i need a help from u in my hindi litreture work which is given as ' ek aisi love story banakar likhiye jisme kuch special ho us story me twist b hona chaiye comedy b honi chayiye and story dil ko chune wali honi chaiyiye' ....plz guys help me by writting story on this topic
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वो दिन अभी भी याद आता है जब पापा से बहुत जिद करने के बाद 5 रूपए मांगे थे क्यूंकि क्लास में तुमने कहा था तुम्हे गोलगप्पे बहुत पसंद हैं...और मुझे तुम अच्छी लगती थीं...तुम्हारा और मेरा घर आजू बाजू था और रास्ते में 'कैलाश गोलगप्पे वाला' अपना ठेला लगाता था...घर जाने के दो रास्ते थे तुम दुसरे रास्ते जाती और मैं गोलगप्पे की दुकान वाले रास्ते...उस दिन बहुत खुश था...नेवी ब्लू रंग की स्कूल की पैंट की जेब में १ रुपये के पांच सिक्के खन खन करके खनक रहे थे और मैं खुद को बिल गेट्स समझ रहा था...शायद पांच रुपये मुझे पहली बार मिले थे और तुझे गोलगप्पे खिलाकर सरप्राइज भी तो देना था...
स्कूल की छुट्टी होने के बाद बड़ी हिम्मत जुटा कर तुमसे कहा- ज्योति, आज मेरे साथ मेरे रास्ते घर चलो ना? हांलाकि हम दोस्त थे पर इतने भी अच्छे नहीं कि तू मुझ पर ट्रस्ट कर लेती...'मैं नी आरी' तूने गुस्से से कहा...'प्लीज चलो ना तुम्हे कुछ सरप्राइज देना है'...मैंने बहुत अपेक्षा से कहा...ये सुन के तू और भड़क गयी और जाने लगी क्यूंकि क्लास में मेरी इमेज बैकैत और लोफर लड़कों की थी...
मैं जा ही रहा था तो तू आकर बोली- रुको मैं आउंगी पर तुम मुझसे 4 फीट दूर रहना....मैंने मुस्कुराते हुए कहा ठीक है...हम चलने लगे और मैं मन ही मन प्रफुल्लित हुए जा रहा ये सोचकर की तुझे तेरी मनपसंद चीज़ खिलाऊंगा और शायद इससे तेरे दिल के सागर में मेरे प्रति प्रेम की मछली गोते लगा ले...खैर गोलगप्पे की दुकान आई...मैं रुक गया...तूने जिज्ञासावस पूछा- रुके क्यूँ?
मैं- अरे! ज्योति तुम गोलगप्पे खाओगी ना इसलिए।
तू- अरे वाह!!!!!! जरुर खाऊँगी।
तेरी आँखों में चमक थी। और मेरी आत्मा को तृप्ति और अतुलनीय प्रसन्नता हो रही थी। तब १ रुपये के ३ गोलगप्पे आते थे।
मैं- कैलाश भैय्या ज़रा पांच के गोलगप्पे खिलवा दो।
कैलाश भैय्या- जी बाबू जी। (मुझे बुलाकर कान में) गरलफ्रंड हय का?
मैं(हँसते हुए)- ना ना भैया।आप भी
कैलाश भैय्या ने गोलगप्पे में पानी डालकर तुझे पकड़ाया ही था कि तू जोर से चिल्लाई- रवि...रवि
इतने में एक स्मार्ट सा लौंडा(शायद दुसरे स्कूल का) जिसके सामने मैं वो था जैसा शक्कर के सामने गुड लाल रंग की करिज्मा से हमारी तरफ आया और बाइक रोक के बोला- ज्योति मैं तुम्हारे स्कूल से ही आ रहा हूँ। चलो 'कहो ना प्यार है के दो टिकट करवाए हैं जल्दी बैठो'
'हाय ऋतिक रोशन!!!!' कहते हुए तू उछल पड़ी और गोलगप्पा जमीन में फेंकते हुए मुझसे बोली-सॉरी अंकित आज किसी के साथ मूवी जाना है, कभी और।
और मैं समझ गया कि ये "किसी" कौन होगा।
ये कहते हुए तू बाइक में बैठ गई और उस लौंडे से चिपक गई, उसके सीने में अपने दोनों हाथ बांधे हुए।
तू आँखों से ओझल हुए जा रही थी और मुझे बस तेरी काली जुल्फें नज़र आ रही थी। उसी को देखता मेरे नेत्रों में कालिमा छा रही थी।
कैलाश भैय्या की भी आँखे भर आईं थी और मेरे दो नैना नीर बहा रहे थे।
कैलाश भैय्या- छोड़ो ना बाबू जी। ई लड़कियां होती ही ऐसी हैं। अईसा थोअड़े होअत है कि किसी के दिल को शीशे की तरह तोड़ दो।
ये कहकर उन्होंने कपड़ा उठाया जिससे वो पसीना पोछा करते थे और अपने आंसुओं को पोछने लगे। मैं भी रो पड़ा।
अभी 14 गोलगप्पे बचे थे और कैलाश भैय्या जिद कर रहे थे खाने की।
स्कूल की छुट्टी होने के बाद बड़ी हिम्मत जुटा कर तुमसे कहा- ज्योति, आज मेरे साथ मेरे रास्ते घर चलो ना? हांलाकि हम दोस्त थे पर इतने भी अच्छे नहीं कि तू मुझ पर ट्रस्ट कर लेती...'मैं नी आरी' तूने गुस्से से कहा...'प्लीज चलो ना तुम्हे कुछ सरप्राइज देना है'...मैंने बहुत अपेक्षा से कहा...ये सुन के तू और भड़क गयी और जाने लगी क्यूंकि क्लास में मेरी इमेज बैकैत और लोफर लड़कों की थी...
