Hum dadi maa ke liye kya kya karte ho Dadi Maa Hamare liye kya karte hain in Hindi nibandh
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दादी पर निबंध:
मां शब्द जिस से हम सब बहुत ही अछि तरह से परिचित हैं. इसकी गहराई, इसकी महत्वता, इसकी पवित्रता को सब बहुत अच्छी तरह से जानते हैं. यह वो रिश्ता है , जो एक इंसान को उसके अस्तित्व के होने का एहसास दिलाता है. अगर मां नही होती तो , बचा इस दुनिया में आयेगा कैसे.
जब वो इस दुनिया में आयेगा तभी तो बाकी सारे रिश्ते नातों को प्रसिद्ध तरीके से पा सकेगा. लेकिन यहाँ में जिस रिश्ते की बात कर रही हूँ , वो माँ नही दादी माँ है. जिस तरह माँ एक शीतल छाया का एहसास दिलाती है , उसी तरह दादी माँ एक मीठी सी प्यार भरी मिठास है , जो जिस बच्चे को मिलती है , वही उसकी अहमियत को समझ सकता है.
दादी जिसे हर चीज का तजुर्बा दुगना होता है , क्यूंकि वो पापा की माँ होती है , जिसमे ममता के साथ लाड़ प्यार भरा रहता है.वो हर बात पर स्टिक नही होती है मगर माँ के प्यार में ममता ओर अनुशासन दोनो होते हैं. दादी एक बूढ़े बरगद की तरह होती है , जो पूरे घर की जिम्मेदारी संभालती है.
मुझे जब मेरी दादी की छवि याद अाती है , तो आँखों के सामने एक तस्वीर सी घूम जाती है. माथे पर चौड़ी सी लाल बिंदी के साथ , बड़े ही सलीके से बांधी हुई सूती साड़ी जब तक मेरे दादाजी थे तब तक मैने कभी भी चाहे वो कोई भी समय होता सुबह दुपहर शाम , उनका माथा सुना नही देखा. वो एक मजबूत नीम की तरह थी. बच्चों को कहानी सुनाते सुनाते , इतने अच्छे संस्कार डाल देना एक दादी ही कर सकती है. मुझे याद है रात के समय जब भी मेरी नींद खुलती और मुझे डर का एहसास होता,में उन्हे धीरे से पूछते अम्माजी सो गाई क्या और उनका जवाब होता नही. मैने कभी उनके मुख से यह नही सुना की हाँ , और वो रात जब घर में रात में लाइट नही होती थी और तब वो पंखा चलकर मुझे सुलाती थीे और मेैे रात को किसी भी पहर उठती तो देखती कि वो अभी भी पंखा चला रही हैं और फिर वही सुबह वो 4 बजे उठ जाती.
मेरी दादी की छवि एक ऐसी छवि थी जो अनुशासन , नेत्रत्व , ओर ग्यान से परिपूर्ण थी. जहां उनके बनाये नियम ओर ममता की बात आती थी , हमेश नियम ही जीत ते थे. मुझे उनकी यह बात हमेशा लुभाती, की सामने वाला चाहे जित्न् अभी बड़ा आदमी हो , है तो वो हमारी तरह ही इंसान , इसलिये किसी से भी सही बात करने से झिझुकना नही चाहिये.
वो अपने जीवन में पाँचवी पास थी , लेकिन धर्म के ग्यान से लेकर तो विग्यान के ग्यान तक उन्हे पूरा ग्यान था. वो रूडी वादी बिल्कुल नही थी , मगर उनमे अहंकार था. में कहाँ अपनी बात लेकर बैठ गयी , इन सब बातों को करने का मेरा मकसद एक ही था, जहां मानुषय के जीवन में माँ बाप का स्थान सर्वोपरि होता है ,उसी के साथ सॅत दादा दादी के अहमियत भी कम नही होती है.
हम जिसे बचपन कहते हैं , वो माँ के आंचल के साथ साथ दादी की गोद के बिना पूर्ण नही कहलाता है. लेकिन आज परिवार एकांकी रहने लगे हैं. उन्हे किसी की भी दखल अंदाज़ी पसंद नही है , इसलिये इन सब बातों को समझ पायें , यह भी ज़िंदगी के सफर का एक हिस्सा था .
