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तने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है।
देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से,
सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से।
जाति भेद की, धर्म-वेश की,
काले गोरे रंग-द्वेष की,
ज्वालाओं से जलते जग में,
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है।।
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I know hindi well sorry guy
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ye to ek poem hai . ise kya karna hai ' mai nahi samjha
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