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स्वामी विवेकानंद के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग बताते हुए निबंध लिखिए।
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स्वामी विवकानंद
स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी 1863 में कोलकाता में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीमान विश्वनाथ दत्ता और माता का नाम श्रीमती भुवनेश्वरी देवी था। उनके माता पिता ने मिलकर उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्ता रखा। उन्होंने अपनी सारी अध्ययन श्री रामकृष्ण परमहंस जी से प्राप्त की। उन्होंने अपनी जीवनकर्याल में कई महान कार्य की। वे पूरे विश्व भर में उनकी आध्यात्मिक कार्यों के लिए प्रख्यात रह चुके है।
स्वामी विवेकानंद जी बहुत ही आध्यात्मिक पुरुष थे। उन्होंने अपनी 30 वर्ष की आयु में शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने भारत को आजादी की लड़ाई में अपना काफी योगदान दिया है। उन्होंने रामकृष्ण मिशन का प्रचरण भी किया। सन् 1983 में दिसंबर के मह में स्वामी जी कन्याकुमारी के पत्थरों पर ध्यान करने गाय थे जहां उनकी प्रतिमा अब भी सीमित है और वह जगह विवेकानन्द स्मारक के नाम से सुप्रसिद्ध है।
वे बहुत ही बुद्धिमान थे। एक बार उन्हें एक पुरुष ने एक मेज़ पर रखे किताबो को देखते हुए कहा था, "देखिए स्वामी जी आपकी ग्रंथ ' रामायण ' सबसे नीचे रखा हुआ है।" तब स्वामी जी ने बार ही सुन्दर उत्तर दिया था।उन्होंने कहा था, "जी हमारी ग्रंथ सबसे नीचे है ताकि वो बाकी सारे ग्रंथो को सम्भाल सके। अर्थात ' रामायण ' ने सारे ग्रंथो को अपने ऊपर सम्भाल रखा है।" इस कथन से यह साबित होता है कि से ईश्वर में विश्वास करते थे।
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Answer:
स्वामी विवेकानंद प्रारंभ से ही एक मेधावी छात्र थे और सभी लोग उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे। जब वो अपने साथी छात्रों से कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें सुनते थे। एक दिन कक्षा में वो कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे की उन्हें पता ही नहीं चला की कब मास्टर जी कक्षा में आए और पढ़ाना शुरू कर दिया। मास्टर जी ने अभी पढऩा शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी। कौन बात कर रहा है? मास्टर जी ने तेज आवाज़ में पूछा। सभी छात्रों ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों की तरफ इशारा कर दिया। इतना सुनते ही मास्टर जी क्रोधित हो गए।
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उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और पाठ से संबधित प्रश्न पूछने लगे। जब कोई भी उत्तर नहीं दे पाया, तब अंत में मास्टर जी ने स्वामी विवेकानंद जी से भी वही प्रश्न किया, स्वामी जी तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हो, उन्होंने आसानी से उस प्रश्न का उत्तर दे दिया। यह देख मास्टर जी को यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बात-चीत में लगे हुए थे, फिर क्या था।
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उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी। सभी छात्र एक-एक कर बेच पर खड़े होने लगे, स्वामी जी ने भी यही किया। मास्टर जी बोले– नरेन्द्र तुम बैठ जाओ! नहीं सर, मुझे भी खड़ा होना होगा क्योंकि वो मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था। स्वामी जी ने आग्रह किया। सभी उनकी सच बोलने की हिम्मत देख बहुत प्रभावित हुए।
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