"hindi" speech on books our friends essay for
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so start with what u are currently reading a book and then start metamorphosing about the book as friend...
so here is ur answer....
आदिम पुण में मनुष्य अनपढ़ और अशिक्षित था। लोग लिखना
पढ़ना नहीं जानते थे, सभ्यता के विकास के साथ साथ भाषा-साहित्य की
रचना हुई। आरंभ में लेखन क्रिया शिलापट्ट, भोजपत्र या तालपत्र पर होती
थी। पुस्तकों की हस्त लिपि प्राप्त करना सबके लिए संभव नही था। किन्तु
कागज और मुद्रण यंत्र के आविष्कार और प्रयोग ने पुस्तक को सर्वसुलभ
बनाकर समाज में क्रांति ला दी। जञान, विचार और भाव पुस्तक के रूप
में छपने लगे। मनुष्य ने पुस्तक के रूप में अपना सबसे अच्छा मित्र प्राप्त
कर किया और उसका अध्ययन कर अपने ज्ञान केच को विस्तुत करने
लगा।
पुस्तक मानव जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। यह मानव का
सबसे प्रिय शहर है। यह न केवल हमारे जानकी परिधि का विस्तार
करता है अपितु जीवन में पग पग पर हमारा हितैषी, शुभचिन्तक और
पथ-प्रदर्शक बनकर हमारा मार्ग दर्शन करता है। मानस में तुलसी ने
लिखा है-
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।
तिनाति बिलोकत पातक भारी।।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना।
मिस्क दुख रज मेरू समाना ।।
कुपथ निवारि सुपण बालाया।
गुन प्रकटे अवगुण दुराया ।।
देत लेत मन संक न धरई। .
बल अनुमान सवा हित करई।।
विपति काल कर सत मन नेहा
श्रुति कह संत मित्र गुन एहा।।
सच्चे मित्र के संबंध में संपादित तुलसी का उक्त कथन पुस्तक पर
ही चरितार्थ होता है। सव्ये मित्र की भर्ती पुस्तक का अध्ययन मनुष्य को
कुमार्ग पर भटकने से रोकता है। उसके भीतर गुणों का विकास कर
अवगुणों को दूर करता है। यह दगाबानी नहीं करता, देखा नहीं
दीनता और संकट में साथ नहीं छोड़ता, बरसाती मेंढक की तरह अनर्गल
प्रलाप और प्रशंसा नहीं करता। यह लम्बी और मन उदाऊ यात्रा को भी
सरल बना देता है। यह नवीन अनुसंधानों की दुनिया में ले जाता है और
निर्माण की नवीन सामग्री प्रदान करता है। यह हमारी चित्त-वृत्तियों का
परिशोधन करता है। इसके साथ रहने से विच्छित,विषण्ण और हता
मानय को नई संजीवनी शक्ति मिलती है। यह महापुरूषों के पथ पर खड़े
होने का अवसर प्रदान करता है। यह सच्चे मित्र की तरह विश्वासी और
जीवन के लिए महोदय है।
अच्छी पुस्तक हमारे अंतर्मन में ज्ञान की ज्योति फैलाकर संकट
की गाड़ियों में हमें रास्ता दिखाता है और सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित
करता है। ची पुस्तके इस लोक की चिंतामणि है। उसके अध्ययन से
मनुष्य दुश्चिंताओं से मुक्त हो जाता है। किंकर्तव्यविमूढ़ और संशय ग्रस्त
नही होता। हृदय में सौग्य और मृदुल भादों का उदय होता है और
मानसिक शांति प्राप्त होती है।
अ से अच्छे मित्र भी हमेशा मनोनुकल पड़ियों में साथ नहीं
रहते। कुछ ऐसे भी मित्र होते है जो मन उकताऊ होते है। हम उनसे पिंड
छुपाना चाहते है किन्तु उन्हें बुरा न लगे इसलिए कुछ बोल नही पाते।
किन्तु पुस्तक ऐसा मित्र है जिसे जब चाहे साथ रखें जब चाहे छोड़ दे। वह
कभी बुरा नहीं मानता। गांधी ने ठीक ही कहा है-"अच्छी पुस्तकों के पास
होने पर हमें आपने भले मित के साथ न रहने की कमी नहीं टकती।
सच्चा मित्र जीवन में आनंद प्रदान करता है। पुस्तकों की दुनिया
इस धरती पर वैकट लोक है। जहां आनंद ही आनंद है। पुस्तक से मित्रता
विचित्र स्वर्गीय वरदान है। भह मानस का आनंद और अभिमान-"पुस्तक
एक उत्तम साथी होता है। जो लोग इसके साथ से वंचित रह जाते है उन्हें
World's Largest-दर की ठोकरे मिलती है जो पुस्तकों की अपना साथी बनाते हैं वे
विपति में वे, अभ्युदय में आम, सभा में भाषण चातुर्य, पु्ध में विक्रम
और जीवन में यश प्राप्त करते है.
hope you like it......
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