Hindi, asked by kajalsingh1, 1 year ago

hindi summary of hariwansh rai bacchan

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Answered by harshitaanand
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 you're acquainted with Hindi literature, you know Harivansh Rai Bachchan wasn't anything short of a legend. The writer of the poem Madhushala is one of the most admired Hindi poets of all time. In 1976, Bachchan was honoured with the Padma Bhushan for his immense contribution to Hindi literature. The man used to introduce himself as “Mitti ka tan, masti ka man, kshan-bhar jivan– mera parichay.”
Answered by parisingh9
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Answer:

हरिवंशराय बच्चन का जीवन परिचय- हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवम्बर 1907 को इलाहाबाद से सटे प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव बाबूपट्टी में हुआ था। इनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव तथा माता का नाम सरस्वती देवी था। इनको बाल्यकाल में इनके माता पिता ‘बच्चन’ जिसका शाब्दिक अर्थ ‘बच्चा’ या ‘संतान’ होता है, कह कर पुकारते थे। बाद में ये इसी नाम से मशहूर हुए। इन्होंने कायस्थ पाठशाला में पहले उर्दू की शिक्षा ली, जो उस समय कानून की डिग्री के लिए पहला कदम माना जाता था। उन्होने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए. और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू बी यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएच. डी. पूरी की।

हरिवंश राय बच्चन अनेक वर्षों तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में प्राध्यापक रहे। कुछ समय के लिए हरिवंश राय बच्चन आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमों से जुड़े रहे। फिर 1955 ई. में वह विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ होकर दिल्ली चले गये।

उन्होंने साहस और सत्यता के साथ सीधी-सादी भाषा शैली में अपनी कविताएं लिखीं। इनकी रचनाओं में व्यक्ति-वेदना, राष्ट्र-चेतना और जीवन-दर्शन के स्वर मिलते हैं। अपनी कविताओं में उन्होंने राजनैतिक जीवन के ढोंग, सामाजिक असमानता और कुरीतियों पर व्यंग्य किया है।

उनकी कृति “दो चट्टानें” को 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। बिड़ला फाउण्डेशन ने उनकी आत्मकथा के लिये उन्हें सरस्वती सम्मान दिया। हरिवंश राय बच्चन को भारत सरकार द्वारा 1976 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

अग्निपथ कविता का सार- Agneepath Poem Meaning in Hindi : हरिवंश राय बच्चन की कविता अग्निपथ में कवि ने हमें यह संदेश दिया है कि जीवन संघर्ष का ही नाम है। और उन्होंने यह कहा है कि इस संघर्ष से घबराकर कभी थमना नहीं चाहिए, बल्कि कर्मठतापूर्वक आगे बढ़ते रहना चाहिए। कवि के अनुसार, हमें अपने जीवन में आने वाले संघर्षों का खुद ही सामना करना चाहिए। चाहे जितनी भी कठिनाइयाँ आएं, हमें किसी से मदद नहीं माँगनी चाहिए। अगर हम किसी से मदद ले लेंगे, तो हम कमजोर पड़ जायेंगे और हम जीवन-रूपी संघर्ष को जीत नहीं पाएंगे। खुद के परिश्रम से सफलता प्राप्त करना ही इस कविता का प्रमुख लक्ष्य है।

अग्निपथ कविता – Agneepath poem in Hindi

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !

वृक्ष हों भले खड़े,

हों घने, हों बड़े,

एक पत्र छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !

तू न थकेगा कभी!

तू न थमेगा कभी!

तू न मुड़ेगा कभी! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !

यह महान दृश्य है

चल रहा मनुष्य है

अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !

अग्निपथ कविता का भावार्थ –

अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

वृक्ष हों भले खड़े,

हों घने, हों बड़े,

एक पत्र छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!

अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

भावार्थ : हरिवंश राय बच्चन की कविता अग्निपथ की इन पंक्तियों में कवि हरिवंश राय बच्चन जी ने हमें यह शिक्षा दी है कि अपने जीवन में हमेशा कर्म करते रहना चाहिए। हमारे सामने चाहे जितनी भी कठिनाइयाँ क्यों ना आएं, हमें कभी रुकना नहीं चाहिए। अपने कर्मपथ पर चलते हुए, अगर हमारे मित्र या संबंधी हमें सहायता देने आएं, तो वह हमें कभी भी स्वीकार नहीं करनी चाहिए। अगर एक बार सहायता ले ली, तो हम कमजोर पड़ जायेंगे और अपने कर्मपथ पर नहीं चल पाएंगे।

इसीलिए हरिवंशराय बच्चन जी ने कहा है, जीवन की कड़ी धूप में चलते हुए, चाहे जितने भी घने वृक्ष आपके अग्निपथ में क्यों ना आएं, आपको कभी भी उनकी छाँव का आसरा लेने के लिए रुकना नहीं चाहिए। आपको बस अपने लक्ष्य की तरफ बिना रुके चलते रहना चाहिए।

तू न थकेगा कभी!

तू न थमेगा कभी!

तू न मुड़ेगा कभी! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!

अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

भावार्थ : अग्निपथ कविता की इन पंक्तियों में हरिवंशराय बच्चन जी ने कहा है कि मनुष्य को अपने कर्म की राह पर चलते हुए कभी नहीं थकना चाहिए। चाहे वह कितना ही परेशान, बेचैन क्यों ना हो जाए, पर उसे अपने कर्म करते रहने चाहिए। कभी भी कर्मपथ पर चलते-चलते थमना नहीं चाहिए, अर्थात कभी अपने कर्मो को करते-करते रुकना नहीं चाहिए। आगे कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने जीवन में ये शपथ लेनी चाहिए कि वह कभी भी अपने कर्म के मार्ग से मुड़ेगा नहीं, चाहे उसके रास्ते कितने ही कठिन क्यों ना हों।

यह महान दृश्य है

चल रहा मनुष्य है

अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ

अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

भावार्थ : जब मनुष्य अपने कर्म के रास्ते पर चलता है, तो उसे धूल, तेज़ धूप, आंधी रूपी सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं का सामना करते-करते मनुष्य पसीने, आंसू एवं खून से लथ-पथ होकर भी अपने कर्म के सच्चे रास्ते पर आगे बढ़ता ही रहता है। ऐसे मनुष्य को उसकी मंज़िल के रास्ते पर चलते हुए देखना एक अद्भुत अनुभव होता है, इसीलिए अग्निपथ कविता की उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने इसे एक महान दृश्य कहा है। उनके अनुसार कठिनाइयों का सामना कर बिना रुके सच्चे रास्ते पर चलते-चलते ही मनुष्य अपनी ज़िंदगी की मंज़िल को पा सकता है।

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