Biology, asked by pnakaj, 8 months ago

इंडिया ऑफ माय ड्रीम​

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Answered by Anonymous
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अपने देश के प्रति सभी समझदार नागरिकों का अपना एक अलग दृष्टिकोण होता है । वह अपने देश के विषय में चर्चाएँ करता है और चिंतन करता है ।

यहाँ किस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिए, समाज का स्वरूप कैसा हो, लोगों को किस हद् तक अपनी परंपराओं एवं प्राचीन विश्वासों का सम्मान करना चाहिए, आधुनिक समस्याओं का देश किस प्रकार निदान करे आदि सैकड़ों बातें हमें उद्‌वेलित करती रहती हैं ।

अपना देश जिन्हें प्यारा होता है और जितना प्यारा होता है, उसी अनुपात में लोगों के निजी हित गौण होते जाते हैं और राष्ट्रहित सर्वोपरि होता जाता है । जब राष्ट्रहित निजी हित से ऊपर हो जाता है तब राष्ट्र के निर्माण, उसका भविष्य सँवारने के स्वप्नों का सृजन भी आरंभ हो जाता है । मैंने भी अपने राष्ट्र को लेकर कुछ सपने बुने हैं, कुछ निजी विचारों का बीजारोपण किया है ।

हालाँकि राष्ट्र निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है, लेकिन इसमें असंभव जैसा कुछ भी नहीं है । अधिकांश यूरोपीय देशों की संपन्नता तथा जापान जैसे एक छोटे से देश का विश्व आर्थिक क्षितिज पर शक्तिशाली होकर उभरना यह सिद्‌ध करता है कि यदि देश के सभी लोग किसी लक्ष्य के प्रति समर्पित होकर कार्य करें तो उस देश का वर्तमान और भविष्य दोनों सुधर सकता है ।

समस्याग्रस्त तो सभी हैं पर उन समस्याओं को देखने तथा उन्हें सुलझाने का नजरिया सबों का भिन्न-भिन्न है । भारत की सबसे बड़ी समस्या लोगों की कर्महीनता है । हम दूसरों को उपदेश देने में प्रवीण हैं, पर स्वयं उसके विपरीत आचरण कर रहे हैं ।

भारत की आत्मा अभी भी जीवंत है लेकिन लोग अधमरे से हैं । मेरे सपनों का भारत उद्‌यमशील होना चाहिए, अकर्मण्य लोगों को यहाँ कम सम्मान मिलना चाहिए । मगर हम उन लोगों के भाग्य को सराहते हैं जो बिना हाथ-पाँव डुलाए, मुफ्त की रोटी तोड़ रहे होते हैं ।

आजादी के आंदोलन के दौरान गाँधीजी ने लोगों के समक्ष यह बात बारंबार दुहराई थी कि श्रम का सम्मान किए बिना भारत सही मायनों में आजाद नहीं हो सकता । फिर भी ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ वाली हमारी आदत गई नहीं ।हमारे देश में साधु-संतों को बहुत सम्मान दिया जाता है, लोग अंधभक्ति करते हैं मगर अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले व्यापारी व व्यवसायी वर्ग बड़े उपेक्षित से हैं । किसान और मजदूर जो कि अपने खून को पसीना बनाने में नहीं हिचकते, उन्हें जरा भी आदर प्राप्त नहीं है । ये लोग अपनी भूख भी ठीक ढंग से नहीं मिटा पाते । मैंने अपने देश का जो सपना सँजोया है उसमें व्यापारी, किसान व मजदूर बहुत खुशहाली में होंगे ।

भारत में एक महान् राष्ट्र बनने की पूरी क्षमता है । इसके लिए प्रत्येक नागरिक को अपनी निजी जिम्मेदारी अवश्य कबूल करनी होगी । मानव संसाधनों और प्राकृतिक संसाधनों का एक सेतु बनाकर इसे विकास के साथ जोड़ना होगा । आजादी के बाद से लेकर अब तक केवल शहरी क्षेत्र के विकास पर ध्यान दिया गया है लेकिन गाँव जब तक उपेक्षित रहेंगे भारत का कल्याण नहीं हो सकता ।

