Hindi, asked by aradhanasingh3172006, 9 months ago

(i) कबीरदास ने गुरु को गोविंद से ऊँचा स्थान क्यों दिया है ?
(ii) मनुष्य के हृदय में "मैं" और "हरि" का वास एक साथ संभव क्यों नहीं है ? समझाकर लिखिए।
(iii) "ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय" - पंक्ति में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
(iv) पत्थर पूजने से यदि भगवान की प्राप्ति होती है, तो इसले लिए कबीर क्या करने को तैयार हैं और क्यों ?​

Answers

Answered by bangia1951
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Explanation:

1) कबीर दास जी ने गुरु को भगवान से ऊंचा स्थान दिया है क्योंकि भगवान के पास पहुंचने के लिए गुरु की शिक्षा जरूरी होती है।

2) जेसएयरटेल में मैन की भावना होती है अहम की भावना होती है उसमें ईश्वर का निवास नहीं हो सकता।

3) भगवानभगवान का वास प्रत्येक मनुष्य के हृदय में होता है यह नहीं कि सबसे ऊंचाई पर जाकर ईश्वर को पुकारा जाए ईश्वर को हृदय में ही वास करता है।

4)कवि कबीरदास जी कहते हैं कि अगर पत्थर को पूजने से ही हल मिलता है तो मैं पूरा पर्वती पूजने लग जाऊं इसलिए कहा गया है कि पत्थर के पूजन ऐसे प्रभु नहीं मिलते हैं।

Answered by Rameshjangid
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(i) कबीरदास ने सदैव गुरु का स्थान ईश्वर अर्थात गोविंद से ही श्रेष्ठ माना है l उन्होंने ऐसा इसलिए माना है क्योंकि एक गुरु ही हमें सर्वप्रथम ज्ञान प्रदान करता है l वह हमें सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है और इस सांसारिक मोह-माया से मुक्त कराता है।

(ii) यदि एक मनुष्य जिसके हृदय में हमेशा अहंकार और दम भरा रहेगा वह कभी भी ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाएगा क्योंकि ईश्वर की प्राप्ति अहंकार के शून्य होने और अटूट भक्ति से ही हो सकती है। मनुष्य के जीवन में अहंकार ही ईश्वर की प्राप्ति में सबसे बड़ी रुकावट होती है। इसलिए जिस दिन मनुष्य अपने भीतर के अहंकार का त्याग देगा उस दिन उसके हृदय में ईश्वर का वास हो होगा l

(iii) प्रस्तुत पंक्ति में कबीरदास ने मुसलमानों के धार्मिक पाखंड करने पर व्यंग्यात्मक प्रहार किया है। वे कहते हैं कि एक मौलवी जो एक एक कंकड़-पत्थर जोड़कर मस्जिद बनाता है और रोज़ सुबह वहां जाकर ज़ोर-ज़ोर से अजान देकर अपने खुदा को पुकारता है l मानो जैसे कि वह बहरा हो गया है l इस पंक्ति के माध्यम से कबीरदास कहना चाहते हैं कि ईश्वर तो सर्वव्यापी हैं इसीलिए हमें उनकी भक्ति शांत मन से ही करनी चाहिए।

(iv) यदि पत्थर से बने ईश्वर की पूजा करने से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है तो कबीरदास सभी पत्थरों की पूजा करने को तैयार हैं। क्योंकि ऐसा करने से ईश्वर की प्राप्ति होगी l

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