Hindi, asked by agarwalpayal4839, 1 year ago

hindi paragraph on plastic ki duniya

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Answered by pandeysakshi2003
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आधुनिक समाज में प्लास्टिक मानव-शत्रु के रूप में उभर रहा है। समाज में फैले आतंकवाद से तो छुटकारा पाया जा सकता है, किंतु प्लास्टिक से छुटकारा पाना अत्यंत कठिन है, क्योंकि आज यह हमारे दैनिक उपयोग की वस्तु बन गया है। गृहोपयोगी वस्तुओं से लेकर कृषि, चिकित्सा, भवन-निर्माण, विज्ञान सेना, शिक्षा, मनोरंजन, अंतरिक्ष, अंतरिक्ष कार्यक्रमों और सूचना प्रौद्योगिकी आदि में प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है।

प्लास्टिक एक ग्रीक शब्द प्लास्टीकोस से बना है, जिसका सीधा तात्पर्य है आसानो से नमनीय पदार्थ जो किसी आकार में ढाला जा सके।इस तरह विश्व की तुलना में यह खपत भारत में प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत है। इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट जिसमें EPOXY,प्रिंटेड सर्किट बोर्ड, चप्पल, टी.वी., जबकि ऐसे प्लास्टिक अपशिष्ट की मात्रा विश्व में 7000 टन है।

अपनी विविध विशेषताओं के कारण प्लास्टिक आधुनिक युग का अत्यंत महत्वपूर्ण पदार्थ बन गया है। टिकाऊपन, मनभावन रंगों में उपलब्धता और विविध आकार-प्रकारों में मिलने के कारण प्लास्टिक का प्रयोग आज जीवन के हर क्षेत्र में हो रहा है। बाजार में खरीदारी के लिए रंग-बिरंगें कैरी बैग से लेकर रसोईघर के बर्तन, कृषि के उपकरण, वह भी प्लास्टिक से ही बनाया गया है।

तमाम खूबियों वाला यही प्लास्टिक जब उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है तो यह अन्य कचरों की तरह आसानी के नष्ट नहीं होता। एक लंबे समय तक अपघटित न होने के कारण यह लगातार एकत्रित होता जाता है और अनेक समस्याओं को जन्म देता है। जिन देशों में जितना अधिक प्लास्टिक का उपयोग होता है, वहां समस्या उतनी ही जटिल है। चिंता की बात तो यह है कि प्लास्टिक का उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। जबकि पिछले वर्षों में जो प्लास्टिक कचरे में फेंका गया, वह ज्यों-का-त्यों धरती पर यत्र-तत्र बिखरकर प्रदूषण फैला रहा है। भारत में अभी भी प्लास्टिक का उपयोग विकसित देशों की अपेक्षा काफी कम है, लेकिन इसका प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है।

प्लास्टिक मुख्यतः पैट्रोलियम पदार्थों से निकलने वाले कृत्रिम रेजिन से बनाया जाता है। रेजिन में अमोनिया एवं बेंजीन को मिलाकर प्लास्टिक के मोनोमर बनाए जाते हैं। इसमें क्लोरीन, फ्लुओरिन, कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन एवं सल्फर के अणु होते हैं। लंबे समय तक अपघटित न होने के अलावा भी प्लास्टिक अनेक अन्य प्रभाव छोड़ता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। उदाहरणस्वरूप पाइपों, खिड़कियों और दरवाजों के निर्माण में प्रयुक्त पी.वी.सी. प्लास्टिक विनाइल क्लोराइड के बहुलकीकरण सें बनाया जाता है। रसायन मस्तिष्क एवं यकृत में कैंसर पैदा कर सकता है। मशीनों की पैकिंग बनाने के लिए अत्यंत कठोर पॉलीकार्बोंनेट प्लास्टिक फॉस्जीन बिसफीनॉल यौगिकों के बहुलीकरण से प्राप्त किए जाते हैं। इनमें एक अवयव फॉस्जीन अत्यंत विषैली व दमघोटू गैस है। फार्मेल्डीहाइड अनेक प्रकार के प्लास्टिक के निर्माण में प्रयुक्त होता है। यह रसायन त्वचा पर दाने उत्पन्न कर सकता है। कई दिनों तक इसके संपर्क में बने रहने से दमा तथा सांस संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। प्लास्टिक में लचीलापन पैदा करने के लिए प्लास्टिक-साइजर वर्ग के कार्बनिक यौगिक मिलाए जाते हैं।

