i wanna speech on pryavaran pradusad in Hindi
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Hi mate here is ur query..
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सभी के लिए सुप्रभात। मेरा नाम......हैं और मैं कक्षा...में पढ़ता/पढ़ती हूँ। इस अवसर पर मैं प्रदूषण पर भाषण देना चाहता/चाहती हूँ। मेरे प्यारे मित्रों, प्रदूषण वातावरण और मानव के जीवन को प्रभावित करने वाली सबसे बड़ी चुनौती है। यह आज पूरे विश्व के लोगों द्वारा सामना किया जाने वाला पर्यावरणीय विषय है। अलग-अलग स्रोतों से विभिन्न खतरनाक और विषैले पदार्थ वातावरण में मिलकर विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों जैसे: जल, मृदा, वायु, भूमि, ध्वनि, और ऊष्मीय प्रदूषण आदि का कारण बन रहे हैं। उद्योगों और कारखानों से निकलने वाला धुआं और विषाक्त धूल हवा में मिल जाती है, जो वायु प्रदूषण का कारण बनती है। इस तरह की प्रदूषित वायु फेंफड़ों के लिए बुरी होती है। उद्योगों और कारखानों का प्रवाहित मल और अन्य अवशिष्टों को सीधे पानी के बड़े स्रोतों (नदी, झील, समुद्र, आदि) में प्रत्यक्ष रुप से प्रवाहित किया जाता है और वो पीने योग्य पानी में भी इसी प्रकार मिश्रित हो जाता है। इस तरह का प्रदूषित पानी (रोगाणु, बैक्टीरिया, जहरीले पदार्थ, वायरस, आदि को धारण किया हुआ) मनुष्यों, पशुओं, पौधों और जलीय जीवों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है।
आज-कल, यातायात, ध्वनि प्रणाली, विद्युत उपकरणों, आदि के माध्यम से बढ़ती हुई ध्वनियों के स्तर के कारण वातावरण शान्त नहीं है। इस तरह की आवाजें, ध्वनि प्रदूषण का कारण बनती हैं और कानों की प्राकृतिक सहनशीलता के लिए हानिकारक होती है। वाहनों, लाउड स्पीकरों आदि का अतिरिक्त और असहनीय शोर विशेषरुप से बुजुर्गों और छोटे बच्चों के लिए कानों की समस्याओं और यहाँ तक कि स्थाई बहरेपन का भी कारण बन सकता है।
उद्योगों और कारखानों में मनुष्य निर्मित रसायन जैसे; हाइड्रोकार्बन, सॉल्वैंट्स, भारी धातु, आदि मिट्टी में मिल जाते हैं, जब लोग हेर्बीसीड्स (किसानों द्वारा फसल में से अवांछित जंगली पौधों को खत्म करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला विषाक्त रसायनिक पदार्थ), कीटनाशक, उर्वरक, आदि का प्रयोग करते हैं या फैलाव या रसायनों के भूमिगत रिसाव के माध्यम से मिट्टी में मिल जाते हैं। ठोस, द्रव या गैस के रूप में इस तरह के दूषित पदार्थ मृदा (मिट्टी) या भूमि प्रदूषण का कारण बनते हैं जो सारी पृथ्वी को दूषित करते हैं। ये दूषित पदार्थ जल और वायु प्रदूषण का भी कारण बनते हैं क्योंकि वो पास की पानी सप्लाई में मिल जाते हैं और कुछ रसायन क्रमशः हानिकारक वाष्पीकरण भी करते हैं।
लोगों के द्वारा निरंतर बढ़ता प्लास्टिक का प्रयोग बड़े स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनता है और जो प्रतिकूलता में जंगली जीवन को प्रभावित करता है। थर्मल (ऊष्मीय) प्रदूषण ऊर्जा संयंत्रों और औद्योगिक निर्माताओं द्वारा पानी के बड़े स्तर को एक शीतलक के रूप में उपयोग करने की वजह से बढ़ रहा है। यह बड़े जल निकायों में पानी के तापमान में परिवर्तन पैदा कर रहा है। यह जलीय जीवों और पौधों के लिए बहुत हानिकारक है क्योंकि पानी के तापमान का बढ़ता हुआ स्तर, पानी में ऑक्सीजन के स्तर को कम करता है।
