I want explanation of the chapter parvat pradesh mein pavas .please its urgent ihave my exam tommorow
Answers
पर्वत प्रदेश में प्रवास में सुमित्रानंदन पंत जी ने पर्वतीय इलाके में वर्षा का सजीव चित्रण किया है। वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति में प्रति क्षण बदलाव होता है। कभी बादल छा जाते हैं और मूसलधार वर्षा होती है। कभी धूप निकल आती है।
पहाड़ों की श्रुंखला मंडप का आकार लेकर अपनी पुष्प रूपी आँखों को खोलकर नीचे देखती हैं। ऐसा लगता है कि तालाब पर्वत के चरणों में पला हुआ है और दर्पण जैसा विशाल दिखाई दे रहा है।
झरने पर्वत के गौरव का गुणगान करते हुए बह रहे हैं। उनकी ध्वनि मन में उत्साह का संचार करती है। पर्वत पर झाग भरे झरने मोती की लड़ियों के समान प्रतीत होते हैं जो पर्वत की सुंदरता को बढ़ाते हैं। वृक्ष पर्वत के ह्रदय से निकलकर अपनी ऊँची आकाँक्षाओं के साथ आकाश की ओर स्थिर होकर देख रहे हैं।
अचानक बादलों के छा जाने से ऐसा लगता है कि पर्वत गायब हो गए हैं। ऐसा लगता है कि आकाश धरती पर टूटकर गिर गया है। सिर्फ झरनों का शोर सुनाई देता है। तेज़ बारिश के कारण धुआं दिखाई देता है मानो तालाब में आग लग गई हो। मौसम के इस भयंकर रूप को देखकर शाल के पेड़ डरकर धरती में और नीचे चले जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इंद्र देव बादल रूपी विमान में बैठकर इधर उधर अपना खेल दिखा रहे हैं।