Hindi, asked by aditya388119, 8 months ago

Hindi Nibandh on khan pan ki basalt shiki ke dushparinam​

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Answered by drsushmadevi
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बहुत समय तक भारत में शाकाहारी लोगों की संख्या अधिक थी‚ शराब का चलन हिन्दू‚ सिख और मुस्लिम सभी में निषिद्ध ही था। भोजन में हमेशा दाल‚ चावल‚ रोटी सब्जी‚ दही या छाछ और सलाद एक आम व्यक्ति को भी सहज सुलभ था। सब्जियाँ सस्ती थीं और मौसमी फलों के भाव आम जन की पहुँच में थे। और गाँवों में तो खेत की पैदावार हो या मक्खन निकाली छाछ हमेशा आस–पास में बाँटी जाती थी। नाश्ते में नमक अजवाईन के परांठे पर मक्खन की डली रख कर खाने वाले मेहनती भारतीय नागरिक या ग्रामीण उच्च रक्तचाप के शिकार न थे। मिठाईयाँ भी तब बस त्यौहारों पर बनतीं वह भी गृहणियों के नपेतुले हाथों।

अब यह हाल है कि पिछले बारह सालों में शहरों में उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों की संख्या‚ करीब चौगुनी हो गई है। यह चौंकाने वाली बात थी। इस विषय पर कुछ दिशानिर्दशों की आवश्यकता महसूस की गई। अभी कुछ समय पूर्व ही द एसोसिएशन ऑफ फीजीशियन्स ऑफ इण्डिया‚ कार्डियोलॉजी सोसायटी और द हाइपरटेन्शन सोसायटी ने मिलकर अपने स्तर पर दो वर्ष से अधिक का समय लगा कर भारतीय परिस्थितियों‚ बदलती भारतीय जीवन शैली को ध्यान में रख कर दिशानिर्देशों की एक सूची तैयार की है।

रक्त का सामान्य दबाव एक सहज बात है जिसकी वजह से रक्त शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचता है। हृदय एक पम्प की तरह काम करता है‚ जब दिल धड़कता है तो वह धमनियों तक रक्त प्रवाहित करता है‚ धमनियों में इस वजह से पैदा होने वाले सर्वाधिक दबाव को सिस्टोलिक प्रेशर कहते हैं। और जब दो बार दिल धड़कने के बीच के समय में धमनियों में जो दबाव होता है वह डायस्टोलिक प्रेशर कहलाता है। रक्तचाप के मापने का उपर वाली संख्या सिस्टोलिक प्रेशर तथा नीचे वाली संख्या डायस्टोलिक प्रेशर के माप को दर्शाती है। रक्तचाप की आदर्श स्थिति र्है 120/80 इससे उपर खतरे की सीमा है।

अभी तक भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन और इन्तरनेशनल सोसायटी ऑफ हायपर टेन्शन की ओर से जारी दिशानिर्देश ही प्रचलित थे। किन्तु अब इन नए भारतीय दिशा निर्देशों में भारतीय जलवायु‚ खानपान‚ जीवनशैली‚ उपलब्ध दवाओं और संस्कृति को ध्यान में रखा गया है। भारत की विभिन्न जलवायु और संस्कृति की विभिन्नता को भी सामने रखा गया।

ये दिशानिर्देश चाहे चिकित्सकों के लिये हों पर आम आदमी को भी इनसे वाकिफ होना चाहिये। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात कि उच्च रक्चाप से प्रभावित होने के लिये कोई आयु निश्चित नहीं। न ये समाज के किसी खास वर्ग के लिये है। यह किसी भी वर्ग‚ आयु और किसी भी स्त्री–पुरुष को प्रभावित कर सकता है। मोटापा और मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों में इसकी संभावना बहुत अधिक होती है। ए पी आई के पूर्व अध्यक्ष श्री मुंजाल कहते हैं – ''उच्चरक्तचाप का पता करना तो बहुत आसान है किन्तु फिर भी दुनिया भर में 100 में से केवल 25 रोगियों का ही पता लग पाता है।'' वे यह भी कहते हैं कि – कमर का माप 40 से अधिक होते ही खतरा बढ़ जाता है। और गर्भवती महिलाओं में अध्ययन के बाद यह पता चला कि 100 में से 5 उच्चरक्तचाप से प्रभावित होती हैं और यह ही प्रसव के दौरान और बाद में उनकी मृत्यु की वजह बन सकता है।''

इस रोग का परहेज और इलाज दोनों हमारी जीवन शैली से जुड़ा हुआ है। मसलन हम कितना शारीरिक श्रम करते हैं और खाते क्या हैं? अगर मोटे होने पर मात्र साढ़े चार किलो वजन घटाने से रक्तचाप में कमी आ सकती है तो इसके लिये हमें तेज कदमों से सैर करने से नहीं कतराना चाहिये। भारतीय दिशानिर्देशों में नमक कम खाने पर ज़ोर दिया गया है। ब्रेड और बेकिंग सोडा युक्त बेकरी आयटमों को कम इस्तेमाल करना चाहिये। भोजन में रेशों से भरपूर अनाजों‚ सब्जियों का प्रयोग बढ़ाना चाहिये।

शाकाहारी लोग मांसाहारी लोगों की अपेक्षा अधिक सुरक्षित हैं। इस तरह से वे सैचुरेटेड फैट कम मात्रा में उपभोग में लाते हैं। मांसाहार में मछली एक अच्छा विकल्प है। इसके अलावा वे सब्जी‚ फलों के जरिये रक्तचाप कम करने में सहायक पोटेशियम की आवश्यक मात्रा ले लेते हैं। सुबह नाश्ते में केले और पपीता खाना फायदेमंद साबित हो सकता है। शराब‚ चाय‚ कॉफी‚ तम्बाकू को अलविदा कहना या कम मात्रा में लेना ही उपयोगी रहेगा।

दिशानिर्देशों में शराब के दो छोटे पैग से ज्यादा कतई नहीं पीना चाहिये। धूम्रपान तो एकदम छोड़ देना ही फायदेमंद है और इसके फायदे आप स्वयं एक साल में ही देख सकते हैं। तो बस आज ही धूम्रपान छोड़ दें और मुझसे एक साल बाद इस विषय पर बात करें। उच्च रक्तचाप से निजात के लिये योग‚ ध्यान और प्राकृतिक चिकित्सा का भी काफी महत्व साबित हो चुका है।

इन दिशानिर्देशों की उपयोगिता महज स्वास्थ्य ही नहीं मरीजों की आर्थिक स्थिति के लिये भी है। इससे भारतीय चिकित्सकों को उपलब्ध व उचित दवाओं की जानकारी भी मिलती है। और स्थान व रोगी की स्थिति के अनुसार दवा की मात्रा का भी उचित निर्धारण किया जा सकता है। एक औसत भारतीय के लिये आयातित दवाएं मँहगी साबित हो सकती हैं‚ जबकि इन दिशानिर्देशों के अनुसार अन्य भारतीय दवाएं भी उतनी ही उपयोगी हैं।

उच्चरक्तचाप की नियमित जाँच एक निश्चित अंतराल में अवश्य कराते रहें। याद रखें स्चस्थ जीवन की कुंजी का रहस्य आपकी स्वस्थ जीवनशैली में ही छिपा है।

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