प्लास्टिक कचरे को ठिकाने लगाने के लिए अब तक तीन उपाय अपनाए जाते रहे हैं। आमतौर पर प्लास्टिक के न सड़ने की प्रवृति को देखते हुए इसे गड्ढों में भर दिया जाता है। दूसरे उपाय के रूप में इसे जलाया जाता है, लेकिन यह तरीका बहुत प्रदूषणकारी है। प्लास्टिक जलाने से आमतौर पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस नकलती है। उदाहरणस्वरूप, पॉलिस्टीरीन प्लास्टिक को जलाने पर कलोरो-फ्लोरो कार्बन निकलते हैं, जो वायमुंडल की ओजोन परत के लिए नुकसानदायक हैं। इसी प्रकार पॉलिविनायल क्लोराइड को जलाने पर क्लोरीन, नायलान और पॉलियूरेथीन को जलाने पर नाइट्रिक ऑक्साइड जैसी विषाक्त गैसें निकलती हैं।

प्लास्टिक के निपटान का तीसरा और सर्वाधिक चर्चित तरीका प्लास्टिक का पुनःचक्रण है। पुनःचक्रण का मतलब प्लास्टिक अपशिष्ट से पुनः प्लास्टिक प्राप्त करके प्लास्टिक की नई चीजें बनाना।

प्लास्टिक जनित प्रदूषण को रोकने के लिए केंद्र सरकार सहित विभिन्न राज्य सरकारें भी प्रयासरत् हैं और इसे रोकने के लिए कई राज्यों में अधिनियम बनाए जा चुके हैं तो कई राज्यों में इन्हें बनाने की प्रक्रिया चल रही है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र में भी इस संदर्भ में दो अधिनियम बनाए जा चुके हैं। दिल्ली प्लास्टिक थैलियां (विनिर्माण, बिक्री एवं प्रयोग) तथा गैर-जैव अवक्रमित कचरा-करकट (नियंत्र) अधिनियम, 2001। ये अधिनियम 2 अक्टूबर, 2001 से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में लागू हो चुका है और इसके अनुसार 20 माइक्रॉन से कम मोटाई की प्लास्टिक या पॉलीथिन की थैलियों का उत्पादन दिल्ली में नहीं किया जा सकता। उपरोक्त अधिनियमों का उल्लंघन करने पर 3 महीने से एक वर्ष की कैद अथवा 25,000 रूपये तक का जुर्माना अथवा दोनों (कैद व जुर्माना) एक साथ दंड स्वरूप दिए जा सकते हैं। ये अधिनियम मुख्यतः पॉलीथिन व प्लास्टिक की थैलियों का उत्पादन करने वाले निर्माताओं पर लागू होते हैं। हमारे देश में कानूनों की तो कमी नहीं है, कमी है तो बस उन्हें सख्ती से लागू करने की

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Answered by Binanamkabanda
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Plastic aaj kal ek jarrot ban giya hai. Plastic bags, plastic ki kursi, plastic ke dabbe aadi , jesi chijen kahin bhi aam dekhne ko mil jaati hai. Plastic ke bartan aam istemaal kiye jaate hain. Prr plastic ek esa padarath hai jiska upyog bht hanikarak hai, plastic mein parosa giya garam khana, plastic ke sath react krke jehrila khana bna deta hai . plastic ko khatam nhi kiya ja sakta, oor agar jalayein toh bht hanikarak orr jehrila dhuan nikalta hai. Yeeh plastic ki duniya mein se abb plastic ko khatam krne or plastic ka upyog khatam krne ki aveshyakta hai.

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