i need a story in hindi wirh moral..
wordings should be in Hindi too..
minimum 150 words..
it must be a gud one.. : )
Answers
Answered by
2
भूत बहुत खुराफाती थे. सब एक महीने भर लोगों को सताते थे और महीने में 1 दिन इसी पेड़ पर सरदार सब का हिसाब किताब करता था. आज वही हिसाब किताब करने वाला दिन था. सरदार ने पूछा-- "हां ! भाई तुम लोगों ने क्या क्या किया? एक-एक करके बताओ." पहला भूत बोला-- "एक गांव में दो भाई थे. भले बुरे का तर्क हुआ, दोनों ने बाजी रखी. छोटा भाई हार गया, मैंने उसे अंधा बनवा दिया.
सरदार बोला-- "बहुत खूब ! अब अंधा ही बना रहेगा वह क्या जाने कि इस पेड़ की तली की ओस लगाने से उसकी आंखें ठीक हो सकती है." दूसरा भूत बोला-- "मैंने रामनगर जिले के सारे नदी, नाले, झरने, तालाब, कुए, बाबड़ी सब कुछ सुखा दिया है. पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है. कई कोश तक पानी नहीं है. सब यूं ही तड़प तड़प कर मर जाएंगे."
भूतों का सरदार बोला-- "बहुत खूब! प्यासे मरे सब उन्हें क्या पता कि वही पहाड़ के तले से सात मिट्टी की परतें हटा देने से पानी फिर आ सकता है." तीसरा भूत बोला-- सरदार! राजा की बेटी की शादी होने वाली थी. नगर में खुशियां मनाई जा रही थी. पर मैंने राजकुमारी को गूंगी बना दिया, जिससे उसकी शादी नहीं हो पाई, महल में मातम छा गया है.
सरदार ने कहा-- "वाह, बहुत खूब! वह गूंगी ही रहेगी किसी को क्या मालूम इस पेड़ की झूमती जटा को पीसकर पिला देने से वह बोलने लगेगी. खैर चलो एक महीने बाद इसी दिन फिर यही मिलेंगे". एक तूफ़ान सा उठा और चारा भूत चले गए. तब तक सवेरा हो गया था.
अंधे भाई ने सबसे पहले वहां की ओस की बूंदें अपनी आंखों पर लगाई, उसकी आंखें लौट आई. वह खुशी से झूम उठा. उसने जल्दी से पेड़ की जटा ली और घर लौटा. उसकी आंखें वापस आ जाने से सब बहुत खुश हो गए. उसने सारा किस्सा अपनी पत्नी को सुनाया और घर से निकल गया और सीधे रामनगर पहुंचा. वहां की हालत देखी तो रोने लायक थी. सूखकर धरती फट रही थी.
कहीं एक बूंद पानी नहीं था, हाहाकार मचा हुआ था. उसने पहाड़ के नीचे से मिट्टी की सात परते निकाली ही थी, कि फिर कुएं, तालाब और झीलों में पानी ही पानी हो गया. वहां के राजा ने उसे अपार धन दिया.
फिर वह राजा के महल में जा पहुंचा, जाते ही उसने कहा-- "महाराज मैंने सुना है कि राजकुमारी गूंगी हो गई है. मैं उसे ठीक कर सकता हूं." छोटे भाई ने झट से पेड़ की जटा को पीसकर राजकुमारी को पिला दिया और राजकुमारी बोलने लगी. राजा बहुत खुश हुआ. Raja ने अशर्फियों से उसकी झोली भर दी. गाड़ी घोड़ा दिया और वह रहने के लिए एक महल देकर परिवार के साथ यहां आ कर रहने को कहा.
छोटा भाई धन से लदा घर लौटा. उसके परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई. बड़े भाई ने देखा कि उसकी आंखें भी आ गई और इतनी दौलत भी. वह ईर्ष्या से जलने लगा. उसने छोटे भाई से माफी मांगी गड़बड़ाया कि उसे भी राज बता दे.
छोटे भाई को दया आ गई, उसने सारा राज बड़े भाई को बता दिया. बड़ा भाई भी उसी जंगल में गया उसी पेड़ तले बैठा फिर वही तूफान आया और भूतों की आवाज आने लगी. लेखा-जोखा होने लगा. भूत कहने लगे, जो किया कराया था सब पर पानी फिर गया जरूर किसी ने अपना भेद सुन लिया.
भूत जब पेड़ से उतरे तो बड़े भाई को बैठा पाया. बस फिर क्या था, झट से उसका गला घोट दिया और बड़ा भाई वहीं पर मर गया.
शिक्षा (Moral)-- भला करने वालों के साथ बुरा नही होता है व बुरा करने वाले के साथ बुरा होता है. मनुष्य को हमेशा संतुष्ट होना चाहिए जो ज्यादा लालच करता है उसका हाल बड़े भाई के समान होता है.
सरदार बोला-- "बहुत खूब ! अब अंधा ही बना रहेगा वह क्या जाने कि इस पेड़ की तली की ओस लगाने से उसकी आंखें ठीक हो सकती है." दूसरा भूत बोला-- "मैंने रामनगर जिले के सारे नदी, नाले, झरने, तालाब, कुए, बाबड़ी सब कुछ सुखा दिया है. पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है. कई कोश तक पानी नहीं है. सब यूं ही तड़प तड़प कर मर जाएंगे."
