i want 2 slogans on shishtachar &anushasan
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अनुशासन वह पुल होता है, जो हमें सफलता तक ले जाता है.
अनुशासन के बिना पूरी दुनिया अव्यवस्थित हो जाएगी.
अनुशासन के बिना बड़ी सफलता को सम्भाला नहीं जा सकता है.
अनुशासन, हमारे चरित्र निर्माण में अहम भूमिका निभाता है.
अनुशासन का पालन करना कड़वा होता है, लेकिन अनुशासन का पालन करने के बाद मिलने वाला फल बहुत मीठा होता है.
अनुशासन का पालन → मीठा फल…..
अनुशासन वह डोर है, जो हमें सफलता की ऊँचाइयों को छूने में मदद करती है. जैसे डोर के बिना पतंग नीचे गिर जाती है, वैसे हीं अनुशासन के बिना हम असफल हो जाते हैं.
अनुशासन का कोई विकल्प नहीं होता है. अनुशासन खुद सर्वश्रेष्ठ विकल्प होता है.
अभ्यास के बिना अनुशासन को कायम नहीं रखा जा सकता है.
अनुशासन की कमी प्रतिभावान लोगों को भी असफल बना देती है.
अनुशासनहीन व्यक्ति कभी दूसरों से प्रशंसा नहीं पा सकता है.
उत्कृष्टता और कुछ नहीं है, बल्कि यह आत्म अनुशासन का परिणाम होता है.
अनुशासन की कमी बच्चों का भविष्य खराब कर देती है.
संचार साधनों की ज्यादा उपलब्धता ने , अनुशासन के महत्व को और ज्यादा बढ़ा दिया है.
अनुशासन के बिना वर्तमान भी बर्बाद होता है और अनुशासन के बिना भविष्य भी बर्बाद हो जाता है.
अनुशासन नहीं है, तो जीवन नहीं है. सूरज समय से उगता है, मौसम समय से बदलते हैं….. अगर ये सब अनुशासन तोड़ दें, तो यह धरती जीने लायक नहीं रह जाएगी.
योग के द्वारा खुद को अनुशासित रखने में मदद मिलती है.
अनुशासन कोई सजा नहीं है, यह तो बस एक कड़वी दवा है.
असफल लोगों में एक समानता पाई जाती है, और वह समानता यह होती है कि असफल लोग अनुशासित नहीं होते हैं.
अनुशासित रहने की आदत बचपन से हीं डालनी चाहिए. क्योंकि बड़े हो जाने के बाद अनुशासन की आदत नहीं डाली जा सकती है.
‘शिष्टाचार दर्पण के समान है, जिसमें मनुष्य अपना प्रतिबिंब देखता है।’
गेटे
शिष्टाचार मनुष्य के व्यक्तित्व का दर्पण होता है। शिष्टाचार ही मनुष्य की एक अलग पहचान करवाता है। जिस मनुष्य में शिष्टाचार नहीं है, वह भीड़ में जन्म लेता है और उसी में कहीं खो जाता है। लेकिन एक शिष्टाचारी मनुष्य भीड़ में भी अलग दिखाई देता है जैसे पत्थरों में हीरा।
शिष्टाचारी मनुष्य समाज में हर जगह सम्मान पाता है- चाहे वह गुरुजन के समक्ष हो, परिवार में हो, समाज में हो, व्यवसाय में हो अथवा अपनी मित्र-मण्डली में।
अगर कोई शिक्षित हो, लेकिन उसमें शिष्टाचार नहीं है तो उसकी शिक्षा व्यर्थ है। क्योंकि जब तक वह समाज में लोगों का सम्मान नहीं करेगा, उसके समक्ष शिष्टता का व्यवहार नहीं करेगा तो लोग उसे पढ़ा-लिखा मूर्ख ही समझेंगे; जबकि एक अनपढ़ व्यक्ति- यदि उसमें शिष्टाचार का गुण है तो- उस पढ़े-लिखे व्यक्ति से अच्छा होगा, जो पढ़ा-लिखा होकर भी शिष्टाचारी नहीं है।
शिक्षा मनुष्य को यथेष्ट मार्ग पर अग्रसर करती है, लेकिन यदि मनुष्य पढ़ ले और शिक्षा के अर्थ को न समझे तो व्यर्थ है।
