Hira and moti ke bare me
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पुरातन काल से ही रत्नों का प्रचलन रहा है | मानिक मोती मूंगा पुखराज पन्ना हीरा और नीलम ये सब मुख्य रत्न हैं | इनके अतिरिक्त और भी रत्न हैं जो भाग्यशाली रत्नों की तरह पहने जाते हैं | इनमे गोमेद, लहसुनिया, फिरोजा, लाजवर्त आदि का भी प्रचलन है | रत्नों में ७ रत्नों को छोड़कर बाकी को उपरत्न समझा जाता है | मानिक मोती मूंगा पुखराज पन्ना हीरा और नीलम लहसुनिया और गोमेद ये सब ९ ग्रहों के प्रतिनिधित्व के आधार पर पहने जाते हैं |
ग्रह और उनके रत्न इस प्रकार हैं—
मानिक मोती मूंगा पन्ना पुखराज हीरा नीलम गोमेद लहसुनिया
सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहू केतु
असली रत्न मेहेंगे होने के कारण लोग उप्रत्नों को उनके स्थान पर पहन लेते हैं | किताबों में लिखा है कि उपरत्न कम प्रभाव देते हैं |
सभी रत्न नौ ग्रहों के अंतर्गत आते हैं | सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहू केतु यह सब ग्रह जन्मकुंडली के अनुसार व्यक्ति को शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं | जन्म कुंडली चक्र में १२ स्थान होते हैं जिन्हें घर या भाव भी कहा जाता है | बारह भावों में सूर्यादि ग्रहों की स्थिति से निर्धारण किया जा सकता है कि कौन सा रत्न व्यक्ति को सर्वाधिक लाभ देगा | पिछले ३० वर्षों के अनुभव अनुभव के आधार पर मैंने पाया है कि यदि कोई ग्रह आपके लिए शुभ है और उसका पूरा फल आपको नही मिल रहा तो उस ग्रह से सम्बंधित रत्न धारण कर लीजिये | आप पाएंगे कि एक ही रत्न ने आपके जीवन को नई दिशा दे दी है और आपकी मानसिकता में परिवर्तन आया है | केवल एक ही रत्न काफी है आपका भाग्य बदलने के लिए |
विभिन्न प्रकार की प्रचलित मान्यताओ के अनुसार विशिष्ठ सिधान्त है नव रतन धारण करने के सरल और सहज उपाए इस प्रकार है।
१- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म राशी , जन्म दिन , जन्म मास , जन्म नक्षत्र को ध्यान में रखते हुए ही रत्न धरण किया जाना चाहिए।
२- लग्नेश , पंचमेश , सप्तमेश , भाग्येश और कर्मेश के क्रम के अनुसार एवम महादशा , प्रत्यंतर दशा के अनुसार ही रत्न धारण करना चाहिए।
३ – छटा, आठवा और बरवा भाव को कुछ विद्वान मारकेश मानते है , मारकेश रत्न कभी धारण न करे।
४- रत्न का वजन पोने रत्ती में नही होना चाहिए। पोनरत्ती धारण करने से व्यक्ति कभी फल फूल नही पाता है। ऐसा व्यक्ति का जीवन हमेशा पोना ही रहता है
५- जहाँ तक रत्न हमेशा विधि विधान से तथा प्राण प्रतिष्ठा करवा कर , शुभ वार , शुभ समय अथवा सर्वार्ध सिद्धि योग , अमृत सिद्धि योग या किसी भी पुष्प नक्षत्र में ही शुभ फल देता है।
ग्रह और उनके रत्न इस प्रकार हैं—
मानिक मोती मूंगा पन्ना पुखराज हीरा नीलम गोमेद लहसुनिया
सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहू केतु
असली रत्न मेहेंगे होने के कारण लोग उप्रत्नों को उनके स्थान पर पहन लेते हैं | किताबों में लिखा है कि उपरत्न कम प्रभाव देते हैं |
सभी रत्न नौ ग्रहों के अंतर्गत आते हैं | सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहू केतु यह सब ग्रह जन्मकुंडली के अनुसार व्यक्ति को शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं | जन्म कुंडली चक्र में १२ स्थान होते हैं जिन्हें घर या भाव भी कहा जाता है | बारह भावों में सूर्यादि ग्रहों की स्थिति से निर्धारण किया जा सकता है कि कौन सा रत्न व्यक्ति को सर्वाधिक लाभ देगा | पिछले ३० वर्षों के अनुभव अनुभव के आधार पर मैंने पाया है कि यदि कोई ग्रह आपके लिए शुभ है और उसका पूरा फल आपको नही मिल रहा तो उस ग्रह से सम्बंधित रत्न धारण कर लीजिये | आप पाएंगे कि एक ही रत्न ने आपके जीवन को नई दिशा दे दी है और आपकी मानसिकता में परिवर्तन आया है | केवल एक ही रत्न काफी है आपका भाग्य बदलने के लिए |
विभिन्न प्रकार की प्रचलित मान्यताओ के अनुसार विशिष्ठ सिधान्त है नव रतन धारण करने के सरल और सहज उपाए इस प्रकार है।
१- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म राशी , जन्म दिन , जन्म मास , जन्म नक्षत्र को ध्यान में रखते हुए ही रत्न धरण किया जाना चाहिए।
२- लग्नेश , पंचमेश , सप्तमेश , भाग्येश और कर्मेश के क्रम के अनुसार एवम महादशा , प्रत्यंतर दशा के अनुसार ही रत्न धारण करना चाहिए।
३ – छटा, आठवा और बरवा भाव को कुछ विद्वान मारकेश मानते है , मारकेश रत्न कभी धारण न करे।
४- रत्न का वजन पोने रत्ती में नही होना चाहिए। पोनरत्ती धारण करने से व्यक्ति कभी फल फूल नही पाता है। ऐसा व्यक्ति का जीवन हमेशा पोना ही रहता है
५- जहाँ तक रत्न हमेशा विधि विधान से तथा प्राण प्रतिष्ठा करवा कर , शुभ वार , शुभ समय अथवा सर्वार्ध सिद्धि योग , अमृत सिद्धि योग या किसी भी पुष्प नक्षत्र में ही शुभ फल देता है।
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hira is a diamonds it is very cost in now a days mothi is a round like a small ball it is very cost
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