i) कालिदासस्य परिचयं लिखत।
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कविकुलगुरोः महाकवेः कालिदासस्य जन्म कुत्र कदा चाभूत् इति विषये न किमपि निश्चिततया वक्तुं शक्रुमः। अस्य जन्म विषये जन्मस्थानविषये च विचारकविदुषां वैमत्यं विद्यते। महाकवि: कालिदास: न केवल भारतस्य प्रत्युत विश्वस्य श्रेष्ठ: कवि: अस्ति।
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महाकवि कालिदास का जीवन परिचय –
महाकवि कालिदास का जीवन परिचय
– कालिदास भारत के श्रेष्ठतम कवियों में से एक थे. यह संस्कृत भाषा के विद्वान भी थे. इनको राजा विक्रमादित्य के दरबार के नौरत्न में शामिल किया गया था. श्रींगार रस की रचनाओं के लिए जाने जाते हैं. इन्होनें श्रृंगार रस की रचनाए इस प्रकार की हैं. की जो एक बार पढ़ ले वह अपने आप इनके भाव से जागृत हो जाएगा. इन्होनें अपने साहित्य में आदर्शवादी और नैतिक मूल्य का विशेष ध्यान रखा हैं. इनकी रचनाओं को कई भाषा में प्रकाशित किया गया हैं. उनकी रचनाएँ भारत की पौराणिक कथाओं पर आधारित हैं. अभिज्ञानशाकुन्तल इनकी सबसे ज्यादा प्रसिद्ध रचना हैं. इनके दुवरा लिखे गए नाटक को विश्व के अनेकों भाषा में अनुवाद किया गया हैं.
महाकवि कालिदास का जीवन परिचय –
कालिदास के जन्म को लेकर कोई ठोस साबुत और जानकारी या कोई दस्तावेज़ नहीं हैं. अनेक विद्वानों का इनके जन्म को लेकर अलग – अलग मत हैं. कुछ विद्वान दुवारा 150 ईपु० से लेकर 400 ईo के बीच कालिदास के जन्म को माना जाता हैं. कुछ विद्वानों दुवारा तो गुप्त काल के समय को इनका जन्म माना जाता हैं. क्योकिं कालिदास के नाटक ‘मालविकाग्निमित्र’ में अग्निमित्र का वर्णन मिलता हैं. जो 170 ईपूo का शासक था. एक और कालिदास का उल्लेख वानभट्ट की ‘हर्षचरितम’ में मिलती हैं. जो छठी शताब्दी की रचना हैं. इसलिए इन सभी साक्ष्य को मानकर कालिदास के जन्म का समय पहली शताब्दी ईपुo से तीसरी शताब्दी के बीच माना जाता हैं.
कालिदास के जन्म स्थान को लेकर भी अनेको विद्वानों और इतिहासकारों का अलग – अलग मत हैं. कालिदास ने अपने खंड काव्य मेघदूत में उज्जैन शहर का जिक्र किया हैं. जो मध्यप्रदेश राज्य में हैं. इस लिए कुछ इतिहासकार और विद्वानों का मत हैं की इनका जन्म स्थान उज्जैन ही हैं. कुछ इतिहासकारों का मानना हैं की कालिदास का जन्म उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के कविल्का गांव में हुआ था. यहाँ पर सरकार दुवारा कालिदास की एक प्रतिमा और सभागार का निर्माण करवाया गया हैं.
कालिदास का विवाह राजकुमारी विद्योत्तमा से हुआ था. जो एक विद्वान ज्ञानी थी. कालिदास और विद्योत्तमा की शादी को एक संयोग माना जाता हैं. क्योकिं राजकुमारी विद्योत्तमा को अपने ज्ञान और बुद्धि पर बहुत ही घमंड था. वह कहती थी की जो उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा उसी से वह शादी करेगी.
विद्योत्तमा से शादी की इच्छा रखने वाले बहुत सरे विद्वान विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ में में हार गए. इसलिए कुछ विद्वान ने मिलकर अपने हार का बदला लेने के लिए कालिदास का शास्त्रार्थ विद्योत्तमा से कराया.
कालिदास एक मुर्ख व्यक्ति थे. क्योकिं जब सारे विद्वान मिलकर एक अज्ञानी मुर्ख की तलास कर रहे थे. तब उन्हें कालिदास दिखाई दिए जो पेड़ की जिस टहनी पर बैठे थे उसी को काट रहे थे. तब सभी को लगा इससे ज्यादा मुर्ख इस दुनिया में नहीं मिलेगा. तब कालिदास को विद्योत्तमा के पास ले गए और बोले की कालिदास हमलोगों के गुरु महाराज हैं. जो आज मौन व्रत किये हुए हैं. आप इनसे मौन शब्दवाली सांकेतिक भाषा में शास्त्रार्थ कर सकती हैं.
जब विद्योत्तमा कालिदास से मौन शब्दवाली में इशारों से प्रश्न पूछती तो उसका जवाब भी कालिदास सांकेतिक भाषा में देते. जिसको वहा पर उपस्थित सारे विद्वान उस प्रश्न के जवाब को सही तर्क देते हुए विद्योत्तमा को समझा देते.
विद्योत्तमा ने कालिदास से एक प्रश्न सांकेतिक भाषा में पूछा प्रश्न के रूप में विद्योत्तमा ने कालिदास को खाली हथेली दिखाई जिसके कालिदास ने समझा की वह मुझे थप्पड़ मारने के लिए दिखा रही हैं. इस प्रश्न के जवाब में कालिदास ने मुट्ठी को बंद करके घुसा दिखाया. जिससे विद्योत्तमा समझ बैठी की कालिदास के इशारा से पता चलता हैं की पांच इन्द्रियाँ अलग – अलग हैं. लेकिन सभी मन के दुआर संचालित होती हैं. इस जवाब से प्रभावित होकर विद्योत्तमा ने कालिदास से शादी करने के लिए राजी हो गई. और फिर शादी कर लिया.
कुछ दिनों के बाद विद्योत्तमा को पता चल गया की कालिदास एक मंद बुद्धि और मुर्ख इन्सान हैं. तब विद्योत्तमा ने कालिदास को धिरकार कर घर से बाहर निकाल दिया. और कहा की जब तक तुम पंडित नहीं बन जाते हो तब तक घर वापस नहीं आना. कालिदास ने पत्नी से आपनित होने के बाद यह ठान लिया की जब तक वह एक ज्ञानी पंडित नहीं बन जाते तब तक वह घर वापस नहीं लौटेंगे. इसी संकल्प के साथ उन्होंने घर का त्याग कर दिया. और माँ कलि के उपाशाक बन गए औ माँ कलि के आशिर्वाद से एक परम ज्ञानी पंडित और साहित्य के विद्वान बन गए. उसके बाद वह घर लौट आए. जब वह घर पहुँच कर पत्नी को आवाज लगाई तो विद्योत्तमा को आवाज सुन कर हो पता चल गया की आज कोई दरवाजे पर परम ज्ञानी इन्सान आया हैं.
कालिदास की रचनाएँ
कालिदास ने अनेकों रचनाएँ लिखी हैं.