hospital me bitaya hua ek din
essay in hindi
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कुछ दिनों पहले मेरा एक मित्र मोटार-दुर्घटना में जख्मी हो गया था। उसे गांधी अस्पताल में दाखिल किया गया था। मैं उसकी तबीयत देखने अस्पताल गया। अस्पताल की इमारत बड़ी सुंदर और स्वच्छ थी। अस्पताल के सभी कमरे हवादार और प्रकाशपूर्ण थे। अस्पताल के बाहर मखमल-सी हरी लॉन फैली हुई थी और छायादार पेड़ लगे हुए थे। वहाँ बैठने को अच्छी व्यवस्था थी। अस्पताल में मैं अपने मित्र से मिला। मैने उसे आश्वासन दिया और साथ लाए हुए फल दिए। थोड़ी देर उससे बातचीत करने के बाद मैं उसके कमरे से बाहर निकला।
लौटते समय में अस्पताल देखने के लिए इधर-उधर घूमने लगा। जनरल वार्ड’ में तरह-तरह के रोगी थे। कोई कराह रहा था, कोई चुपचाप पड़ा था, तो कोई आहे भर रहा था । यहाँ एक युवक पड़ा था। मिल के मशीन की चपेट में उसका एक हाथ आ गया था, जिससे वह सदा के लिए अपाहिज हो गया था । यहाँ एक बालक था, जिसने मोटर-दुर्घटना के कारण अपने दोनों पैर खो दिए थे। मध्यम वर्ग की एक स्त्री रसोई बनाते समय जल गई थी। उसका सारा शरीर विकृत हो गया था। यहाँ ऐसे कितने ही मरीज थे, जिन्हें देखकर मेरा हृदय भर आया और मैं मन ही मन पुकार उठा, ‘ओ भगवान ! क्या यही है तेरी दुनिया !’
अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में चिकित्सा के लिए उपयोगी आधुनिक वैज्ञानिक साधन थे। प्रयोगशाला में नाना प्रकार के रसायन और दवाइयाँ थीं। एक्स-रे खंड का रंगढंग कुछ और ही था।
अस्पताल में परिचारिकाएँ इधर-उधर घूम रही थीं। इनमें से कुछ बड़ी व्यस्त और गंभीर दिखाई देती थीं, पर कुछ के चेहरे से मिठास टपक रही थी । डॉक्टर प्रत्येक रोगी की जाँच करते थे और परिचारिकाओं को सूचना देते थे । रोगियों को देखने के लिए आनेवाले मुलाकातियों की अस्पताल में भारी भीड़ थी। रोगियों के लिए कोई फल लाया था, तो कोई भोजन, कोई पुस्तक, तो कोई दवाईयाँ लाया था। मरीजों के स्वजन और स्नेही उनके पास बैठे थे और उन्हें धीरज बँधा रहे थे; साथ ही इधर-उधर की बातों द्वारा उनका मन बहला रहे थे। जिन मरीजों की स्थिति में सुधार हो रहा था उनके स्वजन प्रसन्न दिख रहे थे और जिन मरीजों की हालत चिंताजनक थी उनके स्वजनों के चेहरों पर उदासी छाई हुई थी।
इस प्रकार एक घंटे की अस्पताल की मुलाकात में मुझे मानवजीवन के करुण पहलू के दर्शन हुए।
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