Hindi, asked by monicavats2018, 1 year ago

hindi poem based on bal manovigyan​

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Answered by aashijain1500
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Answer:

these are some examples

Explanation:“माँ की चोटी खींच खींचकर,

दिन भर उसे सताता कौन।

दादी का चश्मा, दादा की,

छतरी-छड़ी छुपाता कौन।

दोनों की लाठी बनने को,

कोई भी तैयार न होता।

गर धरती पर इतना प्यारा,

बच्चों का संसार न होता।”1

       कविता किसी भी बाल साहित्य का महत्त्वपूर्ण भाग होती है। बाल साहित्य में कहानियाँ तथा लेख भी होते हैं, पर जो चीज बच्चों के जुबान पर याद रह जाती है, वह कविता है। बचपन में याद की हुई कविता बालक को व्यस्क होने के बाद भी आस्वादन करती रहती है। जैसे -

“बुंदेले हर बोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी।”2

       आज का समाज अतिव्यस्तता से भरा हुआ है। किसी के पास अपने बच्चों तक के लिए समय नहीं है। उनकी मीठी-मीठी तोतली बोली का आनंद लेने की फुरसत किसी के पास नहीं है। नौकरीपेशा माता-पिता के बच्चे अकेलेपन के संत्रास से जुझते रहते हैं। एक छोटी सी बच्ची की मासूम चाह कितनी छोटी, पर तनिक गंभीरता से सोचने पर कितनी मर्मस्पर्शी है, उषा यादव की यह कविता -

“बहुत बुरा लगता है मम्मी,

मुझे तुम्हारा ऑफिस जाना।

घर पर लौटू और उस समय,

दरवाजे पर ताला पाना।

जाने कितनी बातें उस पल,

चाहा करती तुमसे कहना,

माँ, तुम कल घर पर ही रहना।”3

बाल साहित्य की रचना बच्चों की मानसिक एवं बौद्धिक क्षमताओं के अनुसार लिखा जाना चाहिए, जिससे बच्चों के मानसिक प्रशिक्षण के साथ उनके ज्ञान में भी निखार आए। बच्चों की दुनिया हमारी दुनिया से सर्वथा भिन्न होता है। उनके देखने, समझने तथा परखने का नजरिया हमारे नजरिये से भिन्न होता है। इसलिए बच्चों का साहित्य लिखने के लिए बच्चा बनना पड़ता है ताकि उनके स्तर पर उतरकर उनकी भावनाओं, रूचियों तथा उनके मनोविज्ञान के साथ तारतम्य बिठा सके। लल्ली प्रसाद पांडेय के अनुसार-

बाल साहित्य वही लिख सकता है, जो अपने को बच्चों जैसा बना ले। बड़े होकर बच्चा बनना मुश्किल है और उससे भी मुश्किल है बच्चा बनकर उसके अनुकूल लिखना।”4

       

“एक हमारी धरती सबकी/ जिसकी मिट्टी में जनमे हम,

मिली एक ही धूप हमें है/ सींचे गए एक जल से हम,

पले हुए हैं झूल-झूलकर/ पलनों में हम एक पवन के

हम सब सुमन एक उपवन के।”5

“मछली जल की रानी है,

जीवन इसका पानी है।

हाथ लगाओगे तो डर जाएगी,

बाहर निकालोगे तो मर जाएगी।”6

       इसी तरह शिशु के छुट्टी के दिन का कितनी बेशब्री से इंतजार करते हैं इस बालमन को इस कविता में देखा जा सकता है -

“छुट्टी का दिन आया है,

सबके मन को भाया है।

आज न पढ़ने जाएंगे,

दिन भर शोर मचायेंगे।”7

“हृदय हमारे कोमल कोमल / है गुलाब के फूल सरीखे

हमसे दूर रहा करते हैं / द्वेष, दंभ के कांटे तीखे

हम सुगंध की थाती बनकर पुछ रहे हैं -बोलो भाई

हम बच्चों में भेदभाव की किसने यह दीवार बनाई।”8

वैश्वीकरण के इस युग में मध्यम वर्ग के बच्चे अधिक कुंठित है, क्योंकि इस वर्ग के माता-पिता की सबसे बड़ी समस्या यह है कि प्रगति के दौड़ में अपनी महत्वाकांक्षा के चलते बच्चों को महंगे स्कूलों में दाखिला तो करवा देते हैं, लेकिन आज की मंहगाई के दौड़ में स्कूल के नित नए मांगों को पूरी करने में सक्षम नहीं पाते हैं, जिसका असर इन वर्ग के बच्चों की मनःस्थिति पर पड़ता है -

“माता जी झल्लाती रहती, बाबूजी गुस्साते,

नहीं किसी पर वश चलता है, हम पर रोब जमाते।

किसी-किसी दिन तो फोकट में, हम पिट जाते भाई,

दिन पर दिन बढ़ती मंहगाई, कैसी आफत आई।”9

       सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में बच्चों को बाजार पर ज्यादा निर्भर बना रहे हैं। अगर बच्चा कोई प्रशंसनीय कार्य कर लेता है तो उसे प्रोत्साहित करने के लिए मोबाइल, कम्प्युटर लाकर देते हैं या होटल तथा मॉल ले जाते हैं। पांच से बारह वर्ष की आयु ऐसी होती है, जिसमें जो आदत पड़ गई, वह ताउम्र साथ निभाती है। प्रौद्योगिकी की इस अनोखी दुनिया ने बालक की मानसिकता में भी बदलाव ला दिया है। नागेश पांडे की यह कविता देखिए -

“मोबाइल जी, तुम हो सचमुच बड़े काम की चीज़।

गेम, कैमरा, कैलकुलेटर, एफ.एम., इंटरनेट।

कम्प्यूटर भी इसमें आया फिर भी सस्ता रेट।”10

बच्चे जब किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं, उस समय लगभग ग्यारह बारह वर्ष के होते हैं। इस समय तक बच्चे ज्यादा गंभीर तथा तर्कशील हो जाते हैं। मानसिक तथा शारीरिक दोनों ही दृष्टियों से पुष्ठ एवं परिपक्व हो जाते हैं। इसलिए इनके लिए रचित कविताओं में तार्किकता, गंभीरता, सामाजिकता तथा वैज्ञानिकता का समावेश होना आवश्यक है। इस उम्र में बच्चों को कदम-कदम पर भ्रष्टाचार, अत्याचार, अन्याय, प्रतिस्पर्धा, आतंक और अनैतिकता जैसे समस्याओं से जूझना पड़ता है, इसलिए इन चुनौतियों से निपटने के लिए व्यावहारिक तौर पर सामाजिकता तथा राष्ट्रीयता के हित के लिए जो वरेण्य हो, उसे ही कविताओं में समाविष्ट करना चाहिए। रामअवतार त्यागी की कविता ‘समर्पण’ में यह भाव देखा जा सकता है -

मन समर्पित, तन समर्पित,

और यह जीवन समर्पित।

चाहता हूँ देश की धरती,  

तुझे कुछ और भी दूँ।”11

हरिवंशराय बच्चन भी इन उम्र के बच्चों की मानसिकता से अच्छी तरह से परिचित थे। बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी कविता ‘कोशिश करनेवालों की हार नहीं होती’ काफी प्रेरणादायक है।

“नन्हीं चीटी जब दाना लेकर चलती है,

चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।

मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,

चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।

आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,

कोशिश करनेवालों की हार नहीं होती।”12

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