How save the environment essay in hindi language 100 words with points?
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प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए पर्यावरण और जीवित चीजो के बीच नियमित रूप से विभिन्न चक्र घटित होते रहते है। हालांकि, अगर किसी भी कारण से ये चक्र बिगड़ जाते हैं तो प्रकृति का भी संतुलन बिगड़ जाता है जो की अंततः मानव जीवन को प्रभावित करता है। हमारा पर्यावरण हजारो वर्षो से हमें और अन्य प्रकार के जीवो को धरती पर बढ़ने, विकसित होने और पनपने में मदद कर रहा है। मनुष्य पृथ्वी पर प्रकृति द्वारा बनाई गई सबसे बुद्धिमान प्राणी के रूप में माना जाता है इसीलिए उनमे ब्रह्मांड के बारे में पता करने की उत्सुकता बहोत ज्यादा है जोकि उन्हें तकनीकी उन्नति की दिशा में ले जाता है।
हर व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार की तकनीकी उन्नति दिन-ब-दिन पृथ्वी पर जीवन के संभावनाओं को खतरे में डाल रहा है क्योकि हमारा पर्यावरण धीरे-धीरे नष्ट हो रहा है| ऐसा लगता है की ये एक दिन जीवन के लिए बहोत हानिकारक हो जाएगी क्योकि प्राकृतिक हवा, मिट्टी और पानी प्रदूषित होते जा रहे हैं| हालाँकि यह इंसान, पशु, पौधे और अन्य जीवित चीजों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया है। हानिकारक रसायनों के उपयोग द्वारा कृत्रिम रूप से तैयार उर्वरक जो की मिट्टी को खराब कर रहे हैं परोक्ष रूप से हमारे दैनिक खाना खाने के माध्यम से हमारे शरीर में एकत्र हो रहे हैं। औद्योगिक कंपनियों से उत्पन्न हानिकारक धुँआ दैनिक आधार पर प्राकृतिक हवा को प्रदूषित कर रहे हैं जो की काफी हद तक हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं क्योकि इसे हम हर पल साँस लेते हैं|
इस व्यस्त, भीड़ और उन्नत जीवन में हमे दैनिक आधार पर छोटी छोटी बुरी आदतों का ख्याल रखना चाहिए। यह सत्य है की हर किसी के छोटे से छोटे प्रयास से हम हमारे बिगड़ते पर्यावरण की दिशा में एक बड़ा सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। हम हमारे स्वार्थ के लिए और हमारे विनाशकारी इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का गलत उपयोग नहीं करना चाहिए। हम हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास करना चाहिए लेकिन हमेशा यह सुनिश्चित रहे की भविष्य में हमारे पर्यावरण को इससे कोई नुकसान न हो। हमें सुनिश्चित होना चाहिए की नई तकनीक हमारे पारिस्थितिकी संतुलन को कभी गड़बड़ न करे|
Answer:
एक भौगोलिक क्षेत्र या प्राकृतिक संसार जिसके अंतगर्त हवा और जल, पशु-पक्षी आदि आते है, जो कि मानवीय गतिविधियो द्वारा प्रभावित हो रहे हो उसे पर्यावरण कहते है। मानव जाति के शहरीकरण और औद्योगिकरण की घटना के कारण चिकित्सा, उद्योग और सामाजिक क्षेत्र में काफी तेज विकास हुआ है, जिससे की प्राकृतिक स्थान कंक्रीट के भवनो और सड़को में बदलते जा रहे है। हालांकि इन प्राकृतिक संसाधनो पर हमारी भोजन, पीने के पानी और कृषि की निर्भरता अभी भी बनी हुई है। प्रकृति के ऊपर हमारी निर्भरता इतने ज्यादे है कि अगर हमने इसके संसाधनो के रक्षा का प्रयास अभी से नही शुरु किया तो हमारा अस्तित्व भी खतरे में पड़ जायेगा।
इन प्राकृतिक संसाधनो को मुख्यतः दो श्रेणियों नवकरणीय और अनवकरणीय में बांटा जा सकता है। नवकरणीय प्राकृतिक संसाधन वह संसाधन है, जिनकी प्राकृतिक रुप से फिर से प्राप्ती की जा सकती हो, जैसे कि पानी, जंगल, फसले, इत्यादि। इसके विपरीत गैर-नवकरणीय संसाधन वह संसाधन है जिन्हे प्राकृतिक रुप से फिर से नही प्राप्त किया जा सकता जैसे कि तेल, खनिज आदि। इसके साथ ही यह एक संकट इसलिए भी बन गया है क्योंकि वर्तमान में इनका उपयोग भी बहुत तेजी के साथ किया जा रहा है।
इन सभी प्राकृतिक संसाधनो के तेजी से खत्म होने का मुख्य कारण तेजी से हो रही जनसंख्या वृद्धि और विशेष तथा कुलीन वर्गो में संसाधनो का बढ़ रहा उपभोग है। इसके वजह से मात्र वन्यजीवों और पेड़-पौधो की ही हानि नही हुई है, बल्कि की पूरे पर्यावरण पर संकट खड़ा हो गया है। इसलिए यह वह समय है जब हमें अपने प्राकृतिक संसाधनो का अंधाधुंध दुरुपयोग रोककर, इनका विकेकपूर्ण तरीके से उपयोग करने की आवश्यकता है। जिससे हम इन्हे अपने आने वाली पीढ़ीयो के लिए भी बचाकर रख सके और एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सके।
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