I need an anuched on ''hamaari sanskriti, hamaara abhimaan''
Can someone write a 100-120 words passage or some points or hints.
It's for 50 points!!
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Answer:
भारत सदा ही संस्कृति के निर्माण एवं विकास का केंद्र रहा है । आदि काल से ही हमारा राष्ट्र विज्ञान, साहित्य कला आदि में अग्रणीय रहा है और यही कारण है कि कभी अतीत में भारत विश्व का केंद्र कहलाता था । तब यूरोप तक से लोग हमारी सभ्यता का अध्ययन करने आते थे, सम्पूर्ण विश्व में हमारा परचम था, परन्तु समय के साथ हम अपनी पहचान और आभा खोने लगे । जो राष्ट्र कभी सभ्यता का केंद्र था, उसी के वासी अपनी विरासत को नकारने लगे । कुछ वर्षो की गुलामी के उपरांत हम स्वयं ही अपनी सभ्यता को कमतर समझने लगे और फिर शेष विश्व ने भी हमें भुला दिया । परन्तु समय कभी एक जैसा नहीं रहता है, आज देश के हर नागरिक में वो खोई हुई ऊर्जा, वो खोया हुआ विश्वास लौट रहा है और लोग पुनः अपनी जड़ो की खोज में वापिस अपनी वास्तविक परम्पराओ को अपना रहे है और यह भी सच है की भारत की खोई हुई पहचान और उसकी आभा लौट रही है । धीरे ही सही, परन्तु विश्व पटल पर हम एक सकारात्मक छवि गढ़ रहे है । परन्तु इस बदलाव में हमारी सांस्कृतिक विशिष्टता कही पिछड़ रही है । वैश्विक समाज हमारी सफलता का लोहा तो मानता है , परन्तु सामाजिक व सांस्कृतिक दृष्टि से हमें आज भी कमतर आँकता है ।जिसके लिए हम स्वयं भी कही न कही जिम्मेदार है क्युकी हमने भौतिकतावाद की आंधी में कुछ ऐसे कदम उठाये जिसके कारण हमने अपनी मातृभाषा हिंदी तक का दम घोट दिया। आज लोग भारत आकर भी भारतीयता व भारतीय संस्कृति को नहीं जान पाते है और अनेकों बार देखने में आया है कि जो विदेशी मेहमान हमारे देश में रहते है वे अज्ञानता के कारण हमारी संस्कृति एवं भाषा का जाने अनजाने में उपहास उड़ाते है । हम दुसरो की सहूलियत के अनुसार स्वयं को ढालकर उनकी यात्रा को तो आसान कर देते है, परन्तु उन्हें हज़ारों वर्षो पुरानी इस सभ्यता को जानने के मौके से भी वंचित कर देते है । किसी भी राष्ट्र की संस्कृति के लिए उसकी भाषा एक आधारभूत उपकरण एवं संवाहक का कार्य करती है। किसी राष्ट्र की भाषा के ज्ञान के अभाव में उसकी संस्कृति को भी सही तरीके से समझा नही जा सकता। परोक्ष माध्यमो से एकत्र किया गया ज्ञान प्रायः द्वितीय स्तर का होता है एवं स्थानीय सांस्कृतिक संदर्भो की अनदेखी और गलत अर्थ निरूपण की संभावनाएं रहती है। जिसके कारण जो सम्मान व प्रतिष्ठा उस राष्ट्र को मिलनी चाहिए वह नही मिल पाती है, वर्तमान समय में यही स्थिति भारत में भी बनी हुई है। हमारे राष्ट्र का सम्मान व गौरव भी बनाये रखने के लिए ये जरुरी है की हम हिंदी का सम्मान उसे पुनः लौटाए और मुझे विश्वास है की वर्त्तमान सरकार इस ओर सकारात्मक कदम उठा रही है
Explanation:
हम यह भली-भाँति जानते हैं कि विश्व की संस्कृति और सभ्यता विभिन्न प्रकार के समय-समय पर पल्लवित पुष्पित एवं फालत भी हुई है। समय के कठिन और अमिट प्रभाव के कारण धूल-धूसरित हुई भी है। प्रमाणिक रूप से हमने विश्व के इतिहास में यह देखा है कि यूनान, मित्र व रोम की सभ्यता और संस्कृति सबसे अधिक पुरानी और प्रभावशाली थी, लेकिन काल के दुश्चक्र के स्वरूप ये संस्कृतियाँ । ऐसी नेस्तनाबूद हो गयीं कि इनका आज कोई नामोनिशान नहीं है। ऐसा होते हुए भी हमारी भारतीय संस्कृति आज भी ज्यों की त्यों ही है। इस विषय में किसी शायर का यह कहना अत्यन्त रोचक और मनोहारी कथन मालूम पड़ता है कि सभी संस्कृतियों में श्रेष्ठ महान् संस्कृति और सभ्यता के सर्वोपरि और सर्वोच्च यूनान, मिश्र ‘रोम की सभ्यता और संस्कृति तो आज मिट चुकी है, उनके नामों और निशान तक आज नहीं दिखाई देते हैं लेकिन हमारी भारतीय संस्कृति तो आज भी वैसी ही हरी-भरी है
स्पष्ट है कि हमारी सभ्यता और संस्कृति को मिटाने के लिए बार-बार विदेशी आक्रमण होते रहे हैं, लेकिन यह नहीं मिट पाई हैं, जबकि विश्व की महान् सभ्यता और संस्कृति मिट चुकी है।
भारतीय संस्कृति की विशेषता पर जब हम विचार करते हैं तो यह देखते हैं कि इसकी एक रूपता नहीं है, अपितु इसकी विविधता है। इस विविधता में भी । निरालापन स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ निम्नलिखित है –
1 आस्तिक भावना,
2 समन्वयवादी दृष्टिकोण,
3 विभिन्नता में एकता,
4 प्राचीनता, और
5 उदारता की भावना।-