मेरे प्यारे साथियों, हम ऊपर, नीचे, दाँयें और बाँयें चारों ओर से प्रदूषण के मोटे आवरण से ढके हुये हैं। हम प्रदूषण में रह रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा चौकाने वाली बात यह है कि, कुछ लोग अभी भी इसके बारे में जागरुक नहीं हैं। संसार में चारों ओर बढ़ते हुये प्रदूषण के लिए बड़े और अच्छी तरह से विकसित देश सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। यह पूरे ग्रह के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण विषय है जिसे तुरंत सुलझाने की आवश्यकता है। यह केवल एक या दो देशों के प्रयासों से नहीं सुलझाया जा सकता हालांकि, इसे तो केवल सभी देशों के संयुक्त, कठिन और कड़े प्रयासों के द्वारा इसके विभिन्न आयामों पर कार्य करके सुलझाया जा सकता है।
विभिन्न देशों ने प्रदूषण को कम करने के लिए कुछ प्रभावशाली कानूनों को अपनाया है हालांकि, वो इस शक्तिशाली दानव को हराने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके पूरी तरह से उन्मूलन के लिए संयुक्त वैश्विक कार्यवाही की जरुरत है। आम जनता के आवश्यक प्रयासों को प्राप्त करने के लिए उच्च स्तरीय जागरुकता कार्यक्रमों को शुरु करने की जरुरत है। देश का प्रत्येक व्यक्ति इस समस्या, इसके कारकों, और सजीवों पर इसके दुष्प्रभावों से अवगत और जागरुक होना चाहिए। लोगों, उद्योगों और कारखानों द्वारा हानिकारक और विषाक्त रसायनों का प्रयोग सरकार के द्वारा कड़ाई से प्रतिबंधित होना चाहिए। सामान्य जनता को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी एजेन्सियों के कैम्पों या अन्य साधनों के माध्यम से पर्यावरण के अनुकूल चीजों और आदतों को अपनाकर वातावरण को सुरक्षित रखने के लिए जागरुक करना चाहिए।
धन्यवाद।
___________
Hope this will help
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सभी के लिए सुप्रभात। मेरा नाम......हैं और मैं कक्षा...में पढ़ता/पढ़ती हूँ। इस अवसर पर मैं प्रदूषण पर भाषण देना चाहता/चाहती हूँ। मेरे प्यारे मित्रों, प्रदूषण वातावरण और मानव के जीवन को प्रभावित करने वाली सबसे बड़ी चुनौती है। यह आज पूरे विश्व के लोगों द्वारा सामना किया जाने वाला पर्यावरणीय विषय है। अलग-अलग स्रोतों से विभिन्न खतरनाक और विषैले पदार्थ वातावरण में मिलकर विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों जैसे: जल, मृदा, वायु, भूमि, ध्वनि, और ऊष्मीय प्रदूषण आदि का कारण बन रहे हैं। उद्योगों और कारखानों से निकलने वाला धुआं और विषाक्त धूल हवा में मिल जाती है, जो वायु प्रदूषण का कारण बनती है। इस तरह की प्रदूषित वायु फेंफड़ों के लिए बुरी होती है। उद्योगों और कारखानों का प्रवाहित मल और अन्य अवशिष्टों को सीधे पानी के बड़े स्रोतों (नदी, झील, समुद्र, आदि) में प्रत्यक्ष रुप से प्रवाहित किया जाता है और वो पीने योग्य पानी में भी इसी प्रकार मिश्रित हो जाता है। इस तरह का प्रदूषित पानी (रोगाणु, बैक्टीरिया, जहरीले पदार्थ, वायरस, आदि को धारण किया हुआ) मनुष्यों, पशुओं, पौधों और जलीय जीवों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है।