एक अनजान व्यक्ति एक परिवार में अपने शिष्ट व्यवहार से वह स्थान पा लेता है, जो परिवार के घनिष्ठ संबंधी भी नहीं पा सकते हैं। परिवार के सदस्य का अशिष्ट आचरण उसे अपने परिवार से तो दूर करता ही है, साथ ही वह समाज से भी दूर होता जाता है। जबकि एक अनजान अधिक करीबी बन जाता है।
शिष्ट व्यवहार मनुष्य को ऊँचाइयों तक ले जाता है। शिष्ट व्यवहार के कारण मनुष्य का कठिन-से-कठिन कार्य भी आसान हो जाता है। शिष्टाचारी चाहे कार्यालय में हो अथवा अन्यत्र कहीं, शीघ्र ही लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन जाता हैं। लोग भी उससे बात करने तथा मित्रता करने आदि में रुचि दिखाते हैं। एक शिष्टाचारी मनुष्य अपने साथ के अनेक लोगों को अपने शिष्टाचार से शिष्टाचारी बना देता शिष्टाचार वह ब्रह्मास्त्र है, जो अँधेरे में भी अचूक वार करता है- अर्थात् शिष्टाचार अँधेरे में भी आशा की किरण दिखाने वाला मार्ग है।
किस समय, कहाँ पर, किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए- उसके अपने-अपने ढंग होते हैं। हम जिस समाज में रहते हैं हमें अपने शिष्टाचार को उसी समाज में अपनाना पड़ता है, क्योंकि इस समाज में हम एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। जिस प्रकार एक परिवार के सभी सदस्य आपस में जुड़ होते हैं ठीक इसी प्रकार पूरे समाज में, देश में- हम जहाँ भी रहते हैं, एक विस्तृत परिवार का रूप होता है और वहाँ भी हम एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। एक बालक के लिए शिष्टाचार की शुरूआत उसी समय हो जाती है जब उसकी माँ उसे उचित कार्य करने के लिये प्रेरित करती है। जब वह बड़ा होकर समाज में अपने कदम रखता है तो उसकी शिक्षा प्रारंभ होती है। यहाँ से उसे शिष्टाचार का उचित ज्ञान प्राप्त होता है और यही शिष्टाचार जीवन के अंतिम क्षणों तक उसके साथ रहता है। यहीं से एक बालक के कोमल मन पर अच्छे-बुरे का प्रभाव आरंभ होता है। अब वह किस प्रकार का वातावरण प्राप्त करता है और किस वातावरण में स्वयं को किस प्रकार से ढालता है- वही उसको इस समाज में उचित-अनुचित की प्राप्ति करवाता है।
समाज में कहाँ, कब, कैसा शिष्टाचार किया जाना चाहिए, आइए इसपर एक दृष्टि डालें-
1. विद्यार्थी का शिक्षकों और गुरुजनों के प्रति शिष्टाचार,
2. घर में शिष्टाचार,
3. मित्रों से शिष्टाचार ,
4. आस-पड़ोस संबंधी शिष्टाचार ,
5. उत्सव सम्बन्धी शिष्टाचार,
6 समारोह संबंधी शिष्टाचार,
7 भोज इत्यादि संबंधी शिष्टाचार,
8. खान-पान संबंधी शिष्टाचार,
9. मेजबान एवं मेहमान संबंधी शिष्टाचार,
10. परिचय संबंधी शिष्टाचार,
11. बातचीत संबंधी शिष्टाचार,
12. लेखन आदि संबंधी शिष्टाचार,
13. अभिवादन संबंधी शिष्टाचार,
अनुशासन के बिना पूरी दुनिया अव्यवस्थित हो जाएगी.
अनुशासन के बिना बड़ी सफलता को सम्भाला नहीं जा सकता है.
अनुशासन, हमारे चरित्र निर्माण में अहम भूमिका निभाता है.
अनुशासन का पालन करना कड़वा होता है, लेकिन अनुशासन का पालन करने के बाद मिलने वाला फल बहुत मीठा होता है.
