hindi poem on kathputli
Answers
कठपुतली
गुस्से से उबली
बोली - ये धागे
क्यों हैं मेरे पीछे आगे ?
तब तक दूसरी कठपुतलियां
बोलीं कि हां हां हां
क्यों हैं ये धागे
हमारे पीछे-आगे ?
हमें अपने पांवों पर छोड़ दो,
इन सारे धागों को तोड़ दो !
बेचारा बाज़ीगर
हक्का-बक्का रह गया सुन कर
फिर सोचा अगर डर गया
तो ये भी मर गयीं मैं भी मर गया
और उसने बिना कुछ परवाह किए
जोर जोर धागे खींचे
उन्हें नचाया !
कठपुतलियों की भी समझ में आया
कि हम तो कोरे काठ की हैं
जब तक धागे हैं,बाजीगर है
तब तक ठाट की हैं
और हमें ठाट में रहना है
याने कोरे काठ की रहना है
Answer:
कठपुतली कविता का सारांश :--
कठपुतली कविता में कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने कठपुतली के मन की व्यथा को दर्शाया है. ये सभी धागों से बंधी बंधी परेशान हो चुकी है और इन्हें दूसरों के इशारों पर नाचते हुए दुख होता है. इस दुख से बाहर निकलने के लिए एक कठपुतली विद्रोह की शुरुआत करती है. वे सभी धागों को तोड़कर आपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है. अन्य कठपुतलियां भी उसकी बातों से सहमत हो जाती है और स्वतन्त्र होने की चाह व्यक्त करती है. मगर जब पहली कठपुतली पर सभी की स्वतंत्रता की जिम्मेदारी आती है, तो वो सोच में पड़ जाती है.
Explanation:
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