धन्यवाद
अगर आपको मेरा जवाब पसंद है तो कृपया मुझे शानदार सूची में जोड़ें(If you like my answer please add me in brilliant list.)
मां शब्द जिस से हम सब बहुत ही अछि तरह से परिचित हैं. इसकी गहराई, इसकी महत्वता, इसकी पवित्रता को सब बहुत अच्छी तरह से जानते हैं. यह वो रिश्ता है , जो एक इंसान को उसके अस्तित्व के होने का एहसास दिलाता है. अगर मां नही होती तो , बचा इस दुनिया में आयेगा कैसे.
जब वो इस दुनिया में आयेगा तभी तो बाकी सारे रिश्ते नातों को प्रसिद्ध तरीके से पा सकेगा. लेकिन यहाँ में जिस रिश्ते की बात कर रही हूँ , वो माँ नही दादी माँ है. जिस तरह माँ एक शीतल छाया का एहसास दिलाती है , उसी तरह दादी माँ एक मीठी सी प्यार भरी मिठास है , जो जिस बच्चे को मिलती है , वही उसकी अहमियत को समझ सकता है.
दादी जिसे हर चीज का तजुर्बा दुगना होता है , क्यूंकि वो पापा की माँ होती है , जिसमे ममता के साथ लाड़ प्यार भरा रहता है.वो हर बात पर स्टिक नही होती है मगर माँ के प्यार में ममता ओर अनुशासन दोनो होते हैं. दादी एक बूढ़े बरगद की तरह होती है , जो पूरे घर की जिम्मेदारी संभालती है.
मुझे जब मेरी दादी की छवि याद अाती है , तो आँखों के सामने एक तस्वीर सी घूम जाती है. माथे पर चौड़ी सी लाल बिंदी के साथ , बड़े ही सलीके से बांधी हुई सूती साड़ी जब तक मेरे दादाजी थे तब तक मैने कभी भी चाहे वो कोई भी समय होता सुबह दुपहर शाम , उनका माथा सुना नही देखा. वो एक मजबूत नीम की तरह थी. बच्चों को कहानी सुनाते सुनाते , इतने अच्छे संस्कार डाल देना एक दादी ही कर सकती है. मुझे याद है रात के समय जब भी मेरी नींद खुलती और मुझे डर का एहसास होता,में उन्हे धीरे से पूछते अम्माजी सो गाई क्या और उनका जवाब होता नही. मैने कभी उनके मुख से यह नही सुना की हाँ , और वो रात जब घर में रात में लाइट नही होती थी और तब वो पंखा चलकर मुझे सुलाती थीे और मेैे रात को किसी भी पहर उठती तो देखती कि वो अभी भी पंखा चला रही हैं और फिर वही सुबह वो 4 बजे उठ जाती.
मेरी दादी की छवि एक ऐसी छवि थी जो अनुशासन , नेत्रत्व , ओर ग्यान से परिपूर्ण थी. जहां उनके बनाये नियम ओर ममता की बात आती थी , हमेश नियम ही जीत ते थे. मुझे उनकी यह बात हमेशा लुभाती, की सामने वाला चाहे जित्न् अभी बड़ा आदमी हो , है तो वो हमारी तरह ही इंसान , इसलिये किसी से भी सही बात करने से झिझुकना नही चाहिये.
वो अपने जीवन में पाँचवी पास थी , लेकिन धर्म के ग्यान से लेकर तो विग्यान के ग्यान तक उन्हे पूरा ग्यान था. वो रूडी वादी बिल्कुल नही थी , मगर उनमे अहंकार था. में कहाँ अपनी बात लेकर बैठ गयी , इन सब बातों को करने का मेरा मकसद एक ही था, जहां मानुषय के जीवन में माँ बाप का स्थान सर्वोपरि होता है ,उसी के साथ सॅत दादा दादी के अहमियत भी कम नही होती है.
हम जिसे बचपन कहते हैं , वो माँ के आंचल के साथ साथ दादी की गोद के बिना पूर्ण नही कहलाता है. लेकिन आज परिवार एकांकी रहने लगे हैं. उन्हे किसी की भी दखल अंदाज़ी पसंद नही है , इसलिये इन सब बातों को समझ पायें , यह भी ज़िंदगी के सफर का एक हिस्सा था .
धन्यवाद
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