भूतों का सरदार बोला-- "बहुत खूब! प्यासे मरे सब उन्हें क्या पता कि वही पहाड़ के तले से सात मिट्टी की परतें हटा देने से पानी फिर आ सकता है." तीसरा भूत बोला-- सरदार! राजा की बेटी की शादी होने वाली थी. नगर में खुशियां मनाई जा रही थी. पर मैंने राजकुमारी को गूंगी बना दिया, जिससे उसकी शादी नहीं हो पाई, महल में मातम छा गया है.
सरदार ने कहा-- "वाह, बहुत खूब! वह गूंगी ही रहेगी किसी को क्या मालूम इस पेड़ की झूमती जटा को पीसकर पिला देने से वह बोलने लगेगी. खैर चलो एक महीने बाद इसी दिन फिर यही मिलेंगे". एक तूफ़ान सा उठा और चारा भूत चले गए. तब तक सवेरा हो गया था.
अंधे भाई ने सबसे पहले वहां की ओस की बूंदें अपनी आंखों पर लगाई, उसकी आंखें लौट आई. वह खुशी से झूम उठा. उसने जल्दी से पेड़ की जटा ली और घर लौटा. उसकी आंखें वापस आ जाने से सब बहुत खुश हो गए. उसने सारा किस्सा अपनी पत्नी को सुनाया और घर से निकल गया और सीधे रामनगर पहुंचा. वहां की हालत देखी तो रोने लायक थी. सूखकर धरती फट रही थी.
कहीं एक बूंद पानी नहीं था, हाहाकार मचा हुआ था. उसने पहाड़ के नीचे से मिट्टी की सात परते निकाली ही थी, कि फिर कुएं, तालाब और झीलों में पानी ही पानी हो गया. वहां के राजा ने उसे अपार धन दिया.
फिर वह राजा के महल में जा पहुंचा, जाते ही उसने कहा-- "महाराज मैंने सुना है कि राजकुमारी गूंगी हो गई है. मैं उसे ठीक कर सकता हूं." छोटे भाई ने झट से पेड़ की जटा को पीसकर राजकुमारी को पिला दिया और राजकुमारी बोलने लगी. राजा बहुत खुश हुआ. Raja ने अशर्फियों से उसकी झोली भर दी. गाड़ी घोड़ा दिया और वह रहने के लिए एक महल देकर परिवार के साथ यहां आ कर रहने को कहा.
छोटा भाई धन से लदा घर लौटा. उसके परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई. बड़े भाई ने देखा कि उसकी आंखें भी आ गई और इतनी दौलत भी. वह ईर्ष्या से जलने लगा. उसने छोटे भाई से माफी मांगी गड़बड़ाया कि उसे भी राज बता दे.
छोटे भाई को दया आ गई, उसने सारा राज बड़े भाई को बता दिया. बड़ा भाई भी उसी जंगल में गया उसी पेड़ तले बैठा फिर वही तूफान आया और भूतों की आवाज आने लगी. लेखा-जोखा होने लगा. भूत कहने लगे, जो किया कराया था सब पर पानी फिर गया जरूर किसी ने अपना भेद सुन लिया.
भूत जब पेड़ से उतरे तो बड़े भाई को बैठा पाया. बस फिर क्या था, झट से उसका गला घोट दिया और बड़ा भाई वहीं पर मर गया.
शिक्षा (Moral)-- भला करने वालों के साथ बुरा नही होता है व बुरा करने वाले के साथ बुरा होता है. मनुष्य को हमेशा संतुष्ट होना चाहिए जो ज्यादा लालच करता है उसका हाल बड़े भाई के समान होता है.
harsh8597:
your welcome
Answered by
2
HËÝĄ măťë here is your story. ......
⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵
"बुद्धिमान को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता।"
⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵
वस्तीपुर नगर में धर्मचंद नाम का एक जौहरी रहता था। उसकी ज्वेलरी दुकान थी और इसी सिलसिले में वह हीरे-जवाहरात खरीदने दूर-दूर के नगरों में जाया करता था।
एक बार वह एक कीमती हीरा खरीदकर लौट रहा था। लौटते-लौटते शाम हो गई और मौसम खराब होने की वजह से तेज वर्षा होने लगी। इसलिए वह व्यापारी एक सराय में रूक गया।
वहाँ उसे एक व्यक्ति मिला, जिसने अपना परिचय देते हुए वह कहा, “मेरा नाम राजेन्द्र है। मैं एक व्यापारी हूँ और इसी सिलसिले में समस्तीपुर जा रहा हूँ। आप कहाँ जा रहे हैं?“
धर्मचंद ने अपना परिचय दिया तो राजेन्द्रबोला, “आपका नगर थोड़ा पहले पड़ जाता है, तो क्या मैं आपके साथ रूक सकता हूँ? मौसम ठीक होते ही हम साथ-साथ निकल जाऐंगे जिससे हम दोनों का रास्ता आसानी से कट जाएगा?“
धर्मचंद ने कहा, “ठीक है?“
सुबह तक मौसम बिल्कुल ठीक हो गया और दोनों अपने-अपने गंतव्य स्थान पर जाने के लिए चलने लगे तभी राजेन्द्र ने धर्मचंद से कहा, “मैंने आपसे झूठ कहा कि मैं एक व्यापारी हूँ। असल में, मैं एक ठग हूँ और जहाँ से आपने हीरा खरीदा है, वहीं से वह हीरा चुराने की नीयत से मैं आपका पीछा कर रहा हूँ।“
राजेन्द्र ने सच्चाई बताकर पूछा, “दिन में तो मैंने आपको अपने कुर्ते की जेब में हीरा रखते देखा था लेकिन रात में मैंने न केवल आपके कुर्ते की जेब को बल्कि आपके एक-एक सामान को टटोल लिया लेकिन मुझे वह हीरा कहीं भी नहीं मिला। अब मुझे आपका हीरा नहीं चाहिए। मुझे केवल इतना बता दीजिए कि आपने वह हीरा कहाँ छुपाया था जिससे मैं उसे ढूंढ नहीं सका।“
धर्मचन्द ने प्रत्युत्तर दिया, “मुझे इस बात का अंदेशा हो गया था कि मेरा पीछा कर रहे हो और जब तुमने मेरे साथ रात ठहरने की बात पूछी तब मेरा शक यकीन में बदल गया, इसलिए मैंने रात में वह हीरा तुम्हारी ही जेब में रख दिया था और सुबह तुम्हारे जागने से पहले ही पुन: ले लिया।”
राजेन्द्र आश्चर्य से जौहरी धर्मचंद का मुंह देखता रह गया और धर्मचंद इतना कहकर मुस्कुराते हुए अपने रास्ते चल दिया।
************************************************************
☺hope this helps you☺
✔✔mark as brainliest ✔✔
⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵
"बुद्धिमान को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता।"
⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵
वस्तीपुर नगर में धर्मचंद नाम का एक जौहरी रहता था। उसकी ज्वेलरी दुकान थी और इसी सिलसिले में वह हीरे-जवाहरात खरीदने दूर-दूर के नगरों में जाया करता था।
एक बार वह एक कीमती हीरा खरीदकर लौट रहा था। लौटते-लौटते शाम हो गई और मौसम खराब होने की वजह से तेज वर्षा होने लगी। इसलिए वह व्यापारी एक सराय में रूक गया।
वहाँ उसे एक व्यक्ति मिला, जिसने अपना परिचय देते हुए वह कहा, “मेरा नाम राजेन्द्र है। मैं एक व्यापारी हूँ और इसी सिलसिले में समस्तीपुर जा रहा हूँ। आप कहाँ जा रहे हैं?“
धर्मचंद ने अपना परिचय दिया तो राजेन्द्रबोला, “आपका नगर थोड़ा पहले पड़ जाता है, तो क्या मैं आपके साथ रूक सकता हूँ? मौसम ठीक होते ही हम साथ-साथ निकल जाऐंगे जिससे हम दोनों का रास्ता आसानी से कट जाएगा?“
धर्मचंद ने कहा, “ठीक है?“
सुबह तक मौसम बिल्कुल ठीक हो गया और दोनों अपने-अपने गंतव्य स्थान पर जाने के लिए चलने लगे तभी राजेन्द्र ने धर्मचंद से कहा, “मैंने आपसे झूठ कहा कि मैं एक व्यापारी हूँ। असल में, मैं एक ठग हूँ और जहाँ से आपने हीरा खरीदा है, वहीं से वह हीरा चुराने की नीयत से मैं आपका पीछा कर रहा हूँ।“
राजेन्द्र ने सच्चाई बताकर पूछा, “दिन में तो मैंने आपको अपने कुर्ते की जेब में हीरा रखते देखा था लेकिन रात में मैंने न केवल आपके कुर्ते की जेब को बल्कि आपके एक-एक सामान को टटोल लिया लेकिन मुझे वह हीरा कहीं भी नहीं मिला। अब मुझे आपका हीरा नहीं चाहिए। मुझे केवल इतना बता दीजिए कि आपने वह हीरा कहाँ छुपाया था जिससे मैं उसे ढूंढ नहीं सका।“
धर्मचन्द ने प्रत्युत्तर दिया, “मुझे इस बात का अंदेशा हो गया था कि मेरा पीछा कर रहे हो और जब तुमने मेरे साथ रात ठहरने की बात पूछी तब मेरा शक यकीन में बदल गया, इसलिए मैंने रात में वह हीरा तुम्हारी ही जेब में रख दिया था और सुबह तुम्हारे जागने से पहले ही पुन: ले लिया।”
राजेन्द्र आश्चर्य से जौहरी धर्मचंद का मुंह देखता रह गया और धर्मचंद इतना कहकर मुस्कुराते हुए अपने रास्ते चल दिया।
************************************************************
☺hope this helps you☺
✔✔mark as brainliest ✔✔
Similar questions