूप से लाभ प्राप्त करने का प्रयास करने लगता है।
भाई-भतीजावाद, बेरोजगारी, गरीबी इसके दुष्परिणाम हैं जो लोगों को भ्रष्टाचार की वजह से भोगने पड़ते हैं। जो मनुष्य का दुराचार होता है वहीं पर यह अपना व्यापक रूप धारण करके भ्रष्टाचार की जगह को ग्रहण कर लेता है। कुछ लोग भ्रष्टाचार को बहुत ही संकुचित अर्थों में समझाते हैं।
अगर मैं अपने विचारों को व्यक्त करूं तो भ्रष्टाचार वह बुराई होती है जो समाज को अंदर-ही-अंदर खोखला करती रहती है। वास्तव में भ्रष्टाचार की स्थिति भी एक राक्षस की तरह होती है जिसमें काला बाजार उनका दूषित ह्रदय होता है और मिलावट होता है उनका पेट।
रिश्वत भ्रष्टाचार के हाथ हैं और व्यवहार और अनादर इसके पैर हैं, सिफारिश इसकी जीभ है तो शोषण इसके कठोर दांत हैं। यह राक्षस बेईमानी की आँखों से देखता है और कुनबापरस्ती कानों से सभी को सुनता है और अन्याय की नाक से सूँघता है। जब भ्रष्टाचार रूपी राक्षस अपना रूप धारण करके निकलता है तो समाज रूपी देवता भी घबरा जाता है।