hindi translation of tulsidas van ke marg mein
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'वन के मार्ग में' में तुलसीदास जी ने राम और सीता के वन गमन का वर्णन किया है। पहले सवैये में उन्होंने बताया है कि नगर से बाहर निकलकर थोड़ी दूर चलने के बाद सीताजी काफी थक जाती हैं। उन्हें पसीना आने लगता है। उनके होंठ सूखने लगते हैं। वे रामचन्द्रजी से पूछती हैं कि अभी और कितना चलना है और वे लोग पर्णकुटी कहाँ बनायेंगे। सीताजी की व्याकुलता को देखकर रामचन्द्रजी को दुःख होता है और उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं।
दूसरे सवैये में तुलसीदास जी बताते हैं कि सीताजी रामचन्द्रजी की व्याकुलता को देखकर उनसे कहती हैं कि जब तक लक्ष्मण पानी लेकर आते हैं पेड़ की छाया में विश्राम कर लिया जाये। पेड़ की छाया में बैठकर रामचन्द्रजी सीताजी के पैरों में लगे हुए काँटों को धीरे-धीरे निकालते हैं। सीताजी उनके प्रेम को देखकर पुलकित हो जाती हैं।
वन के मार्ग में' में तुलसीदास जी ने राम और
सीता के वन गमन का वर्णन किया है। पहले सवैये में उन्होंने बताया है कि नगर से
बाहर निकलकर थोड़ी दूर चलने के बाद सीताजी काफी थक जाती हैं। उन्हें पसीना आने लगता
है। उनके होंठ सूखने लगते हैं। वे रामचन्द्रजी से पूछती हैं कि अभी और कितना चलना
है और वे लोग पर्णकुटी कहाँ बनायेंगे। सीताजी की व्याकुलता को देखकर रामचन्द्रजी
को दुःख होता है और उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं।
दूसरे सवैये में तुलसीदास जी बताते हैं कि
सीताजी रामचन्द्रजी की व्याकुलता को देखकर उनसे कहती हैं कि जब तक लक्ष्मण पानी
लेकर आते हैं पेड़ की छाया में विश्राम कर लिया जाये। पेड़ की छाया में बैठकर रामचन्द्रजी
सीताजी के पैरों में लगे हुए काँटों को धीरे-धीरे निकालते हैं। सीताजी उनके प्रेम
को देखकर पुलकित हो जाती हैं