आज-कल, यातायात, ध्वनि प्रणाली, विद्युत उपकरणों, आदि के माध्यम से बढ़ती हुई ध्वनियों के स्तर के कारण वातावरण शान्त नहीं है। इस तरह की आवाजें, ध्वनि प्रदूषण का कारण बनती हैं और कानों की प्राकृतिक सहनशीलता के लिए हानिकारक होती है। वाहनों, लाउड स्पीकरों आदि का अतिरिक्त और असहनीय शोर विशेषरुप से बुजुर्गों और छोटे बच्चों के लिए कानों की समस्याओं और यहाँ तक कि स्थाई बहरेपन का भी कारण बन सकता है।
उद्योगों और कारखानों में मनुष्य निर्मित रसायन जैसे; हाइड्रोकार्बन, सॉल्वैंट्स, भारी धातु, आदि मिट्टी में मिल जाते हैं, जब लोग हेर्बीसीड्स (किसानों द्वारा फसल में से अवांछित जंगली पौधों को खत्म करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला विषाक्त रसायनिक पदार्थ), कीटनाशक, उर्वरक, आदि का प्रयोग करते हैं या फैलाव या रसायनों के भूमिगत रिसाव के माध्यम से मिट्टी में मिल जाते हैं। ठोस, द्रव या गैस के रूप में इस तरह के दूषित पदार्थ मृदा (मिट्टी) या भूमि प्रदूषण का कारण बनते हैं जो सारी पृथ्वी को दूषित करते हैं। ये दूषित पदार्थ जल और वायु प्रदूषण का भी कारण बनते हैं क्योंकि वो पास की पानी सप्लाई में मिल जाते हैं और कुछ रसायन क्रमशः हानिकारक वाष्पीकरण भी करते हैं।
लोगों के द्वारा निरंतर बढ़ता प्लास्टिक का प्रयोग बड़े स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनता है और जो प्रतिकूलता में जंगली जीवन को प्रभावित करता है। थर्मल (ऊष्मीय) प्रदूषण ऊर्जा संयंत्रों और औद्योगिक निर्माताओं द्वारा पानी के बड़े स्तर को एक शीतलक के रूप में उपयोग करने की वजह से बढ़ रहा है। यह बड़े जल निकायों में पानी के तापमान में परिवर्तन पैदा कर रहा है। यह जलीय जीवों और पौधों के लिए बहुत हानिकारक है क्योंकि पानी के तापमान का बढ़ता हुआ स्तर, पानी में ऑक्सीजन के स्तर को कम करता है।
मेरे प्यारे साथियों, हम ऊपर, नीचे, दाँयें और बाँयें चारों ओर से प्रदूषण के मोटे आवरण से ढके हुये हैं। हम प्रदूषण में रह रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा चौकाने वाली बात यह है कि, कुछ लोग अभी भी इसके बारे में जागरुक नहीं हैं। संसार में चारों ओर बढ़ते हुये प्रदूषण के लिए बड़े और अच्छी तरह से विकसित देश सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। यह पूरे ग्रह के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण विषय है जिसे तुरंत सुलझाने की आवश्यकता है। यह केवल एक या दो देशों के प्रयासों से नहीं सुलझाया जा सकता हालांकि, इसे तो केवल सभी देशों के संयुक्त, कठिन और कड़े प्रयासों के द्वारा इसके विभिन्न आयामों पर कार्य करके सुलझाया जा सकता है।
