Hinsa buri h, daasta usse bhi buri h par ak anuched likhe
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(अनुच्छेद)
हिंसा बुरी है पर दासता उससे भी बुरी है
हिंसा करना एक बुरा और निंदनीय कार्य है। किसी भी प्राणी को शारीरिक या मानसिक रूप से चोट पहुंचाना ही हिंसा कहलाता है। हिंसा नफरत का प्रतीक है। नफरत नकारात्मकता का प्रतीक है, नकारात्मकता असफलता का प्रतीक है, असफलता अंधकार का प्रतीक है। जीवन में यदि सकारात्मकता चाहिये, सफलता चाहिये, प्रकाश चाहिये, प्रेम चाहिये तो हिंसा का परित्याग करना ही श्रेष्ठ है। अपने देश, समाज, आत्मसम्मान और अपनी रक्षा के लिये लिये यदि थोड़ी हिंसा अपनानी पड़े तो वो गलत नही है, परन्तु यथासंभव ये कोशिश करनी चाहिये कि प्रेम और सद्भाव से किसी समस्या का समाधान निकले। हिंसा के मार्ग पर चलना पतन के मार्ग पर चलने के समान है।
अब बात करते हैं दासता की। हिंसा को हमने निंदनीय कर्म माना है, पर दासता उससे भी निंदनीय कर्म है। ईश्वर ने हमें स्वतंत्र अस्तित्व, शरीर और विचार दिये हैं। किसी के दास होकर हम अपनी स्वतंत्रता के अधिकार का स्वयं हनन करते हैं। दासता का अर्थ है अपने अस्तित्व को समाप्त कर लेना। भगवान ने संसार के सारे मनुष्य एक समान बनाये हैं, किसी भी मनुष्य को किसी अन्य को दास बनाये रखने का कोई हक नही और न ही किसी मनुष्य को किसी अन्य की दासता स्वीकार करनी चाहिये।
अगर दासता बुरी न होती तो हम अंग्रेजों से आजादी के लिये न लड़ते। हजारों लाखों व्यक्तियों ने अपने जीवन का बलिदान दिया तो दासता से मुक्ति पाने के लिये ही दिया।
जिसको न निज अपने गौरव और न स्वयं पर अभिमान है...
वो नर नही बस पशु निरा है, और मृतक समान है...।
अर्थात दास व्यक्ति का अपना कोई स्वाभिमान नही होता, स्वयं के कोई विचार नही होते, वो तो बस मृतक के समान ही होता जिसका स्वयं कोई अस्तित्व नही होता, वो तो बस एक चलता-फिरता शव है, पशु के समान है।
इसलिये अगर हिंसा बुरी है तो दासता उससे भी बुरी है।