Hindi, asked by anjali9999, 9 months ago

hyy mates i want hindi speech on 'sri krishna ki baal lilaye'.... plzz its urgent and no spammm!​

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Answered by aftab45
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Answer:

कृष्ण एक किंवदंति..., एक कथा..., एक कहानी...। जिसके अनेक रूप और हर रूप की लीला अद्भुत। प्रेम को परिभाषित करने वाले, उसे जीने वाले इस माधव ने जिस क्षेत्र में हाथ रखा वहीं नए कीर्तिमान स्थापित किए।

माँ के लाड़ले, जिनके संपूर्ण व्यक्तित्व में मासूमियत समाई हुई है। कहते तो लोग ईश्वर का अवतार हैं, पर वे बालक हैं तो पूरे बालक। माँ से बचने के लिए कहते हैं- मैया मैंने माखन नहीं खाया। माँ से पूछते हैं- माँ वह राधा इतनी गोरी क्यों है, मैं क्यों काला हूँ? शिकायत करते हैं कि माँ मुझे दाऊ क्यों कहते हैं कि तू मेरी माँ नहीं है। 'यशोदा माँ' जिसे अपने कान्हा से कोई शिकायत नहीं है? उन्हें अपने लल्ला को कुछ नहीं बनाना, वह जैसा है उनके लिए पूरा है।

'मैया कबहुँ बढ़ैगी चोटी।

किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहूँ है छोटी।'

यहाँ तक कि मुख में पूरी पृथ्वी दिखा देने, न जाने कितने मायावियों, राक्षसों का संहार कर देने के बाद भी माँ यशोदा के लिए तो वे घुटने चलते लल्ला ही थे जिनका कभी किसी काम में कोई दोष नहीं होता। सूर के पदों में अनोखी कृष्ण बाल लीलाओं का वर्णन है। सूरदास ने बालक कृष्ण के भावों का मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया जिसने यशोदा के कृष्ण के प्रति वात्सल्य को अमर कर दिया। यशोदा के इस लाल की जिद भी तो उसी की तरह अनोखी थी 'माँ मुझे चाँद चाहिए।'

श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं। वे माँ के सामने रूठने की लीलाएँ करने वाले बालकृष्ण हैं तो अर्जुन को गीता का ज्ञान देने वाले योगेश्वर कृष्ण। इस व्यक्तित्व का सर्वाधिक आकर्षक पहलू दूसरे के निर्णयों का सम्मान है। कृष्ण के मन में सबका सम्मान है। वे मानते हैं कि सभी को अपने अनुसार जीने का अधिकार है।

अपनी बहन के संबंध में लिए गए अपने दाऊ (बलराम) के उस निर्णय का उन्होंने प्रतिकार किया जब दाऊ ने यह तय कर लिया कि वह बहन सुभद्रा का विवाह अपने प्रिय शिष्य दुर्योधन के साथ करेंगे। तब कृष्ण ही ऐसा कह सकते थे कि 'स्वयंवर मेरा है न आपका, तो हम कौन होते हैं सुभद्रा के संबंध में फैसला लेने वाले।' समझाने के बाद भी जब दाऊ नहीं माने तो इतने पूर्ण कृष्ण ही हो सकते हैं कि बहन को अपने प्रेमी के साथ भागने के लिए कह सके।

राजसूय यज्ञ में पत्तल उठाने वाले, अपने रथ के घोड़ों की स्वयं सुश्रूषा करने वाले कान्हा के लिए कोई भी कर्म निषिद्ध नहीं है।

महाभारत युद्ध, जिसके नायक भी वे हैं पर कितनी अनोखी बात है कि इस युद्ध में उन्होंने शस्त्र नहीं उठाए! इस अनूठे व्यक्तित्व को किस ओर पकड़ो कि यह अंक में समा जाए पर कोशिश हर बार अधूरी ही रह जाती है। महाभारत एक विशाल सभ्यता के नष्ट होने की कहानी है। इस घटना के अपयश को श्रीकृष्ण जैसा व्यक्तित्व ही शिरोधार्य कर सकता है।

कितनी बड़ी प्रतीक कथा है जिसमें श्रीकृष्ण ने तय किया कि अब सुधार असंभव है। जब राजभवन में ही स्त्रियों की यह स्थिति है तो बाकी समाज का क्या हाल होगा। राज-दरबार में ही राजवधू का चीरहरण सारे कथित प्रबुद्ध लोगों के सामने हो सकता है तब ऐसे समाज में कोई सुरक्षित भी नहीं है, साथ ही ऐसे समाज को खड़े रहने का कोई अधिकार भी नहीं। इसलिए उन्होंने संदेश दिया- हे अर्जुन उठा शस्त्र! तू तो मात्र निमित्त होगा!

