Hindi, asked by bhavishikha9773, 1 year ago

History of library development in india in hindi

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Answered by avdesh1
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आधुनिक भारत में पुस्तकालयों का विकास बड़ी धीमी गति से हुआ है। हमारा देश परतंत्र था और विदेशी शासन के कारण शिक्षा एवं पुस्तकालयों की ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। इसी से पुस्तकालय आंदोलन का स्वरूप राष्ट्रीय नहीं था और न इस आंदोलन को कोई कानूनी सहायता ही प्राप्त थीं। बड़ौदा राज्य का योगदान इस दिशा में प्रशंसनीय रहा है। यहाँ पर 1910 ई. में पुस्तकालय आंदोलन प्रारंभ किया गया। राज्य में एक पुस्तकालय विभाग खोला गया और पुस्तकालयों चार श्रेणियों में विभक्त किया गया- जिला पुस्तकालय, तहसील पुस्तकालय, नगर पुस्तकालय, एवं ग्राम पुस्तकालय आदि। पूरे राज्य में इनका जाल बिछा दिया गया था। भारत में सर्वप्रथम चल पुस्तकालय की स्थापना भी बड़ौदा राज्य में ही हुई। श्री डब्ल्यू. ए. बोर्डन पुस्तकालय विभाग के अध्यक्ष थे।

इस समय बड़ौदा राज्य के और मुख्यत: बोर्डन महोदय के प्रयत्न से बड़ौदा राज्य पुस्तकालय संघ की स्थापना हुई। बड़ौदा शहर में एक केंद्रीय पुस्तकालय स्थापित किया गया जिसे राज्य के शासक से 20,000 पुस्तकें प्राप्त हुई। बाद में बोर्डन महोदय ने यहाँ पर पुस्तकालयविज्ञान की शिक्षा का भी प्रबंध किया और बहुत से पुस्तकाध्यक्षों को शिक्षा दी गई।

मद्रास राज्य में सन्‌ 1927 ई. में अखिल भारतीय सार्वजनिक पुस्तकालय संघ का अधिवेशन हुआ। अगले वर्ष मद्रास राज्य पुस्तकालय संघ की स्थापना की गई। डॉ॰ एस. आर. रंगनाथन के प्रयत्न से सन्‌ 1933 ई. में 'लाइब्रेरी ऐक्ट' विधानसभा द्वारा पारित किया गया। पुस्तकालय संघ ने पुस्तकालय विज्ञान के 20 ग्रंथों का प्रकाशन किया जिनमें मुख्यत: डॉ॰ रंगनाथन के ग्रंथ थे।

संघ ने 1929 ई. में एक 'ग्रीष्मकालीन स्कूल' प्रारंभ किया जिसका उद्देश्य पुस्तकालय विज्ञान में प्रशिक्षण देना था। बाद में इसी संघ की प्रेरणा से मद्रास विश्वविद्यालय ने पुस्तकालय विज्ञान में डिप्लोमा कोर्स का श्रीगणेश किया।

बंबई राज्य में पुस्तकालय आंदोलन का प्रारंभ सन्‌ 1882 में हुआ, जब धारबार में नेटिव सैंट्रल लाइब्रेरी की स्थापना की गई। रानेवेन्नूर में एक पुस्तकालय की स्थापना 1873 ई. में हुई। सन्‌ 1890 ई. में कर्नाटक विद्यावर्धक संघ की स्थापना की गई, जिससे पुस्तकालय आंदोलन को बड़ी सहायता मिली। इस संघ ने अनेक पुस्तकें बंबई राज्य के पुस्तकालयों को नि:शुल्क दीं। सन्‌ 1924 में आल इंडिया लाइब्रेरी कफ्रौंस बेलगाँव में हुई और 1929 में श्री वेंकट नारायण शास्त्री के सभापतित्व में बंबई कर्नाटक राज्य लाइब्रेरी कफ्रौंस धारवार में हुई। इस अवसर पर समाचारपत्रों, पत्रिकाओं की प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया।

