Hindi, asked by Kanchi123, 1 year ago

Hindi poem aa. Dhrti kitna deti h

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Answered by tanu3199
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मैने छुटपन मे छिपकर पैसे बोये थे 

सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे , 

रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी , 

और, फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूगा ! 

पर बन्जर धरती में एक न अंकुर फूटा , 

बन्ध्या मिट्टी ने एक भी पैसा उगला । 

सपने जाने कहां मिटे , कब धूल हो गये । 
मै हताश हो , बाट जोहता रहा दिनो तक , 

बाल कल्पना के अपलक पांवड़े बिछाकर । 

मै अबोध था, मैने गलत बीज बोये थे , 

ममता को रोपा था , तृष्णा को सींचा था । 

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