I need a story on the topic-
आशा और निराशा
Plsss help!
No spamming!
Answers
Answer:
है मित्र यह रहा आपके प्रशन म उत्तर:
आशा स्वाभाविक है यह हमारे जीवंत होने का प्रमाण है , निराशा कृत्रिम है यह जीवन के मार्ग का अवरोध है जिसे संघर्ष के द्वारा नहीं हटाया जा सकता है और यदि यह जीवन में अपनी जगह बना ले तो जीवन को टूटने से कोई नहीं बचा सकता. केवल सकारात्मक भाव एवं विचार ही इससे निजात दिला सकते हैं. जब हम किसी व्यक्ति , बिषय या वस्तु के आदी हो जाते हैं तो वह हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन जाती है फिर हम उसके बिना अपने आप को अधूरा महसूस करते हैं , यही स्थिति हम सब की है.
धन्यवाद :)
Answer
आशा और निराशा सिक्के के दो पहलू हैं। आशा है तो हौसले हैं, हौसले हैं तो उम्मीद है, उम्मीद है तो सफलता है। इसके विपरीत निराशा है, तो कुछ भी नहीं है। न हौसले, न उम्मीद और न ही सफलता। निराशा क्या है? निराशा एक मनोदशा है, जो काम के प्रति अरुचि को दर्शाती है। निराश व्यक्ति उदास, दुखी, बेबस, चिड़चिड़ा और बेचैन हो जाता है। निराश व्यक्ति अपने आपको इतना हताश पाता है कि उसके दिमाग में आत्महत्या करने तक का ख्याल आने लगता है। निराशा के भंवर से निकलने के कई रास्ते हैं। जिस तरह हर अंधेरी रात के बाद उजली सुबह होती है, उसी तरह निराशा के पार आशा की किरण है।
बस हमारे-आपके देखने का फर्क है। कुछ लोग निराशा के अंधकार में ही खोए रहते हैं। अंधेरे को देखकर उन्हें लगता है कि यह अंधेरा ही सब कुछ है, जबकि बाकी लोग अंधकार में रहकर आशा के किरण की खोज करते हैं, क्योंकि वे अंधेरे की पहचान करके प्रकाश की खोज में निकल पड़ते हैं। जब अंधेरा है तो प्रकाश भी होगा। जैसे जन्म है तो मृत्यु होगी ही। यह बात गांठ बांध लें कि अंधेरे का जन्म हुआ है, तो उसकी मृत्यु भी निश्चित है। एक राजा ने अपने सेनापति से कहा, दीवार पर कुछ ऐसा लिखो कि वह अच्छे और बुरे दोनों वक्त में याद करने लायक हो। सेनापति ने लिखा, यह समय भी कट जाएगा। जी हां, न आशा स्थायी है और न निराशा। यह व्यक्ति के ऊपर है कि वह किसे अपने साथ रखता है - आशा को या निराशा को।
एक व्यक्ति को नदी पार करनी थी, लेकिन उसके पास नाव नहीं थी। किसी ने उससे पूछा कि ऐसे में वह नदी कैसे पार करेगा? उस व्यक्ति ने कहा, कश्तियां नहीं तो क्या, हौसले तो पास हैं। किसी भी व्यक्ति को बुरे से बुरे समय में भी हौसला और उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। बस, अपने कर्म करते जाना चाहिए।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि निराशा के बादलों को हटाने का एक सरल उपाय यह है कि जीवन में जब कभी आपके मन पर निराशा की छाया पड़ने लगे, तो तुरंत उन क्षणों को याद करने की कोशिश करें, जब आपने कोई बहुत बड़ा या बहुत अच्छा काम किया था, किस तरह उस समय लोगों ने आपकी प्रशंसा की थी और आपको किसी नायक की तरह सराहा था।