(i) अंत में रूपा बूढ़ी काकी को खाना क्यों खिलाती है? संक्षेप में लिखिए ।
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बुद्धिराम और रूपा कार्यभार संभालने में बहुत व्यस्त थे। प्रश्न 3. लाडली और बूढ़ी काकी में परस्पर सहानुभूति क्यों थी? लाडली को अपने दोनों भाइयों के डर से अपने हिस्से की मिठाई-चबैना खाने के लिए बढ़ी काकी के सिवा और कोई सरक्षित जगह नहीं थी।
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उत्तर: बूढ़ी काकी को जूठी पत्तलें चाटते देख रूपा रुआंसी हो जाती है और स्वयं को धिक्कारते हुए आत्मालाप करते हुए कहती है कि “काकी ब्राह्मण होकर जूठन चाट रही है। मैं बहुत नीच पतित पापिन और स्वार्थी हूँ कि बेटे के तिलक में सैंकड़ों लोगों को मनुहार कर-करके खिलाया और अपनी काकी सास को पूछा तक नहीं। यह क्या किया मैंने क्योंकि वह असहाय और बेसहारा है। उनसे सब कुछ ले लिया हमने और देने के नाम पर खाना भी नहीं दिया।” इस प्रकार रूपा दौड़कर रसोई खाने का थाल सजाकर लाती है और बूढ़ी काकी को खाना खिलाती है और उनसे माफ़ी भी माँगती है।