Math, asked by Nandini2885, 9 months ago

Hindi poem for 9th class
It can be patriotic or can be related to enviorment...
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1. आह्वान: अशफाकउल्ला खां

कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,

आजाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे

हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से

तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे

बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का,

चरख़े से ज़मीं को हम, ता चर्ख़ गुंजा देंगे

परवाह नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की,

है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे

उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे

तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका

चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे

दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं

ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे

मुसाफ़िर जो अंडमान के, तूने बनाए, ज़ालिम

आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे

2. आजादी: राम प्रसाद बिस्मिल

इलाही ख़ैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं,

हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं

कभी आज़ाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं

मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं

असीराने-क़फ़स से काश, यह सैयाद कह देता

रहो आज़ाद होकर, हम तुम्हें आज़ाद करते हैं

रहा करता है अहले-ग़म को क्या-क्या इंतज़ार इसका

कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं

यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कै़दे-उल्फ़त में

वो अब आज़ाद करते हैं, वो अब आज़ाद करते हैं

सितम ऐसा नहीं देखा, जफ़ा ऐसी नहीं देखी,

वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं

यह बात अच्छी नहीं होती, यह बात अच्छी नहीं करते

हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?

कोई बिस्मिल बनाता है, जो मक़तल में हमें ‘बिस्मिल’

तो हम डरकर दबी आवाज़ से फ़रियाद करते हैं

3. मेरा वतन वही है: इकबाल

चिश्ती ने जिस ज़मीं पे पैग़ामे हक़ सुनाया

नानक ने जिस चमन में बदहत का गीत गाया

तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया

जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुड़ाया

मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

सारे जहां को जिसने इल्मो-हुनर दिया था,

यूनानियों को जिसने हैरान कर दिया था

मिट्टी को जिसकी हक़ ने ज़र का असर दिया था

तुर्कों का जिसने दामन हीरों से भर दिया था

मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

टूटे थे जो सितारे फ़ारस के आसमां से

फिर ताब दे के जिसने चमकाए कहकशां से

बदहत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकां से

मीरे-अरब को आई ठण्डी हवा जहां से

मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

4. जिस देश में गंगा बहती है: शैलेन्द्र

होठों पे सच्चाई रहती है, जहां दिल में सफ़ाई रहती है

हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं

जिस देश में गंगा बहती है

मेहमां जो हमारा होता है, वो जान से प्यारा होता है

ज़्यादा की नहीं लालच हमको, थोड़े मे गुज़ारा होता है

बच्चों के लिये जो धरती माँ, सदियों से सभी कुछ सहती है

हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं

जिस देश में गंगा बहती है

कुछ लोग जो ज़्यादा जानते हैं, इन्सान को कम पहचानते हैं

ये पूरब है पूरबवाले, हर जान की कीमत जानते हैं

मिल जुल के रहो और प्यार करो, एक चीज़ यही जो रहती है

हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं

जिस देश में गंगा बहती है

जो जिससे मिला सिखा हमने, गैरों को भी अपनाया हमने

मतलब के लिये अन्धे होकर, रोटी को नही पूजा हमने

अब हम तो क्या सारी दुनिया, सारी दुनिया से कहती है

हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं

जिस देश में गंगा बहती है..

5. मेरे देश की आंखें: अज्ञेय

नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं

पुते गालों के ऊपर

नकली भवों के नीचे

छाया प्यार के छलावे बिछाती

मुकुर से उठाई हुई

मुस्कान मुस्कुराती

ये आंखें

नहीं, ये मेरे देश की नहीं हैं...

तनाव से झुर्रियां पड़ी कोरों की दरार से

शरारे छोड़ती घृणा से सिकुड़ी पुतलियां

नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं...

वन डालियों के बीच से

चौंकी अनपहचानी

कभी झांकती हैं

वे आंखें,

मेरे देश की आंखें,

खेतों के पार

मेड़ की लीक धारे

क्षिति-रेखा को खोजती

सूनी कभी ताकती हैं

वे आंखें...

उसने

झुकी कमर सीधी की

माथे से पसीना पोछा

डलिया हाथ से छोड़ी

और उड़ी धूल के बादल के

बीच में से झलमलाते

जाड़ों की अमावस में से

मैले चांद-चेहरे सुकचाते

में टंकी थकी पलकें

उठाईं

और कितने काल-सागरों के पार तैर आईं

मेरे देश की आंखें...

Hope that helps you.

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1. आह्वान: अशफाकउल्ला खां

कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,

आजाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे

हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से

तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे

बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का,

चरख़े से ज़मीं को हम, ता चर्ख़ गुंजा देंगे

परवाह नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की,

है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे

उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे

तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका

चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे

दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं

ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे

मुसाफ़िर जो अंडमान के, तूने बनाए, ज़ालिम

आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे

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