Hospital mein ek ghanta essay
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वहाँ जाते ही जो दृश्य देखा मेरे रोंगटे खड़े हो गए। उस वार्ड में मरीजों को दिखाने के लिए लाइन लगी हुई थी। मैं और माँ भी उस पक्तिं में जाकर खड़े हो गए। सब की दशा बहुत खराब थी। कोई बुखार के कारण परेशान था तो किसी को सीने में दर्द हो रहा था, कोई पेट के दर्द से परेशान था। अभी हमें खड़े कुछ देर ही हुई थी की वहाँ पर एक युवक लाया गया उसके साथ दो पुलिस अफिसर भी थे। उसके स्कूटर की टक्कर कार के साथ हो गई थी। उसकी स्थिति बहुत नाजुक थी। विभाग वालों ने उसे जल्दी से भर्ती कर लिया। वह युवक खून से लथपथ था। उसको किसी बात का होशा नहीं था। सभी डाक्टरों ने उसकी आवश्यक जाँच की ओर पाया की उसके सर पर आई चोट के कारण वह बेहोश हो गया है। उसकी आवश्यक जाँच के बाद उसे सर्जरी विभाग में भेज दिया गया। फिर धीरे-धीरे हम सबको डॉक्टरों द्वारा देखा जा रहा था। जैसे ही मेरा नंबर आया मैने देखा एक बड़ी-सी टेबल के चारों ओर घेरा डालकर पाँच-छह डॉक्टर बैठे थे। उनके आस-पास बहुत कमरे बने हुए थे, जिनमें मरीज लेटे हुए थे। वहाँ ऑक्सीजन सिलेडर व अन्य सामग्री रखी हुई थी। एक महिला को दिल का दौरा पडा था। उनको दिल में दर्द बढ़ रहा था। वह हमें छोड़कर उनको देखने लगे।
उनकी दशा देखकर में माँ से चिपट गया, एक डॉक्टर ने मेरी उम्र देखते हुए मुझे देखा व माँ को अन्य स्थान पर जाकर रेबीज़ का टीका लगवाने को कहा। माँ मुझे लेकर आगे चल पड़ी। रास्ते में मैने देखा कुछ मरीजों को व्हील चेयर पर व स्टेचर पर लिटाकर ले जाया जा रहा था। उनके परिजन ग्लुकोस की बोतल हाथ में लेकर उनके साथ चल रहे थे।
हर बीमारी के लिए अलग-अलग विभाग थे। वहाँ पर मैंने सर्जरी विभाग, हड्डी विभाग, स्त्री रोग विभाग, मानसिक रोग विभाग व बालरोग विभाग देखे। जहाँ पर मरीज भर्ती थे। सारे कमरे मरीजों से भरे पड़े थे व डॉक्टर उनको जा-जाकर देख रहे थे। हम मरहम-पट्टी कक्ष में पहुँचे जहाँ पर दो नर्स बैठी थी। वह सबसे बड़े प्यार से बात कर रही थी। माँ ने डॉक्टर की दी हुई पर्ची उन्हें दे उन्होंने पर्ची देखी व मुझे रेबीज का टीका लगा दिया। उसके बाद हम अस्पताल से बाहर आ गए। उस दिन में अस्पताल में करीब एक घंटा रहा परन्तु वह एक घंटा अस्पताल में भुलाए नहीं भुलता। वहाँ जाकर मुझे एहसास हुआ की डॉक्टरों की जिंदगी कितनी मश्किल होती है। उनके प्रति मेरे मन में श्रद्धाभाव उत्पन्न होने लगता है।
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बाग-बगीचे में बहार दिखाई देती है, सरिता-सरोवरों में सौदर्य दिखाई देता है, लेकिन अस्पताल में जीवन की कठोर और करुण वास्तविकता के दर्शन होते हैं। उसे देखने के बाद हमें विश्वास हो जाता है कि जीवन में केवल हँसी’ ही नहीं, ‘रुदन’ भी है; ‘वाह वाह’ ही नहीं, ‘आह’ भी है।
कुछ दिनों पहले मेरा एक मित्र मोटार-दुर्घटना में जख्मी हो गया था। उसे गांधी अस्पताल में दाखिल किया गया था। मैं उसकी तबीयत देखने अस्पताल गया। अस्पताल की इमारत बड़ी सुंदर और स्वच्छ थी। अस्पताल के सभी कमरे हवादार और प्रकाशपूर्ण थे। अस्पताल के बाहर मखमल-सी हरी लॉन फैली हुई थी और छायादार पेड़ लगे हुए थे। वहाँ बैठने को अच्छी व्यवस्था थी। अस्पताल में मैं अपने मित्र से मिला। मैने उसे आश्वासन दिया और साथ लाए हुए फल दिए। थोड़ी देर उससे बातचीत करने के बाद मैं उसके कमरे से बाहर निकला।लौटते समय में अस्पताल देखने के लिए इधर-उधर घूमने लगा। जनरल वार्ड’ में तरह-तरह के रोगी थे। कोई कराह रहा था, कोई चुपचाप पड़ा था, तो कोई आहे भर रहा था । यहाँ एक युवक पड़ा था। मिल के मशीन की चपेट में उसका एक हाथ आ गया था, जिससे वह सदा के लिए अपाहिज हो गया था । यहाँ एक बालक था, जिसने मोटर-दुर्घटना के कारण अपने दोनों पैर खो दिए थे। मध्यम वर्ग की एक स्त्री रसोई बनाते समय जल गई थी। उसका सारा शरीर विकृत हो गया था। यहाँ ऐसे कितने ही मरीज थे, जिन्हें देखकर मेरा हृदय भर आया और मैं मन ही मन पुकार उठा, ‘ओ भगवान ! क्या यही है तेरी दुनिया !’अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में चिकित्सा के लिए उपयोगी आधुनिक वैज्ञानिक साधन थे। प्रयोगशाला में नाना प्रकार के रसायन और दवाइयाँ थीं। एक्स-रे खंड का रंगढंग कुछ और ही था।अस्पताल में परिचारिकाएँ इधर-उधर घूम रही थीं। इनमें से कुछ बड़ी व्यस्त और गंभीर दिखाई देती थीं, पर कुछ के चेहरे से मिठास टपक रही थी । डॉक्टर प्रत्येक रोगी की जाँच करते थे और परिचारिकाओं को सूचना देते थे । रोगियों को देखने के लिए आनेवाले मुलाकातियों की अस्पताल में भारी भीड़ थी। रोगियों के लिए कोई फल लाया था, तो कोई भोजन, कोई पुस्तक, तो कोई दवाईयाँ लाया था। मरीजों के स्वजन और स्नेही उनके पास बैठे थे और उन्हें धीरज बँधा रहे थे; साथ ही इधर-उधर की बातों द्वारा उनका मन बहला रहे थे। जिन मरीजों की स्थिति में सुधार हो रहा था उनके स्वजन प्रसन्न दिख रहे थे और जिन मरीजों की हालत चिंताजनक थी उनके स्वजनों के चेहरों पर उदासी छाई हुई थी।
इस प्रकार एक घंटे की अस्पताल की मुलाकात में मुझे मानवजीवन के करुण पहलू के दर्शन हुए।