How to control pollution in hinidi
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प्रकृति में उपस्थित सभी प्रकार के जीवधारी अपनी वृद्धि, विकास तथा सुव्यवस्थित एवं सुचारू जीवन-चक्र को चलाते हैं। इसके लिए उन्हें ‘संतुलित वातावरण’ पर निर्भर रहना पड़ता है। वातावरण का एक निश्चित संगठन होता है तथा उसमें सभी प्रकार के जैविक एवं अजैविक पदार्थ एक निश्चित अनुपात में पाए जाते हैं। ऐसे वातावरण को ‘संतुलित वातावरण’ कहते हैं। कभी-कभी वातावरण में एक या अनेक घटकों की प्रतिशत मात्रा किसी कारणवश या तो कम हो जाती है अथवा बढ़ जाती है या वातावरण में अन्य हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाता है, जिसके कारण पर्यावरण प्रदूषण हो जाता है। यह प्रदूषित पर्यावरण जीवधारियों के लिए अत्यधिक हानिकारक होता है। यह हवा, पानी, मिट्टी, वायुमंडल आदि को प्रभावित करता है। इसे ही ‘पर्यावरण प्रदूषण’ कहते हैं।
‘इस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण, वायु, जल एवं स्थल की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक विशेषताओं में होने वाला वह अवांछनीय परिवर्तन है, जो मानव एवं उसके लिए लाभकारी तथा अन्य जंतुओं, पेड़-पौधों, औद्योगिक तथा दूसरे कच्चे माल इत्यादि को किसी भी रूप में हानि पहुंचाता है।’
दूसरे शब्दों में, ‘पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक घटकों में होने वाला किसी भी प्रकार का परिवर्तन ‘पर्यावरण प्रदूषण’ कहलाता है।’
Explanation:
‘प्रदूषण एक प्रकार का अत्यंत धीमा जहर है, जो हवा, पानी, धूल आदि के माध्यम से न केवल मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसे रुग्ण बना देता है, वरन् जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और वनस्पतियों को भी सड़ा-गलाकर नष्ट कर देता है। आज अर्थात् प्रदूषण के कारण ही विश्व में प्राणियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इसी कारण बहुत से प्राणी, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, वन्य प्राणी इस संसार से विलुप्त हो गए हैं, उनका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। यही नहीं प्रदूषण अनेक भयानक बीमारियों को जन्म देता है। कैंसर, तपेदिक, रक्तचाप, शुगर, एंसीफिलायटिस, स्नोलिया, दमा, हैजा, मलेरिया, चर्मरोग, नेत्ररोग और स्वाइन फ्लू, जिससे सारा विश्व भयाक्रांत है, इसी प्रदूषण का प्रतिफल है। आज पूरा पर्यावरण बीमार है। हम आज बीमार पर्यावरण में जी रहे हैं। अर्थात् हम सब किसी-न-किसी बीमारी से ग्रसित हैं। आज सारे संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो बीमार न हो। प्रदूषण के कारण आज बहुत बड़ा संकट उपस्थित हो गया है। यूरोप के यंत्र-प्रधान देशों में तो वैज्ञानिकों ने बहुत पहले ही इसके विरुद्ध चेतावनी देनी शुरू कर दी थी, परंतु उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। फलतः आज सारा विश्व इसके कारण चिंतित है। सन् 1972 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, इस समस्या के निदान के लिए विश्व के अनेक देशों ने मिलकर विचार किया, जिसमें भारत भी सम्मिलित था।
विज्ञान का उपयोग, प्रकृति का अंधाधुंध दोहन, अवैध खनन, गलत निर्माण तथा विनाशकारी पदार्थों के लिए किया जा रहा है। इससे वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है। प्रकृति और प्राणीमात्र का जीवन संकट में पड़ गया है। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले अनेक प्रमुख प्रदूषक हैं, इन पर चर्चा करने से पहले हम यह जान लें कि प्रदूषक पदार्थ किसे कहते हैं?