Hindi, asked by nainakalki31, 5 months ago

I want flowchart of ch- पानी की कहानी.....

I need flow chart;neither question/answers nor the chapter
If u don't know kindly don't answer...

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◆Correct answers will be thanked...
◆Satisfied answer will be marked as brainliest and I will follow him/her.....

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Answers

Answered by rajnish2003
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Explanation:

कहानी की शुरुआत में लेखक ने लिखा हैं कि बेर की झाड़ी से मोती-सी एक पानी की बूँद उनके हाथ में आ गई ।और उनकी दृष्टि उस बूँद पर पड़ते ही वह रुक गई। लेखक कहते हैं कि थोड़ी देर बाद उनकी हथेली से सितार के तारों की-सी झंकार सुनाई देने लगी।ध्यान से देखने पर मालूम हुआ कि वह पानी की बूँद दो भागों में बँट गई हैं और वे दोनों हिल-हिलकर यह स्वर उत्पन्न कर रहे हैं। ऐसा लग रहा था मानो जैसे वो बोल रही हों।

लेखक ने यहां पर पानी की बूंदों का मानवीकरण किया है। उसके बाद लेखक उन बूंदों से बातें करने लगते हैं। ओस की बूँद अपने बारे में बताती है कि वह लेखक की हथेली पर बेर के पेड़ से आई है। और वह लेखक को यह भी बताती हैं कि बेर के पेड़ की जड़ों के रोएँ उस जैसी असंख्य छोटी-छोटी बूंदों को धरती से खींच लेते हैं और फिर उनका उपयोग कर उन्हें बाहर फेंक देते हैं।

पानी की बूंद बेर के पेड़ से अत्यधिक नाराज है। वह कहती हैं कि इस पेड़ को इतना बड़ा करने के लिए मेरी जैसी असंख्य बूंदों ने अपनी कुर्बानी दी हैं। लेखक उसकी बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे ।

उसके बाद बूँद , पेड़ की जड़ों द्वारा पानी को खींचा जाना और उनका प्रयोग अपना खाना बनाने के लिए करना और अंत में पेड़ के पत्तों के छोटे-छोटे छिद्रों से बाहर निकल आने की कहानी लेखक को बताती हैं। और साथ में यह भी बताती है कि सूरज के ढल जाने के कारण अब वह भाप बनकर उड़ नहीं सकती। इसीलिए वह सूरज के आने का इंतजार कर रही है।

लेखक उसे आशवासन देते हैं कि अब वह सुरक्षित हैं। इसके बाद छोटी सी बूँद लेखक को अपनी उत्पत्ति की कहानी बताती हैं।

बूँद कहती हैं कि जब हमारे पूरे ब्रह्मांड में उथल-पुथल हो रही थी। अनेक नये ग्रह और उपग्रह बन रहे थे। यानि ब्रह्मांड की रचना हो रही थी। तब मेरे दो पूर्वज हद्रजन (हाइट्रोजन और ऑक्सीजन गैस) सूर्यमंडल में आग के रूप में मौजूद थे।और सूर्यमंडल लगातार अपने निश्चित मार्ग पर चक्कर काटता रहता था।

लेकिन एक दिन अचानक ब्रह्मांड में ही बहुत दूर , सूर्य से लाखों गुना बड़ा एक प्रकाश-पिंड दिखाई पड़ा। यह पिंड बड़ी तेज़ी से सूर्य की ओर बढ़ रहा था। उसकी आकर्षण शक्ति से हमारा सूर्य भी काँप रहा था। ऐसा लग रहा था कि वह सूर्य से टकरा जाएगा।

मगर वह सूर्य से सहस्रों मील दूर से ही दूसरी दिशा की ओर निकल गया । परंतु उसकी भीषण आकषर्ण-शक्ति के कारण सूर्य का एक भाग टूटकर कई छोटे टुकड़ों में बंट गया। उन्हीं में से एक टुकड़ा हमारी पृथ्वी है। यह प्रारंभ में एक बड़ा आग का गोला थी।

लेखक ने बूँद से प्रश्न किया कि अगर पृथ्वी आग का गोला थी तो , तुम पानी कैसे बनी। बूँद ने जबाब दिया । अरबों वर्षों में धीरे-धीरे पृथ्वी ठंडी होती चली गई और मेरे पूर्वजों ने आपस में रासायनिक क्रिया कर मुझे पैदा किया।

पैदा होते समय मैं भाप के रूप में पृथ्वी के चारों ओर घूमती थी। फिर धीरे धीरे ठोस ब़र्फ में बदल गई । फिर लाखों वर्षों बाद सूर्य की किरणें पड़ने और गर्म जल धारा से मिलने के कारण मैं पानी में परिवर्तित समुद्र में पहुंच गई।

बूँद कहती हैं कि नमक से भरे समुद्र में बहुत ही अनोखा नजारा था।वहाँ एक से एक अनोखे जीव भरे पड़े थे। जैसे रेंगने वाले घोंघे , जालीदार मछलियाँ , कई-कई मन भारी कछुवे और हाथों वाली मछलियाँ आदि।और समुद्र की अधिक गहराई में जगंल , छोटे ठिंगने व मोटे पत्ते वाले पेड़ भी उगे थे। वहाँ पर पहाडिय़ाँ , गुफायें और घाटियाँ भी थी। जहाँ आलसी और अँधे अनेक जीव रहते थे।

बूँद लेखक को आगे बताती है कि समुद्र के अन्दर से बाहर आना भी आसान काम नहीं था। उसने समुद्र से बाहर आने के लिए कई कोशिशें की। कभी चट्टानों में घुसकर बाहर निकलने की कोशिश की तो , कभी धरती के अंदर ही अंदर किसी सुरक्षित जगह से बाहर निकलने की कोशिश। ऐसी तमाम कोशिशों के बाद अंततः ज्वालामुखी के निकट पहुंच गई।

ज्वालामुखी की गर्मी के कारण वह फिर से भाप में परिवर्तित हो आसमान में उड़ चली। फिर बादल रूप में परिवर्तित होकर दोबारा बरस कर जमीन में आ गिरी। जमीन में आने के पश्चात नदी के रूप में बहने लगी। तभी एक नगर के पास एक नल द्वारा उसे खींच लिया गया।

महीनों तक नलों में धूमने के बाद एक दिन नल के टूटे हिस्से से बाहर निकल आयी और बेर के पेड़ के पास अटक गयी। अब सुबह होने तक का इंतजार कर रही है ताकि वह दोबारा भाप बन सके। और सूर्योदय होते ही ओस की बूँद धीरे-धीरे घटी और देखते-देखते ही लेखक की हथेली से गायब हो गई।

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