मैं जा ही रहा था तो तू आकर बोली- रुको मैं आउंगी पर तुम मुझसे 4 फीट दूर रहना....मैंने मुस्कुराते हुए कहा ठीक है...हम चलने लगे और मैं मन ही मन प्रफुल्लित हुए जा रहा ये सोचकर की तुझे तेरी मनपसंद चीज़ खिलाऊंगा और शायद इससे तेरे दिल के सागर में मेरे प्रति प्रेम की मछली गोते लगा ले...खैर गोलगप्पे की दुकान आई...मैं रुक गया...तूने जिज्ञासावस पूछा- रुके क्यूँ?
मैं- अरे! ज्योति तुम गोलगप्पे खाओगी ना इसलिए।
तू- अरे वाह!!!!!! जरुर खाऊँगी।
तेरी आँखों में चमक थी। और मेरी आत्मा को तृप्ति और अतुलनीय प्रसन्नता हो रही थी। तब १ रुपये के ३ गोलगप्पे आते थे।
मैं- कैलाश भैय्या ज़रा पांच के गोलगप्पे खिलवा दो।
कैलाश भैय्या- जी बाबू जी। (मुझे बुलाकर कान में) गरलफ्रंड हय का?
मैं(हँसते हुए)- ना ना भैया।आप भी
कैलाश भैय्या ने गोलगप्पे में पानी डालकर तुझे पकड़ाया ही था कि तू जोर से चिल्लाई- रवि...रवि
इतने में एक स्मार्ट सा लौंडा(शायद दुसरे स्कूल का) जिसके सामने मैं वो था जैसा शक्कर के सामने गुड लाल रंग की करिज्मा से हमारी तरफ आया और बाइक रोक के बोला- ज्योति मैं तुम्हारे स्कूल से ही आ रहा हूँ। चलो 'कहो ना प्यार है के दो टिकट करवाए हैं जल्दी बैठो'
'हाय ऋतिक रोशन!!!!' कहते हुए तू उछल पड़ी और गोलगप्पा जमीन में फेंकते हुए मुझसे बोली-सॉरी अंकित आज किसी के साथ मूवी जाना है, कभी और।
और मैं समझ गया कि ये "किसी" कौन होगा।
ये कहते हुए तू बाइक में बैठ गई और उस लौंडे से चिपक गई, उसके सीने में अपने दोनों हाथ बांधे हुए।
तू आँखों से ओझल हुए जा रही थी और मुझे बस तेरी काली जुल्फें नज़र आ रही थी। उसी को देखता मेरे नेत्रों में कालिमा छा रही थी।
कैलाश भैय्या की भी आँखे भर आईं थी और मेरे दो नैना नीर बहा रहे थे।
कैलाश भैय्या- छोड़ो ना बाबू जी। ई लड़कियां होती ही ऐसी हैं। अईसा थोअड़े होअत है कि किसी के दिल को शीशे की तरह तोड़ दो।
ये कहकर उन्होंने कपड़ा उठाया जिससे वो पसीना पोछा करते थे और अपने आंसुओं को पोछने लगे। मैं भी रो पड़ा।
अभी 14 गोलगप्पे बचे थे और कैलाश भैय्या जिद कर रहे थे खाने की।
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