I want an eassy on vigyapano ka jevan par prabav
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आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे जीवन पर हावी हो रही है। मनुष्य आधुनिक बनने की होड़ में बौद्धिक दासता स्वीकार कर रहे हैं, पश्चिम की संस्कृति का अनुकरण किया जा रहा है। आज उत्पाद को उपभोग की दृष्टि से नहीं बल्कि महज दिखावे के लिए खरीदा जा रहा है। इसका फायदा कंपनियाँ उठा रही हैं। वह अपने उत्पाद को दिखाने के लिए विज्ञापनों का सहारा लेती है। उनके विज्ञापन रोज़ ही टी.वी. पर दिखाए जाते हैं। विज्ञापनों के प्रभाव से हम दिग्भ्रमित हो रहे हैं। हमारे लिए क्या उचित है और क्या नहीं हमें इसका ध्यान ही नहीं रहता है। बस हमें खरीदना होता है। इससे हम अपना पैसा व्यय कर देते हैं। बाद में पता चलता है कि हमने वह सामान खरीदकर सबसे बड़ी भूल की।
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