अनुशासन का पालन → मीठा फल…..
अनुशासन वह डोर है, जो हमें सफलता की ऊँचाइयों को छूने में मदद करती है. जैसे डोर के बिना पतंग नीचे गिर जाती है, वैसे हीं अनुशासन के बिना हम असफल हो जाते हैं.
अनुशासन का कोई विकल्प नहीं होता है. अनुशासन खुद सर्वश्रेष्ठ विकल्प होता है.
अभ्यास के बिना अनुशासन को कायम नहीं रखा जा सकता है.
अनुशासन की कमी प्रतिभावान लोगों को भी असफल बना देती है.
अनुशासनहीन व्यक्ति कभी दूसरों से प्रशंसा नहीं पा सकता है.
उत्कृष्टता और कुछ नहीं है, बल्कि यह आत्म अनुशासन का परिणाम होता है.
अनुशासन की कमी बच्चों का भविष्य खराब कर देती है.
संचार साधनों की ज्यादा उपलब्धता ने , अनुशासन के महत्व को और ज्यादा बढ़ा दिया है.
अनुशासन के बिना वर्तमान भी बर्बाद होता है और अनुशासन के बिना भविष्य भी बर्बाद हो जाता है.
अनुशासन नहीं है, तो जीवन नहीं है. सूरज समय से उगता है, मौसम समय से बदलते हैं….. अगर ये सब अनुशासन तोड़ दें, तो यह धरती जीने लायक नहीं रह जाएगी.
योग के द्वारा खुद को अनुशासित रखने में मदद मिलती है.
अनुशासन कोई सजा नहीं है, यह तो बस एक कड़वी दवा है.
असफल लोगों में एक समानता पाई जाती है, और वह समानता यह होती है कि असफल लोग अनुशासित नहीं होते हैं.
अनुशासित रहने की आदत बचपन से हीं डालनी चाहिए. क्योंकि बड़े हो जाने के बाद अनुशासन की आदत नहीं डाली जा सकती है.
‘शिष्टाचार दर्पण के समान है, जिसमें मनुष्य अपना प्रतिबिंब देखता है।’
गेटे
शिष्टाचार मनुष्य के व्यक्तित्व का दर्पण होता है। शिष्टाचार ही मनुष्य की एक अलग पहचान करवाता है। जिस मनुष्य में शिष्टाचार नहीं है, वह भीड़ में जन्म लेता है और उसी में कहीं खो जाता है। लेकिन एक शिष्टाचारी मनुष्य भीड़ में भी अलग दिखाई देता है जैसे पत्थरों में हीरा।
शिष्टाचारी मनुष्य समाज में हर जगह सम्मान पाता है- चाहे वह गुरुजन के समक्ष हो, परिवार में हो, समाज में हो, व्यवसाय में हो अथवा अपनी मित्र-मण्डली में।
अगर कोई शिक्षित हो, लेकिन उसमें शिष्टाचार नहीं है तो उसकी शिक्षा व्यर्थ है। क्योंकि जब तक वह समाज में लोगों का सम्मान नहीं करेगा, उसके समक्ष शिष्टता का व्यवहार नहीं करेगा तो लोग उसे पढ़ा-लिखा मूर्ख ही समझेंगे; जबकि एक अनपढ़ व्यक्ति- यदि उसमें शिष्टाचार का गुण है तो- उस पढ़े-लिखे व्यक्ति से अच्छा होगा, जो पढ़ा-लिखा होकर भी शिष्टाचारी नहीं है।
शिक्षा मनुष्य को यथेष्ट मार्ग पर अग्रसर करती है, लेकिन यदि मनुष्य पढ़ ले और शिक्षा के अर्थ को न समझे तो व्यर्थ है।
एक अनजान व्यक्ति एक परिवार में अपने शिष्ट व्यवहार से वह स्थान पा लेता है, जो परिवार के घनिष्ठ संबंधी भी नहीं पा सकते हैं। परिवार के सदस्य का अशिष्ट आचरण उसे अपने परिवार से तो दूर करता ही है, साथ ही वह समाज से भी दूर होता जाता है। जबकि एक अनजान अधिक करीबी बन जाता है।