Answered by AffanAsad099
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Hello....

Here's the speech...

हिंदू धर्म में अब त्योहारों का सिलसिला शुरू हो चुका है। रक्षा बंधन के आठ दिन बाद जन्माष्टमी मनाई जाती है ,यानी भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। पृथ्वी पर कई भगवान और देवों ने मानव रुप में जन्म लिया है। उनमें से एक विष्णु के अवतार श्री कृष्ण ने भी जन्म लिया। श्री कृष्ण के बाल्य काल के नटखट अंदाज और लीलाएं सबका मन मोह लेती हैं। इस बार 2 और 3 सितंबर को जन्माष्टी मनाई जाएगी। मथुरा के साथ ही देश के अलग-अलग हिस्सों में भगवान कृष्ण के मंदिर सजने लगे हैं वहीं बाजर भी गुलजार हैं। लेकिन जन्माष्टी से पहले हम जानते हैं,

कृष्ण की लीलाओं के बारे में-

वैसे तो बचपन से ही कहानियों, किताबों और टीवी या फिल्मों के माध्यम से श्री कृष्ण के अलग-अलग लीलाओं और रुपों से परिचित होते रहे हैं। लेकिन आज हम उनके कुछ प्रमुख अवतारों के बारे में नजर डालेंगे।

कारागार में भगवान श्री कृष्ण का जन्म-

श्री कृष्ण का जन्म उनके ही मामा के कारागार में हुआ था। दरअसल कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। एक समय जब वो अपनी बहन को लेकर जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई की देवकी औऱ वासुदेव की आठवी संतान कंस की मृत्यु का कारण बनेगा। इससे कंस बहुत घबरा गया और उसने अपनी बहन और उसके पति वासुदेव को जंजीरों में जकड़ कर कारागार में डाल दिया। इसके बाद वासुदेव और दवकी को एक-एक कर सात संताने हुई और कंस ने उन सबको मार दिया। आखिर में जब उनकी आठवीं संतान यानी कृष्ण का जन्म होने वाला था। उस समय भी कंस ने खास इंतजाम किया था। लेकिन प्रभु की लीला के आगे सारे पहरेदार खड़े-खड़े सो गए। कारगारों के दरवाजे अपने आप खुल गए। जिस समय कृष्ण जी जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी। चारो तरफ़ घना अंधकार छाया हुआ था। भगवान के निर्देशानुसार कष्ण जी को रात में ही वासुदेव ने मथुरा के कारागार से गोकुल में उन्हे नंद बाबा के घर ले गए जहां नन्द बाबा की पत्नी यशोदा को एक कन्या हुई थी। वासुदेव बालक कृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को अपने साथ ले गए।

कृष्ण की बाल लीला-

भगवान श्री कृष्ण बचपन से ही नटखट थे। जितना वो नंद बाबा और यशोदा जी को परेशान करते थे उतना ही वो गांव वालों को भी अपने नटखट अंदाज और लीलाओं से परेशान करते थे। कृष्ण जी अपने दोस्तों के साथ गांव वालों के माखन चुरा कर खा जाते थे। जिसके बाद गांव की महिलाएं और पुरूष कृष्ण की शिकायत लेकर पहुंच जाते थे। तब उन्हें अपनी मां की डांट खानी पड़ती थी। नन्हें कृष्ण को कोई नहीं जानता था कि वो भगवान हैं और यशोदा दी उनकी शिकायत पर उन्हें खूब मारती थीं और बालक कृष्ण उनकी मार का भरपूर आनंद उठाते थे। सूरदास ने इस बर बड़ा हीू सुंदर वर्णन किया है.…

सूरदास ने इस बर बड़ा हीू सुंदर वर्णन किया है.…मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो,

सूरदास ने इस बर बड़ा हीू सुंदर वर्णन किया है.…मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो,भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहिं पठायो ।

Thanks....

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