i) मुगल प्रशासन की विशेषताओ को बताओ। उसमें मनसबदारों की क्या
भूमिका थी
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मंगोलों और तुर्कों के वंशज मुगल शासकों ने भारत में लगभग 300 सालों तक शासन किया. इस वंश से जुड़ी अनेक कहानियां प्रचलित हैं. इनकी वीरता की, विजय की, गौरवशाली साम्राज्य की, और क्रूरता की भी.
इस तरह से मुगल शासन ने भारत के धर्म, संस्कृति, समाज, राजनीति और प्रशासन में अपनी छाप छोड़ी.
कुछ का तो हम आज भी अनुसरण कर रहे हैं.
मुगलों के सुदृढ़ प्रशासन का आधार थी ऐतिहासिक मनसबदारी प्रथा. मनसबदारी ही वो व्यवस्था थी, जिसने एक सुव्यवस्थित और शक्तिशाली साम्राज्य की नींव डाली थी.
ये सैनिक नौकरशाही पर आधारित व्यवस्था थी. इस व्यवस्था की कई दिलचस्प कहानियां और घटनाएं हैं.
इसी से जुड़ी है मुगलों के उत्थान और पतन की कहानी –
अकबर से शुरू हुई मनसबदारी!
मनसब, दरअसल फारसी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब पद, ओहदा या दर्जा होता है.
मनसब व्यवस्था की शुरूआत खलीफा अब्बा सईद नाम के शख्स ने किया था. लेकिन कब, इसके बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है.
बाद में मंगोल शासक चंगेज खां ने अपने सैन्य प्रशासन का गठन, इस व्यवस्था के अंतर्गत ही किया था. उसकी सेना दशमलव प्रणाली पर आधारित थी. इसकी सबसे छोटी इकाई 10 थी और सबसे बड़ी ईकाई 10,000.
खैर, हम मुगलों पर लौटते हैं.
तीसरे और महान मुगल बादशाह कहे जाने वाले जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर ने सबसे पहले भारत में मनसबदारी व्यवस्था की नींव रखी थी.
अकबर ने 1552 में सत्ता संभाली थी, जब वो केवल 14 साल का था.
शुरूआत में कुछ सालोंं तक तो अकबर दूसरों के नियंत्रण में रहा, लेकिन जब उसकी उम्र लगभग 21 साल हुई, तो उसने जल्द ही अपने बाधक बने लोगों को रास्ते से हटाया और सत्ता का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया.
भारत में बिखरी राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर वो समझ गया था कि यहां शासन चलाने के लिए सैन्य प्रणाली पर आधारित एक शक्तिशाली प्रशासनिक व्यवस्था की जरूरत है.
इसलिए उसने मनसबदारी व्यवस्था की शुरूआत की.
इसके तहत उसने अधिकारियों की नियुक्तियां की और उनको सैनिक और असैनिक दोनोंं तरह के अधिकार सौंपे.