शिष्ट व्यवहार मनुष्य को ऊँचाइयों तक ले जाता है। शिष्ट व्यवहार के कारण मनुष्य का कठिन-से-कठिन कार्य भी आसान हो जाता है। शिष्टाचारी चाहे कार्यालय में हो अथवा अन्यत्र कहीं, शीघ्र ही लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन जाता हैं। लोग भी उससे बात करने तथा मित्रता करने आदि में रुचि दिखाते हैं। एक शिष्टाचारी मनुष्य अपने साथ के अनेक लोगों को अपने शिष्टाचार से शिष्टाचारी बना देता शिष्टाचार वह ब्रह्मास्त्र है, जो अँधेरे में भी अचूक वार करता है- अर्थात् शिष्टाचार अँधेरे में भी आशा की किरण दिखाने वाला मार्ग है।
किस समय, कहाँ पर, किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए- उसके अपने-अपने ढंग होते हैं। हम जिस समाज में रहते हैं हमें अपने शिष्टाचार को उसी समाज में अपनाना पड़ता है, क्योंकि इस समाज में हम एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। जिस प्रकार एक परिवार के सभी सदस्य आपस में जुड़ होते हैं ठीक इसी प्रकार पूरे समाज में, देश में- हम जहाँ भी रहते हैं, एक विस्तृत परिवार का रूप होता है और वहाँ भी हम एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। एक बालक के लिए शिष्टाचार की शुरूआत उसी समय हो जाती है जब उसकी माँ उसे उचित कार्य करने के लिये प्रेरित करती है। जब वह बड़ा होकर समाज में अपने कदम रखता है तो उसकी शिक्षा प्रारंभ होती है। यहाँ से उसे शिष्टाचार का उचित ज्ञान प्राप्त होता है और यही शिष्टाचार जीवन के अंतिम क्षणों तक उसके साथ रहता है। यहीं से एक बालक के कोमल मन पर अच्छे-बुरे का प्रभाव आरंभ होता है। अब वह किस प्रकार का वातावरण प्राप्त करता है और किस वातावरण में स्वयं को किस प्रकार से ढालता है- वही उसको इस समाज में उचित-अनुचित की प्राप्ति करवाता है।
समाज में कहाँ, कब, कैसा शिष्टाचार किया जाना चाहिए, आइए इसपर एक दृष्टि डालें-
1. विद्यार्थी का शिक्षकों और गुरुजनों के प्रति शिष्टाचार,
2. घर में शिष्टाचार,
3. मित्रों से शिष्टाचार ,
4. आस-पड़ोस संबंधी शिष्टाचार ,
5. उत्सव सम्बन्धी शिष्टाचार,
6 समारोह संबंधी शिष्टाचार,
7 भोज इत्यादि संबंधी शिष्टाचार,
8. खान-पान संबंधी शिष्टाचार,
9. मेजबान एवं मेहमान संबंधी शिष्टाचार,
10. परिचय संबंधी शिष्टाचार,
11. बातचीत संबंधी शिष्टाचार,
12. लेखन आदि संबंधी शिष्टाचार,
13. अभिवादन संबंधी शिष्टाचार,
jaat7:
please make my question brainlist
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हमारे जीवन में शिष्टाचार की बहुत ही आवश्यकता है। कोई भी व्यक्ति सभ्य तभी बनता है जब उसके जीवन में शिष्टाचार होता है।
शिष्टाचार मतलब बड़ों का हमेशा हमे सम्मान करना चाहिए तथा छोटों को प्यार देना चाहिए। शिष्टाचारी व्यक्ति को दूसरे व्यक्तियों से भी सम्मान मिलता है। इसके लिए यह नारा हो सकता है कि जब हम होंगे आज्ञाकारी तभी बनेंगे शिष्टाचारी।
शिष्टाचार की तरह अनुशासन भी हमारे जीवन के लिए मतलब रखता है। शिष्टाचार और अनुशासन, दोनों जिनमें होता है कि वह व्यक्ति हमेशा सफल होता है तथा सभ्य भी होता है।
अनुशासन के लिए यह नारा हो सकता है कि हमें जीवन में कुछ करना है, हमेशा अनुशासन में रहना है।
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