hindi poem delhi darshan
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Explanation:
खुश हो लें कि आप दिल्ली में हैं
खुश हो लें कि आप मर्कज में हैं
बिना खतों के लिफाफों में
आपके पते बहुत साफ नहीं
फिर भी आप मजमून बना लेंगे
क्योंकि आप दिल्ली में हैं।
आँखों की पुतलियों पर ठहरती नहीं है दिल्ली
हाथ के आईने में रुकते नहीं हैं लोग
फिर भी, दिल्ली जब जब बुलाती है लोग दौड़े चले आते हैं।
सवाल कई उठते हैं
क्या दिल्ली एक आवाज है
क्या दिल्ली की गलियाँ पुकारती हैं ?
क्या दिल्ली की रातों में आत्माएँ भटकती हैं ?
दिल्ली, जो हमेशा से शहर कहलाती रही
वह कहीं टिकती क्यों नहीं ?
यह हमेशा की बेचैनी कैसी ?
बार बार इलाके बदलने की यह कैसी उत्कंठा ?
बदलते मौसमों का यह शहर
क्या पिघलते मौसमों का भी शहर रहा है ?
जवाब सीधे नहीं हैं,
सीधे जवाब गलत हो जाएँगे
वैसे ही जैसे दिल्ली भी कई बार गलत हो चुकी है
उसका इतिहास गलत हो चुका है
उसके ख्वाब फिर गलतियाँ कर रहे हैं
यह भूल कर कि
फतह और शिकस्त के जाहिराना सिरों के बीच भी
कितनी ही बूँदों ने लगातार टपक कर जगह तलाशी है
इन जगहों का कोई तूर्यनाद नहीं हुआ
पर वे स्वप्नचित्र भी नहीं
सैकड़ों वर्षों से उन जगहों पर वक्त चला है,
दिन ढले हैं,
तकलीफ में भी नींद मौजूँ रही है
और सुबहें कभी कभी सादिक की तरह धुली धुली भी लगी हैं।
उन्हीं जगहों पर इबादत हुई है, खुदा को कोसा भी गया है
होड़ में लोग दौड़े हैं, हताशा में मन बैठा भी है
फख्र भी रहा है, कोफ्त भी हुई है
शगल भी रहे हैं, बीमारी भी
फरामोशी भी हुई है, वफादारी भी।
बदलते इलाकों में भी यह सब बदस्तूर जारी रहा है
जैसे जन्म और मृत्यु
और उनके बीच कायदों से बँधती, उसे तोड़ती
कभी झूलती, कभी झुलाती
पूरी की पूरी जिंदगी।
दिल्ली को खोजना है तो ऐसी जगहों पर भी जाना होगा
शहर सिर्फ महामहिम नहीं, बहुत से मामूली लोग भी बसाते हैं
दिल्ली, शहर दर शहर, सिर्फ निगहबानों की नहीं
इंसानों की भी कहानी है।
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