Hindi, asked by Niladri977, 1 year ago

how you have spent your durga puja vacation in hindi about 500 words for project​

Answers

Answered by siddhartha6716
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Explanation:

how you have spent your durga puja vacation in hindi about 500 words for project

हम यहाँ विभिन्न शब्द सीमाओं में विद्यार्थियों की निबंध लेखन में मदद करने के उद्देश्य से दुर्गा पूजा पर कुछ निबंध उपलब्ध करा रहे हैं। आजकल, स्कूल या कलेजों में शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों में किसी भी विषय पर कौशल या ज्ञान को बढ़ाने के लिए निबंध लेखन या पैराग्राफ लेखन को आमतौर पर रणनीति के रुप में प्रयोग किया जाता है। यहाँ उपलब्ध सभी दुर्गा पूजा पर निबंध सरल और आसान वाक्यों में विद्यार्थियों के लिए पेशे वर लेखकों के द्वारा लिखे गए हैं। विद्यार्थी कोई भी दुर्गा पूजा पर निबंध को अपनी आवश्यकता और जरूरत के अनुसार चुन सकते हैं:

दुर्गा पूजा हिन्दुओं के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, यह उत्सव 10 दिनों तक चलता है लेकिन माँ दुर्गा की मूर्ति को सातवें दिन से पूजा की जाती है, आखिरी के तीन दिन ये पूजा और भी धूम धाम से मनाया जाता है। यह हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा हर साल महान उत्साह और विश्वास के साथ मनाया जाता है। यह एक धार्मिक त्योहार है, जिसके बहुत से महत्व है। यह हर साल पतझड़ के मौसम में आता है।

माँ दुर्गा को शक्ति की देवी कहा जाता है। कई जगह इस पर्व में मेला और मीना बाजार लगता है। इस त्योहार के दौरान, देवी दुर्गा की लोगों द्वारा पूरे नौ दिनों तक पूजा की जाती है। त्योहार के अन्त में, देवी दुर्गा की मूर्ति को नदी या पानी के टैंक में विसर्जित किया जाता है। कुछ लोग पूरे नौ दिनों का उपवास रखते हैं हालांकि, कुछ लोग केवल पहले दिन और आखिरी दिन ही उपवास रखते हैं। लोगों का विश्वास है कि, ऐसा करने से उन्हें देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होगा। उनका विश्वास होता है कि, दुर्गा माता उन्हें सभी समस्याओं और नकारात्मक ऊर्जा से दूर रखेंगी।

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Answered by rishika79
5

Answer:

Explanation:

हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक दुर्गा पूजा भी है। यह दुर्गोत्सव या षष्ठोत्सव के नाम से भी जाना जाता है, जिनमें से छः दिन महालय, षष्ठी, महा-सप्तमी, महा-अष्टमी, महा-नवमी और विजयादशमी के रूप में मनाए जाते हैं। देवी दुर्गा की इस त्योहार के सभी दिनों में पूजा की जाती है। यह आमतौर पर, हिन्दू कैलंडर के अनुसार, अश्विन महीने में आता है। देवी दुर्गा के दस हाथ हैं और उनके प्रत्येक हाथ में अलग-अलग हथियार है। लोग देवी दुर्गा की पूजा बुराई की शक्ति से सुरक्षित होने के लिए करते हैं।

दुर्गा पूजा के बारे में

दुर्गा पूजा अश्विन माह में चाँदनी रात में (शुक्ल पक्ष में) छः से नौ दिन तक की जाती है। दसवाँ दिन विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन देवी दुर्गा ने एक राक्षस के ऊपर विजय प्राप्त की थी। यह त्योहार बुराई, राक्षस महिषासुर पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। बंगाल के लोग देवी दुर्गा को दुर्गोत्सनी अर्थात् बुराई की विनाशक और भक्तों की रक्षक के रुप में पूजा करते हैं।

यह भारत में बहुत विस्तार से बहुत से स्थानों, जैसे- असम, त्रिपुरा, बिहार, मिथिला, झारखंड, उड़ीसा, मणिपुर, पश्चिमी बंगाल आदि पर मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर यह पाँच दिनों का वार्षिक अवकाश होता है। यह धार्मिक और सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रम है, जो प्रत्येक साल भक्तों द्वारा पूरी भक्ति के साथ मनाया जाता है। रामलीला मैदान में एक बड़ा दुर्गा मेला का आयोजन होता है, जो लोगों की भारी भीड़ को आकर्षित करता है।

मूर्ति का विसर्जन

पूजा के बाद लोग पवित्र जल में देवी की मूर्ति के विसर्जन के समारोह का आयोजन करते हैं। भक्त अपने घरों को उदास चेहरों के साथ लौटते हैं और माता से फिर से अगले साल बहुत से आशीर्वादों के साथ आने की प्रार्थना करते हैं।

दुर्गा पूजा का पर्यावरण पर प्रभाव

लोगों की लापरवाही के कारण, यह पर्यावरण पर बड़े स्तर पर प्रभाव डालता है। माता दुर्गा की मूर्ति को बनाने और रंगने में प्रयोग किए गए पदार्थ (जैसे- सीमेंट, पेरिस का प्लास्टर, प्लास्टिक, विषाक्त पेंट्स, आदि) स्थानीय पानी के स्रोतों में प्रदूषण का कारण बनते हैं। त्योहार के अन्त में, प्रत्यक्ष रुप से मूर्ति का विसर्जन नदी के पानी को प्रदूषित करता है। इस त्योहार से पर्यावरण पर प्रभाव को कम करने के लिए, सभी को प्रयास करने चाहिए और कलाकारों द्वारा पर्यावरण के अनुकूल पदार्थों से बनी मूर्तियों को बनाना चाहिए, भक्तों को सीधे ही मूर्ति को पवित्र गंगा के जल में विसर्जित नहीं करना चाहिए और इस परंपरा को निभाने के लिए कोई अन्य सुरक्षित तरीका निकालना चाहिए। 20 वीं सदी में, हिंदू त्योहारों का व्यावसायीकरण मुख्य पर्यावरण मुद्दों का निर्माण करता है।

गरबा और डांडिया प्रतियोगिता

नवरात्र में डांडिया और गरबा खेलना बहुत ही शुभ और महत्वपूर्ण माना गया है। कई जगह सिन्दूरखेलन का भी रिवाज है। इस पूजा के दौरान विवाहित औरते माँ के पंडाल में सिंदूर के साथ खेलती है। गरबा की तैयारी कई दिन पहले ही शुरू हो जाती है प्रतियोगिताएं रखी जाती है जितने वलों को पुरस्कृत किया जाता है।

निष्कर्ष

पूजा के अंतिम दिन मूर्तियों का विसर्जन बड़े हर्षोल्लास, धूम-धाम से, जुलूस निकाल कर किया जाता है। नगर के विभिन्न स्थानों से प्रतिमा-विसर्जन के जुलूस निकलते हैं और सब किसी न किसी सरोवर या नदी के तट पर पहुँचकर इन प्रतिमाओं का जल में विसर्जन करते हैं। बहुत से गांवों और शहरों में नाटक और रामलीला जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। इन तीन दिनों में पूजा के दौरान लोग दुर्गा पूजा मंडप में फूल, नारियल, अगरबत्ती और फल लेकर जाते हैं और माँ दुर्गा का आशीर्वाद लेते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

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