गाँवों में सिंचाई की सुविधा का होना सबसे जरूरी है ताकि किसान वर्षा की अनिश्चितता से मुक्त हो सकें । शहरों से लेकर गाँवों तक जोड़ने वाली बारहमासी सड़कों, बिजली तथा टेलीफोन सेवा की उपलब्धता हर जगह होनी चाहिए । गाँवों में स्कूल तथा स्वास्थ्य सेवा का ऐसा संजाल होना चाहिए जिससे लोगों को अपने बच्चों की शिक्षा तथा सबके स्वास्थ्य को लेकर एक प्रकार की निश्चिंतता हो ।

ग्रामवासी हर छोटे काम के लिए शहरों का रुख करने के लिए मजबूर न हों, इसका पूरा-पूरा ध्यान रखा जाना चाहिऐ । कृषि विशेषज्ञ गाँव-गाँव घूमकर खेती के पूरे तंत्र की जाँच करें, किसानों को उचित मशवरा दें यह स्थिति ही आदर्श है न कि किसान अपनी छोटी-छोटी समस्याओं के लिए अंचल तथा जिला कार्यालयों का चक्कर लगाएँ।

पशुओं की बीमारियों का इलाज पशु चिकित्सक गाँव में जाकर करें, इसकी व्यवस्था भी आवश्यक है । ये सभी बुनियादी कार्य थे मगर आजादी के बाद से लेकर अब तक इसके बारे में कुछ नहीं किया जा सका । मैं अपने सपने में जो भारत देखता हूँ उसमें ग्रामीण विकास के ये सभी पहलू अहम् हैं ।

यदि हम अपने पड़ोसी देश चीन की ओर देखें तो यह आभास होता है कि यह देश एक गैर-लोकतांत्रिक देश होते हुए भी हमसे काफी आगे निकल चुका है । हमारे देश में विकास के मार्ग में नौकरशाही और लालफीताशाही के रूप में दो बड़े अवरोधक खड़े हैं । हमारी राजनीतिक व्यवस्था किसी दीर्घनीति और दूरदृष्टि के अभाव में इन अवरोधों को हटाने में असफल रही है । ऊपर से नीचे तक का सरकारी तंत्र न केवल भ्रष्टाचार में लिप्त है अपितु अक्षम भी है ।

जनता की छोटी-छोटी समस्याएँ भी नहीं सुलझ पाती हैं क्योंकि हर कोई निजता की भावना से काम कर रहा है । इस संबंध में मेरा दृष्टिकोण बिलकुल स्पष्ट है कि जन जागृति और स्वतंत्रता आंदोलन के जज्बे को पुन: उभारने की आवश्यकता है । जब व्यक्ति के मापदंड उच्च होंगे तब वह निश्चित ही अपने परिवेश की जकड़नों को तोड़ने के लिए उद्‌यत होगा । लोगों को अपने प्रति ईमानदार होना ही चाहिए, इसी में भारत के गौरव की पुनर्स्थापना का मंत्र छिपा है ।

‘सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा’ यह प्रेरणादायी उद्‌बोधन एक हकीकत बने, एक सच्ची बात हो जाए, उसी समय हम अधिक गौरव का अनुभव कर सकेंगे । भारत कभी जगतगुरु था, यह सत्य है मगर आज हम क्या हैं, आज हम दुनिया में कहाँ खड़े हैं, यह अधिक महत्वपूर्ण है । हमारा पुराना गौरव हमारे अंदर प्रेरणा भर सकता है मगर केवल सद्ईच्छाएँ ही भारत को खुशहाल बनाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं ।

कुल मिलाकर मेरे सपनों का भारत एक सुखी-संपन्न, शिक्षित, कर्मनिष्ठ और आत्मनिर्भर भारत है । जहाँ के लोग अपनी मर्यादाओं का पालन करते हों, उनमें विश्व बंधुत्व की भावना हो, वे दूसरे धर्मवालों का समान रूप से आदर करना जानते हों, शोषण और अत्याचार को जो बर्दाश्त न करें, लोगों में दया और परोपकार की भावना हो तथा प्रेममय जीवन जिनका लक्ष्य हो ,मैं ऐसे भारत की कल्पना करता हूँ ।

Answered by amishayesare
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Explanation:

The India in my dream is in full security.every girl should be independent .no any social objection on her freedom. every person is in employment. evry child has their health facilities in affordable range nd their educational rights. evry one has their housing. crime rate will be very less in my dream India. there is awareness of all superstitions. poverty this word will be not in my dream india nd most important is no own should argue with each other on basis of cast,religion.

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