विभिन्न देशों ने प्रदूषण को कम करने के लिए कुछ प्रभावशाली कानूनों को अपनाया है हालांकि, वो इस शक्तिशाली दानव को हराने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके पूरी तरह से उन्मूलन के लिए संयुक्त वैश्विक कार्यवाही की जरुरत है। आम जनता के आवश्यक प्रयासों को प्राप्त करने के लिए उच्च स्तरीय जागरुकता कार्यक्रमों को शुरु करने की जरुरत है। देश का प्रत्येक व्यक्ति इस समस्या, इसके कारकों, और सजीवों पर इसके दुष्प्रभावों से अवगत और जागरुक होना चाहिए। लोगों, उद्योगों और कारखानों द्वारा हानिकारक और विषाक्त रसायनों का प्रयोग सरकार के द्वारा कड़ाई से प्रतिबंधित होना चाहिए। सामान्य जनता को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी एजेन्सियों के कैम्पों या अन्य साधनों के माध्यम से पर्यावरण के अनुकूल चीजों और आदतों को अपनाकर वातावरण को सुरक्षित रखने के लिए जागरुक करना चाहिए।
धन्यवाद।
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Hope this will help
Tamash:
pleasure☺☺☺
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HERE IS YOUR ANSWER :-
वैदिक चिंतनधारा के अनुसार भी हम पर्यावरण संरक्षण भौतिक या अजैविक एवं जैविक सीख पाते हैं। पर्यावरण के प्रकार को हम इस तरह अलग कर पाते हैं।
1. भौतिक या अजैविक- इसके अंतर्गत भौतिक शक्तियां आती हैं। जैसे-मिट्टी, पानी, रोशनी, तापक्रम, वायु, आर्द्रता, वर्षा आदि। भौतिक पर्यावरण की शक्तियां जीवों में बाह्य परिवर्तन करती हैं। मिट्टी, पानी, वायु अजैविक माध्यम के घटक हैं, जिनमें जीवन रहते हैं। वायु, तापमान, रोशनी की अवधि, आर्द्रता, वर्षा, बर्फ आदि किसी भी स्थान की जलवायु, उसकी भौगोलिक स्थिति प्रत्यक्ष उदाहरण है। यही भौतिक पर्यावरण है। सोचने का विषय है कि इन सब में किसी भी प्रकार का प्रदूषण पर्यावरण को प्रदूषित कर देता है, जो संपूर्ण प्राणी जगत् यहां तक कि वनस्पतियों के लिए भी हानिकारक सिद्ध होता है।
2. जैविक पर्यावरण- जैविक पर्यावरण के अंतर्गत अनेक जीव आते हैं। जो भौतिक पर्यावरण में रहते हैं। जीवों का आंतरिक वातावरण भी इसके अंतर्गत आता है। जैविक पर्यावरण का प्रारंभ प्रत्येक कोशिका की रासायनिक व आनुवांशिक संरचना से होता है। वृद्धि, विकास, प्रजनन आदि क्रियाएं जीव द्वारा नियंत्रित रहती हैं। इस आंतरिक वातावरण में कोई भी रूपांतरण अंतिम रूप से जीव की क्रियाओं को परिवर्तित करता है। सभी जीव तथा उनकी अंतरसंबंधी क्रियाएं एवं प्रतिक्रियाएं, जो प्रत्येक जीव एक –दूसरे पर अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से व्यक्त करते हैं, जैविक पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं।“पृथ्वी का अस्तित्व बचाने के लिए जल तथा पर्यावरण प्रदूषण को हर तरह से रोकना होगा, नहीं तो लोगों के सामने इसका भयावह परिणाम आ सकता है। यह निष्कर्ष सिहावा भवन में हुई स्वयंसेवी संस्थाओं की विचार संगोष्ठी में निकला जो सन् 2007 में आयोजित की गई थी।”
भारतवर्ष में कभी गाय के दूध की नदियां बहा करती थीं या ‘गंगा तेरा पानी अमृत’ ये पौराणिक आख्यान दशकों से मुंबइया फिल्मों का स्थायी भाव बने हुए हैं, जबकि गत 25 वर्षों में हरिद्वार पहुंचते ही गंगा का जल जहरीले रसायन में बदल चुका है तो कानपुर तक आते-आते गंगा किसी भी शहर के गंदे नाले का रूप धारण कर चुकी है और गऊ माता कूड़े के ढेर में मुंह मार रही है। कभी जहां उसे खाने को प्रकृति की देन यानी दोने-पत्तल या फल सब्जियों के छिलके मिल जाया करते थे, उन ढेरों से अब उसे पॉलीथिन में भरा सामान खाने को मिल रहा है, जो अंतड़ियों में फंसकर उसे तड़प-तड़पकर मरने को मजबूर कर रहा है।
पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. अविनाश वोरा के मुताबिक, “जापान में हिरोशिमा और नागासाकी परमाणु दुर्घटना के बाद वहां के पर्यावरण से न केवल कीटों की, बल्कि पेड़-पौधों की सैकड़ों प्रजातियां लुप्त हो गई। परमाणु बम परीक्षण या विस्फोट से पृथ्वी के तापमान मे हजारों डिग्री तापमान का अंतर आ जाता है। जिस तरह इतने तापमान में मनुष्य और पशु-पक्षी अपना अस्तित्व नहीं बचा सकते, उसी तरह पेड़-पौधों पर भी इसका बहुत बुरा असर पड़ता है। उन्होंने बताया कि पेड़-पौधों पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। हालांकि इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं जाता, लेकिन यह सच है कि जापान की त्रासदी के बाद वहां पेड़-पौधों की हजारों प्रजातियां लुप्त हो गई हैं।”
5 नवंबर, 2001 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल 6 नवंबर को ‘इंटरनेशनल डे फॉर प्रिवेंटिंग द एक्सप्लॉयटेशन ऑफ द एनवायरमेंट इन वार एंड आर्म्ड कंफ्लिक्ट’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी। इसका उद्देश्य युद्ध और सशस्त्र संघर्ष के दौरान पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकना था।
विकास के पथ पर मानव जैसे-जैसे आगे बढ़ा है, सीख की बहुत-सी बातों को पीछे छोड़ता गया है। पर्यावरण के जितने भी प्रकार हैं, उनको कैसे बचाया जाए, यह समस्या आज ज्वलंत है। पृथ्वी का अस्तित्व बचाने के लिए जल-प्रदूषण को हर तरह से रोकना होगा। नहीं तो लोगों के सामने इसका भयावह परिणाम आ सकता है। पर्यावरण के लाभ और उसके महत्व को ध्यान में रखकर वनों के संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया है।
MARK AS BRAINLIEST
THANX
वैदिक चिंतनधारा के अनुसार भी हम पर्यावरण संरक्षण भौतिक या अजैविक एवं जैविक सीख पाते हैं। पर्यावरण के प्रकार को हम इस तरह अलग कर पाते हैं।
1. भौतिक या अजैविक- इसके अंतर्गत भौतिक शक्तियां आती हैं। जैसे-मिट्टी, पानी, रोशनी, तापक्रम, वायु, आर्द्रता, वर्षा आदि। भौतिक पर्यावरण की शक्तियां जीवों में बाह्य परिवर्तन करती हैं। मिट्टी, पानी, वायु अजैविक माध्यम के घटक हैं, जिनमें जीवन रहते हैं। वायु, तापमान, रोशनी की अवधि, आर्द्रता, वर्षा, बर्फ आदि किसी भी स्थान की जलवायु, उसकी भौगोलिक स्थिति प्रत्यक्ष उदाहरण है। यही भौतिक पर्यावरण है। सोचने का विषय है कि इन सब में किसी भी प्रकार का प्रदूषण पर्यावरण को प्रदूषित कर देता है, जो संपूर्ण प्राणी जगत् यहां तक कि वनस्पतियों के लिए भी हानिकारक सिद्ध होता है।
