(i) साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध ।
विपवास।
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15वीं16वीं शताब्दी में भौगोलिक अन्वेषण के फलस्वरूप औपनिवेशिक साम्राज्यों का युग आया। इस साम्राज्यवादी युग को दो भागों में बांट कर अध्ययन किया जा सकता है- पुराना साम्राज्यवाद और नवीन साम्राज्यवाद। पुराने साम्राज्यवाद का आरम्भ लगभग 15वीं शताब्दी से माना जा सकता है जब स्पेन और पुर्तगाल ने इस क्षेत्र में कदम बढ़ाया। साम्राज्यवाद का यह दौर 18वीं शताब्दी के अन्त तक चला। स्पेन और पुर्तगाल ने तमाम देशों की खोज कर वहां अपनी व्यापारिक चौकियाँ स्थापित की। धीरे-धीरे फ्रांस और इंग्लैण्ड ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाया। इंग्लैण्ड का औपनिवेशिक साम्राज्य सम्पूर्ण विश्व में स्थापित हो गया।
19वीं शताब्दी में इस साम्राज्यवाद ने नवीन रूप धारणा किया। 1890 ईस्वी के बाद यूरोप के देशों में साम्राज्यवादी भावना नये रूप में सामने आई। यह नव साम्राज्यवाद पहले के उपनिवेशवाद से आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से भिन्न था। पुराना साम्राज्यवाद वाणिज्यवादी था, यह भारत हो या चीन अथवा दक्षिण पूर्व एशिया। यूरोपीय व्यापारी स्थानीय सौदागरों से उनका माल खरीदते थे। मार्गों की सुरक्षा के लिए कुछेक स्थाानों पर कार्यालयों तथा व्यापारिक केन्द्रों की रक्षा के अतिरिक्त यूरोपीय राष्ट्रों को राज्य या भूमि की भूख नहीं थी। नव साम्राज्यवाद के दौर में अब सुनियोजित ढंग से यूरोपीय देश पिछड़े इलाकों में प्रवेश कर उन पर प्रभुत्व जमाने लगे। इन क्षेत्रों में उन्होंने पूंजी लगाई, बड़े पैमाने पर खेती आरम्भ की, खनिज तथा अन्य उद्योग स्थापित किये, संचार और आवागमन के साधनों का विकास किया तथा सांस्कृतिक जीवन में भी हस्तक्षेप किया। अपने प्रशासित इलाकाें की परम्परागत अर्थव्यवस्था और उत्पादन अर्थव्यवस्था को विनष्ट करके बहुसंख्यक स्थानीय लोगों की विदेशी मालिकों पर आश्रित बना दिया।
उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद में स्वरूपगत भिन्नता दिखाई पड़ती है। उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद से अधिक जटिल है क्योंकि यह उपनिवेशवाद के अधीन रह रहे मूल निवासियों के जीवन पर गहरा तथा व्यापक प्रभाव डालता है। इसमें एक तरफ उपनिवेशी शक्ति के लोगों का, उपनिवेश के लोगों पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक नियंत्रण होता है तो दूसरी तरफ साम्राज्यिक राज्यों पर राजनीतिक शासन की व्यवस्था शामिल होती है। इस तरह साम्राज्यवाद में मूल रूप से राजनैतिक नियंत्रण की व्यवस्था है वहीं उपनिवेशवाद औपनिवेशिक राज्य के लोगोें द्वारा विजित लोगों के जीवन तथा संस्कृति पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने की व्यवस्था है। साम्राज्यवाद के प्रसार हेतु जहां सैनिक शक्ति का प्रयोग और युद्ध प्रायः निश्चित होता है वहीं उपनिवेशवाद में शक्ति का प्रयोग अनिवार्य नहीं होता।