Hindi poem khuda tumhare pas ku rehta hai by dr ranjna
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मुक्तक कुमार विश्वास
अगर दिल ही मुअज्जन हो सदायें काम आती हैं
अगर दिल ही मुअज्जन हो सदायें काम आती हैं,
समन्दर में सभी माफिक हवायें काम आती हैं
मुझे आराम है ये दोस्तों की मेहरवानी है,
दुआयें साथ हों तो सब दवायें काम आतीं है।
इस उड़ान पर अब शर्मिंदा, में भी हूँ और तू भी है
इस उड़ान पर अब शर्मिंदा, में भी हूँ और तू भी है
आसमान से गिरा परिंदा, में भी हूँ और तू भी है
छुट गयी रस्ते में, जीने मरने की सारी कसमें
अपने-अपने हाल में जिंदा, में भी हूँ और तू भी है
एक दो दिन में वो इकरार कहाँ आएगा
एक दो दिन में वो इकरार कहाँ आएगा
हर सुबह एक ही अखबार कहाँ आएगा
आज बंधा है जो इन् बातों में तो बहल जायेंगे
रोज इन बाहों का त्यौहार कहाँ आएगा
कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम बिन
कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम बिन
भरी महफिल में भी अक्सर, अकेले हो लिए तुम बिन
ये पिछले चंद वर्षों की कमाई साथ है अपने
कभी तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन
किसी के दिल की मायूसी जहाँ से होके गुजरी है
किसी के दिल की मायूसी जहाँ से होके गुजरी है,
हमारी सारी चालाकी वहीं पे खो के गुजरी है
तुम्हारी और हमारी रात में वस फर्क इतना है,
तुम्हारी सो के गुजरी है हमारी रो के गुजरी है
किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है
किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है
लो हमने देख ली दुनिया जो इतनी ख़ूबसूरत है
ज़माना अपनी समझे पर मुझे अपनी खबर ये है
तुम्हें मेरी जरूरत है मुझे तेरी जरूरत है
कोई कब तक महज सोचे,कोई कब तक महज गाए
कोई कब तक महज सोचे,कोई कब तक महज गाए
ईलाही क्या ये मुमकिन है कि कुछ ऐसा भी हो जाए
मेरा मेहताब उसकी रात के आगोश मे पिघले
मैँ उसकी नीँद मेँ जागूँ वो मुझमे घुल के सो जाए
कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ
कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