बंबई राज्य में सन्‌ 1939 में पुस्तकालय विकास समिति बनाई गई जिसने 1940 ई. में अपनी रिपोर्ट सरकार को दी; परंतु स्वतंत्रताप्राप्ति के पश्चात्‌ ही समिति की रिपोर्ट पर कार्यवाही संभव हो सकी। इस राज्य में केंद्रीय पुस्तकालय और अनेक विकसित पुस्तकालय स्थापित हो चुके हैं। बंबई विश्वविद्यालय में पुस्तकालयविज्ञान की शिक्षा भी दी जाती है।

बिहार राज्य में पुस्तकालय आंदोलन थोड़ा देर से प्रारंभ हुआ। खुदाबक्श पुस्तकालय 1891 ई. में पटना में स्थापित किया गया। इसमें आठ हजार से अधिक हस्तलिखित ग्रंथ और दुर्लभ प्राचीन चित्रों का बहुत सुंदर संग्रह किया गया। सन्‌ 1915 ई. में पटना विश्वविद्यालय के पुस्तकालय की तथा 1924 ई. में सिन्हा पुस्तकालय की स्थापना पटना में की गई। सन्‌ 1937 में बिहार पुस्तकालय संघ की स्थापना हुई।

उत्तर प्रदेश में पुस्तकालयों का विकास आधुनिक काल में समुचित ढंग से हुआ है। यहाँ के सभी विश्वविद्यालयों के साथ पुस्तकालय खोले गए, जिनमें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का गायकवाड़ पुस्तकालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का पुस्तकालय और लखनऊ तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालयों के पूर्ण विकसित पुस्तकालय हैं। नागरीप्रचारिणी सभा, काशीका आर्यभाषा पुस्तकालय, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद का हिंदी संग्रहालय, लखनऊ की अमीनुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी आदि पुस्तकालय इस प्रदेश के प्रमुख पुस्तकालय हैं। 1941 ई. में इलाहाबाद में चिंतामणि मैमोरियल लाइब्रेरी की स्थापना अखिल भारतीय सेवा समिति के प्रयत्नों से हुई। यह पुस्तकालय समाजसेवा संबंधी साहित्य का अद्वितीय संग्रह है। उत्तर प्रदेश के पुस्तकालय संघ द्वारा 1737 ई. में प्रांत भर के पुस्तकालयों की एक डाइरेक्टरी प्रस्तुत की गई। 1941 ई. में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पुस्तकालय विज्ञान की शिक्षा का श्रीगणेश हुआ।

1915 ई. में पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर का पुस्तकालय श्री ए. डी. डिकन्सन के प्रयत्न से विकसित किया गया। पंजाब पुस्तकालय संघ की स्थापना 1929 ई. में हुई और 1945 ई. में लाहौर से इंडियन लाइब्रेरियन नामक पत्रिका प्रकाशित की गई एवं मॉडर्न लाइब्रेरियन नामक त्रैमासिक पत्रिका भी निकाली गई।

Answered by akhileshpathak1998
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भारत में पुस्तकालयों का इतिहास प्राचीन काल से देखा जाता रहा है।

स्पष्टीकरण:

प्राचीन काल में, पुस्तकालयों को पहले संरक्षण द्वारा बनाया जा सकता है, जो उस समय के कई सम्राटों द्वारा कॉपी किया गया और भारत में लोकप्रिय हो गया। अकबर, बाबर और हुमायूँ के काल में, कई नए पुस्तकालय शुरू किए गए थे।

यह पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गया था जब कलकत्ता विश्वविद्यालय में इन पुस्तकालयों को ब्रितानियों द्वारा सार्वजनिक उपयोग के लिए जारी किया गया था। यह पहला पुस्तकालय था जिसे सार्वजनिक उपयोग के लिए जारी किया गया था।

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