I want Essay on grishma ritu in about 150to200 words..
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ग्रीष्म ऋतु
प्रकृति की सुन्दरता का शिल्पकार ईश्वर है । जिसकी सुन्दरता अवर्णनीय है । यही प्रकृति पग-पग पर अपना सौन्दर्य रूपी कोश लुटाती चलती है । भारत में प्रकृति की लीला दर्शनीय है ।
यहाँ पर छ: ऋतुएँ बारी-बारी से आकर पृथ्वी को अपने ढंग से सजाकर और मनुष्य को आमूल्य उपहार देकर चली जाती हैं । इसलिए प्रकृति और मनुष्य अन्योन्याश्रित है । एक-दूसरे के अभाव में दोनों ही सौन्दर्य-हीन हैं । प्रचण्ड ताप देने वाली ग्रीष्म ऋतु वैशाख, ज्येष्ठ मास में आती है ।
इस ऋतु में सूर्य की गति उत्तरायण की ओर होती है, जो गरम लू देता है जिससे असहनीय गर्मी पड़ती हैं । ग्रीष्म ऋतु में दिन लम्बे और रातें छोटी हो जाती हैं । सूर्य अपनी किरणों से जगत के द्रवांश पदार्थ को खींच लेता है । चारों दिशाओं में कष्टदायी पवनें चलती हैं, पृथ्वी गर्मी से तपी रहती है, नदियाँ कम जल-स्तर वाली हो जाती हैं ।
चारों दिशाएँ प्रज्वलित सी प्रतीत होती हैं, चकवा-चकवी पक्षियों का जोड़ा पानी की खोज में घूमता है । छोटे वृक्ष, पौधे और लताएं नष्ट हो जाते हैं । पेड़ों से पत्ते गिर जाते हैं । इस ऋतु में सूर्य तिक्षण किरणों वाला हो जाता है । ग्रीष्म ऋतु में धरती के तपने से सड़क का तारकोल पिघलने लगता है, जिससे यात्रियों को चलना कठिन हो जाता है ।
मनुष्य की तरह जानवर भी गर्मी महसूस करते हैं । वह पेड़ की छाया में बैठकर जुगाली करना और पानी में तैरना पसन्द करते हैं । पक्षी अपने घोंसलों में छिपकर बैठते हैं । कुत्तों की जीभ बाहर निकल आती है । जिससे ज्ञात होता है कि गर्मी असहनीय है ।
ग्रीष्म ऋतु में शरीर अलसाया हुआ और काम न करने वाला हो जाता है । ठण्डे स्थान पर रहने को मन करता है । अमीर लोग शिमला, मसूरी आदि पहाड़ी स्थानों पर चले जाते हैं । मध्यम वर्गीय लोग घरों में कूलर, पंखा, एअर कंडीश्नर लगाकर गर्मी को दूर करते हैं । बिजली के चले जाने पर लोग बेचैन हो उठते हैं ।
गरीब आदमी खुले आसमान के नीचे सोता है । प्रात: आठ बजते ही धूप निकलती है और धीरे-धीरे परशुराम के क्रोध की तरह उग्र होती जाती है । लोग दोपहर को धूप से बचने के लिए छाता लेकर निकलते है ।
ग्रीष्म ऋतु से बचाव करने के लिए लोग ठण्डी लस्सी, दही, आइसक्रीम खाते हैं । तरह-तरह के शीतल पेय और रस पीते हैं । जल और खाने की वस्तुओं को ठंडा रखने के लिए फ्रिज का उपयोग होता है ।
ग्रीष्म ऋतु जहाँ कष्टदायी है, वहीं हमारे जीवन के लिए उपयोगी भी है । गर्मी से ही फसलें पकती हैं । खीरे, ककड़ी, तरबूज, आम में मिठास आती है । इस ऋतु में पहाड़ों की बर्फ पिघलकर झरनों और नदियों में परिवर्तित हो जाती है, जिसकी शोभा देखते ही बनती है । यही जल हमारे दैनिक उपयोग में भी आता है ।
ग्रीष्म ऋतु ही वर्षा वर्षा ऋतु के आगमन की तैयारी करती है । इस ऋतु में तेज गर्मी के कारण समुद्रों का जल वाष्प के रूप में आकाश में जाता है, वहीं से बदलकर जल बरसता है । ग्रीष्म ऋतु में हमें अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए । बाहर से आते ही तुरन्त पानी नहीं पीना चाहिए । बाजार की तली हुई वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए ।
ग्रीष्म ऋतु की असहनीय गर्मी को देखकर ऐसा लगता है, मानो छाया भी छाया ढूंढ रही हो और प्यास-प्यासी रह गई हो । यह ऋतु हमें संदेश देती है कि जैसे प्रचण्ड गर्मी के बाद वर्षा आती है उसी प्रकार दु:ख के बाद सुख भी आता है । हमें कष्टों से नहीं घबराना चाहिए, अपितु कर्म करते हुए तेजस्वी बनकर सूर्य की तरह चमकते रहना चाहिए ।
