I.निम्न लिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर लिखिए - 10
खेल हमारे शरीर औए मन- मस्तिष्क का समुचित विकास करते हैं | खेलने से शरीर पुष्ट होता है,
मांसपेशियाँ दृढ़ और मज़बूत बनती हैं ; शरीर में समुचित गठाव आता है ;शरीर की सभी इन्द्रियाँ सक्रिय
रहती है ;रक्त का संचार उचित रूप से सारे शरीर में होता है | खुली हवा में खेलने से जो परिश्रम होता है,
उसमें फेफड़ों में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में जाती है | इससे फेफड़े ही नहीं, सारा शरीर नई शक्ति से भर जाता है | खुलकर भूख लगती है,जठराग्नि प्रदीप्त हो जाती है और जो खाते हैं – पाच जाता है | इससे नया रक्त बनता है | भाव यह है कि खेलकूद से शरीर की प्रत्येक क्रिया उचित प्रकार से होती रहती है ; इससे रोग भी दूर रहते हैं| न खेलने से व्यक्ति को आलस्य ,रोग,बुढ़ापा सभी कुछ घेर लेते हैं | युवावस्था में ही व्यक्ति बूढ़ा-सा लगने लगता है | अस्वस्थ शरीर के कारण उसका मन बुझा – बुझा सा रहता है | उमंग –उत्साह बहुत पीछे छूट जाते हैं| जीवन की खुशियाँ मुख मोड़ लेते हैं और ईश्वर-प्रदत्त प्रतिभाओं से युक्त होता हुआ भी व्यक्ति लाचार और हताश बनकर रह जाता है | धन – सम्पदा ,आदर ,मान – सत्कार , पद सबके होने पर भी अगर स्वास्थ्य साथ नहीं देता, तो सारा जीवन नीरस और व्यर्थ हो जाता है | रोगी व्यक्ति न केवल अपने लिए बल्कि अपने परिवार के लिए बोझ-स्वरूप हो जाता है | वह समाज पर बोझ बनकर उसका अहित करता है |
प्रश्न –
1.खेलने से शरीर किस प्रकार विकसित होता है ?
2.न खेलने से व्यक्ति को क्या हानियाँ हैं ?
3.जीवन नीरस और व्यर्थ कब प्रतीत होने लगता है ?
4.किस साधन के द्वारा शरीर की प्रत्येक क्रिया उचित प्रकार से होती है ?
5.उपसर्ग और मूल शब्द अलग कीजिए – अहित ,सुगठित |
6. गद्यांश के लिए उचित शीर्षक लिखिए |
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1. खेल हमारे शरीर और मन मस्तिष्क का समुचित विकास करते हैं। खेलने से शरीर पुष्ट होता है, मांसपेशियों दृढ़ और मजबूत बनती है शरीर में समुचित गठाव आता है शरीर की सभी इन्द्रियां सक्रिय रहती है, रक्त का संचार उचित रूप से सारे शरीर में होता है।
2. न खेलने से व्यक्ति को आलस्य,रोग, बुढ़ापा सब घेर लेते हैं। युवावस्था में व्यक्ति बूढ़ा-सा लगने लगता है। उमंग उत्साह बहुत पीछे छूट जाता है।
3. धन सम्पदा, आदर ,मान-सत्कार,पद सबके होने पर भी अगर स्वास्थ्य साथ ना दे तो सारा जीवन नीरस और व्यर्थ हो जाता है।
4. खेलकूद से शरीर की प्रत्येक क्रिया उचित प्रकार से होती है।
5. अहित = मुल शब्द = हित , उपसर्ग = अ + हित
सुगठित = सु+ गठित
6 शीर्षक = खेल और हमारा जीवन ।
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