Hindi, asked by pratyushdugarofficia, 2 months ago

hindi poem on sun air and nature with its summary

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Answered by falgunisharmafalguni
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Poem about Nature in Hindi – दोस्तों आज इस पोस्ट में कुछ प्राकृतिक पर आधारित कविता लिखी गई लोकप्रिय कविताओं का संग्रह निचे दिया गया हैं. स्कूल में भी Poems in Hindi on Nature के बारे में पढाया जाता हैं. जिससे विधार्थियों को प्राकृतिक के विशेषताओं के बारे में जानकारी मिलें.

प्रकृतिक एक माँ की तरह हमारी जीवनदायी हैं. यह हमें शुद्ध हवा, पानी, भोजन और बहुत सारे संसाधन हमें मुफ्त में उपलब्ध कराती हैं. जिससे हमारा जीवन आसान हो जाता हैं.

लेकिन अभी के समय में इन्सान इतना स्वार्थी हो गया हैं. की अपने मतलब के लिए प्राकृतिक से जमकर खिलवार कर रहा हैं. जो आने वाले समय में संकट बहुत गहरा सकता हैं.दोस्तों प्राकृतिक के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं. प्राकृतिक की सुन्दरता को देखकर अनेक कवियों ने Hindi Poems on Environment पर कविता लिखी जो बहुत ही Heart Touching Poem on Nature in Hindi हैं.

कवि प्राकृति के बहुत ही करीब होते हैं. छायावादी युग के कवियों ने तो प्राकृतिक को आधार मानकर अनेकों रचनाएँ कर डाली हैं. आपको निचे कुछ लोकप्रिय Poem about Nature in Hindi, प्रकृति पर कविता दिया गया हैं. हमें आशा हैं की यह Poems in Hindi on Nature, Hindi Kavita on Nature आपको बहुत पसंद आएगा.

Explanation:

Poem about Nature in Hindi – संभल जाओ ऐ दुनिया वालो

संभल जाओ ऐ दुनिया वालो

वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही !

रब करता आगाह हर पल

प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !!

लगा बारूद पहाड़, पर्वत उड़ाए

स्थल रमणीय सघन रहा नही !

खोद रहा खुद इंसान कब्र अपनी

जैसे जीवन की अब परवाह नही !!

लुप्त हुए अब झील और झरने

वन्यजीवो को मिला मुकाम नही !

मिटा रहा खुद जीवन के अवयव

धरा पर बचा जीव का आधार नहीं !!

नष्ट किये हमने हरे भरे वृक्ष,लताये

दिखे कही हरयाली का अब नाम नही !

लहलाते थे कभी वृक्ष हर आँगन में

बचा शेष उन गलियारों का श्रृंगार नही !

कहा गए हंस और कोयल, गोरैया

गौ माता का घरो में स्थान रहा नही !

जहाँ बहती थी कभी दूध की नदिया

कुंए,नलकूपों में जल का नाम नही !!

तबाह हो रहा सब कुछ निश् दिन

आनंद के आलावा कुछ याद नही

नित नए साधन की खोज में

पर्यावरण का किसी को रहा ध्यान नही !!

विलासिता से शिथिलता खरीदी

करता ईश पर कोई विश्वास नही !

भूल गए पाठ सब रामयण गीता के,

कुरान,बाइबिल किसी को याद नही !!

त्याग रहे नित संस्कार अपने

बुजुर्गो को मिलता सम्मान नही !

देवो की इस पावन धरती पर

बचा धर्म -कर्म का अब नाम नही !!

संभल जाओ ऐ दुनिया वालो

वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही !

रब करता आगाह हर पल

प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !!

डी. के. निवातियाँ

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