प्रकृति की सुन्दरता का शिल्पकार ईश्वर है । जिसकी सुन्दरता अवर्णनीय है । यही प्रकृति पग-पग पर अपना सौन्दर्य रूपी कोश लुटाती चलती है । भारत में प्रकृति की लीला दर्शनीय है ।
यहाँ पर छ: ऋतुएँ बारी-बारी से आकर पृथ्वी को अपने ढंग से सजाकर और मनुष्य को आमूल्य उपहार देकर चली जाती हैं । इसलिए प्रकृति और मनुष्य अन्योन्याश्रित है । एक-दूसरे के अभाव में दोनों ही सौन्दर्य-हीन हैं । प्रचण्ड ताप देने वाली ग्रीष्म ऋतु वैशाख, ज्येष्ठ मास में आती है ।
इस ऋतु में सूर्य की गति उत्तरायण की ओर होती है, जो गरम लू देता है जिससे असहनीय गर्मी पड़ती हैं । ग्रीष्म ऋतु में दिन लम्बे और रातें छोटी हो जाती हैं । सूर्य अपनी किरणों से जगत के द्रवांश पदार्थ को खींच लेता है । चारों दिशाओं में कष्टदायी पवनें चलती हैं, पृथ्वी गर्मी से तपी रहती है, नदियाँ कम जल-स्तर वाली हो जाती हैं ।
चारों दिशाएँ प्रज्वलित सी प्रतीत होती हैं, चकवा-चकवी पक्षियों का जोड़ा पानी की खोज में घूमता है । छोटे वृक्ष, पौधे और लताएं नष्ट हो जाते हैं । पेड़ों से पत्ते गिर जाते हैं । इस ऋतु में सूर्य तिक्षण किरणों वाला हो जाता है । ग्रीष्म ऋतु में धरती के तपने से सड़क का तारकोल पिघलने लगता है, जिससे यात्रियों को चलना कठिन हो जाता है ।
मनुष्य की तरह जानवर भी गर्मी महसूस करते हैं । वह पेड़ की छाया में बैठकर जुगाली करना और पानी में तैरना पसन्द करते हैं । पक्षी अपने घोंसलों में छिपकर बैठते हैं । कुत्तों की जीभ बाहर निकल आती है । जिससे ज्ञात होता है कि गर्मी असहनीय है ।
ग्रीष्म ऋतु में शरीर अलसाया हुआ और काम न करने वाला हो जाता है । ठण्डे स्थान पर रहने को मन करता है । अमीर लोग शिमला, मसूरी आदि पहाड़ी स्थानों पर चले जाते हैं । मध्यम वर्गीय लोग घरों में कूलर, पंखा, एअर कंडीश्नर लगाकर गर्मी को दूर करते हैं । बिजली के चले जाने पर लोग बेचैन हो उठते हैं ।
गरीब आदमी खुले आसमान के नीचे सोता है । प्रात: आठ बजते ही धूप निकलती है और धीरे-धीरे परशुराम के क्रोध की तरह उग्र होती जाती है । लोग दोपहर को धूप से बचने के लिए छाता लेकर निकलते है ।
ग्रीष्म ऋतु से बचाव करने के लिए लोग ठण्डी लस्सी, दही, आइसक्रीम खाते हैं । तरह-तरह के शीतल पेय और रस पीते हैं । जल और खाने की वस्तुओं को ठंडा रखने के लिए फ्रिज का उपयोग होता है ।
ग्रीष्म ऋतु जहाँ कष्टदायी है, वहीं हमारे जीवन के लिए उपयोगी भी है । गर्मी से ही फसलें पकती हैं । खीरे, ककड़ी, तरबूज, आम में मिठास आती है । इस ऋतु में पहाड़ों की बर्फ पिघलकर झरनों और नदियों में परिवर्तित हो जाती है, जिसकी शोभा देखते ही बनती है । यही जल हमारे दैनिक उपयोग में भी आता है ।
ग्रीष्म ऋतु ही वर्षा वर्षा ऋतु के आगमन की तैयारी करती है । इस ऋतु में तेज गर्मी के कारण समुद्रों का जल वाष्प के रूप में आकाश में जाता है, वहीं से बदलकर जल बरसता है । ग्रीष्म ऋतु में हमें अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए । बाहर से आते ही तुरन्त पानी नहीं पीना चाहिए । बाजार की तली हुई वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए ।
ग्रीष्म ऋतु की असहनीय गर्मी को देखकर ऐसा लगता है, मानो छाया भी छाया ढूंढ रही हो और प्यास-प्यासी रह गई हो । यह ऋतु हमें संदेश देती है कि जैसे प्रचण्ड गर्मी के बाद वर्षा आती है उसी प्रकार दु:ख के बाद सुख भी आता है । हमें कष्टों से नहीं घबराना चाहिए, अपितु कर्म करते हुए तेजस्वी बनकर सूर्य की तरह चमकते रहना चाहिए ।
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