i) गंगा के आस-पास के दृश्य का वर्णन कीजिए। chapte gheesa
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भारत की सर्वाधिक महिमामयी नदी ‘गंगा’ आकाश, धरती, पाताल तीनों लोकों में प्रवाहित होती है। आकाश गंगा या स्वर्ग गंगा, त्रिपथगा, पाताल गंगा, हेमवती, भागीरथी, जाहन्वी, मंदाकिनी, अलकनंदा आदि अनेकानेक नामों से पुकारी जाने वाली गंगा हिमालय के उत्तरी भाग गंगोत्री से निकलकर नारायण पर्वत के पार्श्व से ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, प्रयाग, विंध्याचल, वाराणसी, पाटिलीपुत्र, मंदरगिरी, भागलपुर, अंगदेश व बंगदेश को सिंचित करती हुई गंगासागर में समाहित हो जाती हैं। वेद-पुराणों में कई नामों से गंगा का विशद् वर्णन उपलब्ध है। सागर के साठ हजार पुत्रों को तारने वाले इस गंगा जल में कभी कीड़े नहीं पड़ते और यह कभी बासी या दूषित नहीं होती। रूपकुंड के समीप मंदाकिनी नाम से इसका उद्गम एक बर्फीले झरने से हुआ है जो शनैःशनैः गर्जन-तर्जन करती हुई अलकनंदा और नंद प्रयाग में समा गई है। केल गंगा, विनायक के समीप से निकल कर पिंडार गंगा में देवल को महिमा मंडित करती है। समस्त प्रयागों में देवल का स्थान सर्वोपरि है। यहां शिवजी का सुन्दर मंदिर दर्शनीय है। देवल के लिए अल्मोड़ा औऱ कर्ण प्रयाग से पहुंचना सुगम है। गंगा देव प्रयाग से भागीरथी नाम से जानी जाती है। रुद्र प्रयाग में मंदाकिनी (गंगा) और अलकनंदा (गंगा) का संगम दर्शनीय है। जहां अलकनंदा में माना के पास सरस्वती समाहित होती हैं, उसे केशव प्रयाग कहा जाता है।
भारत में गंगा को “गंगा मैया” के नाम से जाना जाता है। वह पवित्र पावनी मानी जाती है। इसके तट पर वैदिक ऋचाओं से गुजरति आश्रम पनपे व आर्यों के बड़े-बड़े साम्राज्य स्थापित हुए। व्यास और बाल्मीकी के महाकाव्यों से, कालिदास और तुलसी की कविताओं से अनुप्राणित गंगा से पौराणिक साहित्य भी भंडार की तरह जुड़ा है।
कहा जाता है कि गंगा देवसरिता थी। उसके पिता हिमवान से देवताओं ने आवश्यकतावश मांग लिया था। एक बार उनके अधोवस्त्र उठने से जब राजार्षि महाभिष कामुक हो उठे तो पितामह ब्रह्मा ने दोनों को ही मृत्युलोक में जलधारण करने का शाप दे दिया।
Explanation:
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भारत की सर्वाधिक महिमामयी नदी ‘गंगा’ आकाश, धरती, पाताल तीनों लोकों में प्रवाहित होती है। आकाश गंगा या स्वर्ग गंगा, त्रिपथगा, पाताल गंगा, हेमवती, भागीरथी, जाहन्वी, मंदाकिनी, अलकनंदा आदि अनेकानेक नामों से पुकारी जाने वाली गंगा हिमालय के उत्तरी भाग गंगोत्री से निकलकर नारायण पर्वत के पार्श्व से ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, प्रयाग, विंध्याचल, वाराणसी, पाटिलीपुत्र, मंदरगिरी, भागलपुर, अंगदेश व बंगदेश को सिंचित करती हुई गंगासागर में समाहित हो जाती हैं। वेद-पुराणों में कई नामों से गंगा का विशद् वर्णन उपलब्ध है। सागर के साठ हजार पुत्रों को तारने वाले इस गंगा जल में कभी कीड़े नहीं पड़ते और यह कभी बासी या दूषित नहीं होती। रूपकुंड के समीप मंदाकिनी नाम से इसका उद्गम एक बर्फीले झरने से हुआ है जो शनैःशनैः गर्जन-तर्जन करती हुई अलकनंदा और नंद प्रयाग में समा गई है। केल गंगा, विनायक के समीप से निकल कर पिंडार गंगा में देवल को महिमा मंडित करती है। समस्त प्रयागों में देवल का स्थान सर्वोपरि है। यहां शिवजी का सुन्दर मंदिर दर्शनीय है। देवल के लिए अल्मोड़ा औऱ कर्ण प्रयाग से पहुंचना सुगम है। गंगा देव प्रयाग से भागीरथी नाम से जानी जाती है। रुद्र प्रयाग में मंदाकिनी (गंगा) और अलकनंदा (गंगा) का संगम दर्शनीय है। जहां अलकनंदा में माना के पास सरस्वती समाहित होती हैं, उसे केशव प्रयाग कहा जाता है।
भारत में गंगा को “गंगा मैया” के नाम से जाना जाता है। वह पवित्र पावनी मानी जाती है। इसके तट पर वैदिक ऋचाओं से गुजरति आश्रम पनपे व आर्यों के बड़े-बड़े साम्राज्य स्थापित हुए। व्यास और बाल्मीकी के महाकाव्यों से, कालिदास और तुलसी की कविताओं से अनुप्राणित गंगा से पौराणिक साहित्य भी भंडार की तरह जुड़ा है।
कहा जाता है कि गंगा देवसरिता थी। उसके पिता हिमवान से देवताओं ने आवश्यकतावश मांग लिया था। एक बार उनके अधोवस्त्र उठने से जब राजार्षि महाभिष कामुक हो उठे तो पितामह ब्रह्मा ने दोनों को ही मृत्युलोक में जलधारण करने का शाप दे दिया।
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