(i) अधिकारों के बिना ही हम बेहतर जीवन जी सकते हैं।
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पहले उसका धर्म देखा गया फिर उसकी जाति इसके बाद उस मजदूर की जिंदगी एक सेठ ने अपने हाथों में ले ली. रोज मरने लगा वो तिल-तिलकर, लेकिन उसके मन में अभी भी एक सवाल था ‘क्या धर्म, जाति, वर्ग और व्यवसाय से हटकर सिर्फ एक इंसान होने के नाते उसे जीवन जीने का अधिकार नहीं है’?
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