(i)कबीर पूँजी साह की तूं जिनि खोवै ख्वार।
खरी बिगूचनि होइगी, लेखा देती बार।
(ii)
कबीर माला काठ की कहि समझावै तोहि।
मन न फिरावै आपणों, कहा फिरावै मोहि।।
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भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने
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