hindi story on topic farz
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रमेश अभी तक घबराया हुआ नजर आ रहा था। मैंने फिर पूछा- रमेश तुमने बताया नहीं कि इस वक्त रात्रि के ग्यारह बज रहे हैं और तुम यहां बैठे हुये क्या कर रहे हो? क्या किसी गाड़ी का आने का समय है? कौन है? वो कहां से आ रहा है? तुम्हारा रिश्तेदार है क्या? मैंने सब कुछ पूछ लिया परन्तु मेरी बातें से रमेश के कानों पर जूं तक न रेंगी। मैंने एक बार फिर रमेश को ऊपर से नीचे तक देखा और देखा कि रमेश उदास बिलकुल मौन खड़ा हुआ सोच रहा है। उसकी आंखों में से नीर टपक रहे थे। मैंने उसके मन को टटोल लिया। अवश्य ही रमेश को कोई गहरी चोट लगी है जिसके कारण आज वह स्टेशन के प्लेटफार्म पर पागलों की तरह डोल रहा है।
मैंने फिर कहा- रमेश! चलो घर नहीं जाओगे क्या? चलो।
रमेश ने मेरे दोनों कंधों पर हाथ रखते हुए कहा- रामू, तुम घर जाओ। मुझको अकेले रहने दो। आज मेरी तबीयत बहुत खराब हो रही है। इस वक्त किसी से बात करने की इच्छा नहीं हो रही है। रामू रामू, तुम जाओ भी ना। इस वक्त मेरी इच्छा कर रही है कि मैं....।
रमेश तुम कहते कहते रुक क्यों गये? क्या बात है? रमेश मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि ये तुम किस प्रकार की बातें कर रहे हो। रमेश, इस वक्त मैं तुम्हारी हर बात को सुनना चाहता हूं। बोलो कुछ साफ साफ कि तुम्हें किस बात का दुःख है? रमेश तुम मुझे अपनी कहानी सुनाओ। शायद मैं तुम्हारी मदद कर सकूं रमेश। रमेश, ज्यादा देरी क्यों करते हो? रात ज्यादा हो रही है। रामू, पहले तुम ये बताओ कि मुझको एक रात भर के लिए अपने यहां सोने के वास्ते कमरा दोगे?
पहले तो रामू डरा। उसे लगा कि ऐसा तो नहीं कि रमेश ने आज कहीं चोरी की हो या किसी की हत्या की हो जिसके कारण आज ये भागना चाहता है कहीं, या छुपना चाहता है। हो सकता है कि इसके पीछे पुलिस लगी हो, वारंट कटा हो।
लेकिन फिर रामू के मस्तिष्क में ये बात आई कि जिसके साथ मेरी दस साल पुरानी दोस्ती चली आ रही है मेरा फर्ज है कि मैं उसे बचाऊं। मैंने जल्दी से रमेश का हाथ पकड़ कर कहा- रमेश ये कोई पूछने की बात है? घर तुम्हारा ही है। चलो आओ। चलो घर पर बैठेंगे तब हम तुमसे वहां तुम्हारी दुःख की कहानी सुनेंगे