2. जैविक पर्यावरण- जैविक पर्यावरण के अंतर्गत अनेक जीव आते हैं। जो भौतिक पर्यावरण में रहते हैं। जीवों का आंतरिक वातावरण भी इसके अंतर्गत आता है। जैविक पर्यावरण का प्रारंभ प्रत्येक कोशिका की रासायनिक व आनुवांशिक संरचना से होता है। वृद्धि, विकास, प्रजनन आदि क्रियाएं जीव द्वारा नियंत्रित रहती हैं। इस आंतरिक वातावरण में कोई भी रूपांतरण अंतिम रूप से जीव की क्रियाओं को परिवर्तित करता है। सभी जीव तथा उनकी अंतरसंबंधी क्रियाएं एवं प्रतिक्रियाएं, जो प्रत्येक जीव एक –दूसरे पर अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से व्यक्त करते हैं, जैविक पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं।“पृथ्वी का अस्तित्व बचाने के लिए जल तथा पर्यावरण प्रदूषण को हर तरह से रोकना होगा, नहीं तो लोगों के सामने इसका भयावह परिणाम आ सकता है। यह निष्कर्ष सिहावा भवन में हुई स्वयंसेवी संस्थाओं की विचार संगोष्ठी में निकला जो सन् 2007 में आयोजित की गई थी।”
भारतवर्ष में कभी गाय के दूध की नदियां बहा करती थीं या ‘गंगा तेरा पानी अमृत’ ये पौराणिक आख्यान दशकों से मुंबइया फिल्मों का स्थायी भाव बने हुए हैं, जबकि गत 25 वर्षों में हरिद्वार पहुंचते ही गंगा का जल जहरीले रसायन में बदल चुका है तो कानपुर तक आते-आते गंगा किसी भी शहर के गंदे नाले का रूप धारण कर चुकी है और गऊ माता कूड़े के ढेर में मुंह मार रही है। कभी जहां उसे खाने को प्रकृति की देन यानी दोने-पत्तल या फल सब्जियों के छिलके मिल जाया करते थे, उन ढेरों से अब उसे पॉलीथिन में भरा सामान खाने को मिल रहा है, जो अंतड़ियों में फंसकर उसे तड़प-तड़पकर मरने को मजबूर कर रहा है।
पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. अविनाश वोरा के मुताबिक, “जापान में हिरोशिमा और नागासाकी परमाणु दुर्घटना के बाद वहां के पर्यावरण से न केवल कीटों की, बल्कि पेड़-पौधों की सैकड़ों प्रजातियां लुप्त हो गई। परमाणु बम परीक्षण या विस्फोट से पृथ्वी के तापमान मे हजारों डिग्री तापमान का अंतर आ जाता है। जिस तरह इतने तापमान में मनुष्य और पशु-पक्षी अपना अस्तित्व नहीं बचा सकते, उसी तरह पेड़-पौधों पर भी इसका बहुत बुरा असर पड़ता है। उन्होंने बताया कि पेड़-पौधों पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। हालांकि इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं जाता, लेकिन यह सच है कि जापान की त्रासदी के बाद वहां पेड़-पौधों की हजारों प्रजातियां लुप्त हो गई हैं।”
5 नवंबर, 2001 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल 6 नवंबर को ‘इंटरनेशनल डे फॉर प्रिवेंटिंग द एक्सप्लॉयटेशन ऑफ द एनवायरमेंट इन वार एंड आर्म्ड कंफ्लिक्ट’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी। इसका उद्देश्य युद्ध और सशस्त्र संघर्ष के दौरान पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकना था।
विकास के पथ पर मानव जैसे-जैसे आगे बढ़ा है, सीख की बहुत-सी बातों को पीछे छोड़ता गया है। पर्यावरण के जितने भी प्रकार हैं, उनको कैसे बचाया जाए, यह समस्या आज ज्वलंत है। पृथ्वी का अस्तित्व बचाने के लिए जल-प्रदूषण को हर तरह से रोकना होगा। नहीं तो लोगों के सामने इसका भयावह परिणाम आ सकता है। पर्यावरण के लाभ और उसके महत्व को ध्यान में रखकर वनों के संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया है।
MARK AS BRAINLIEST
THANX
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