I want hindi essay on Khelo ka mahatva in 200 words for class 9th.
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Credits: KVN Murthy (The Sage)
जीवन में खेल खुदों का महत्व
स्वस्थ रहने के लिये हमें हर दिन कुछ न कुछ व्यायाम करना चाहिये । खेल भी शारीरिक व्यायाम करने का एक उत्तम तरीका है। खेल खेलने से हम अपना शरीर को चुस्त, और दुरुस्त (योग्य या फिट) रख सकते हैं । बिना व्यायाम के हम मोटे हो जाते हैं और बदन में फाट जाम जाता है। खेलों से हमें आनंद मिलता है । खेल तो आजकल एक पेशा भी है। और खेल एक बड़ा उद्योग और व्यापार भी है ।
खेलों और क्रीडाओं का हमारे जीवन में बहुत महत्व पूर्ण योगदान और भूमिका है । खेलों से हम बहुत कुछ सीखते हैं । बच्चे तो खेलों से अपना समय बिताते हैं और मन बहलाते हैं। वे अपने साथियों के साथ दोस्ती भी खेलों के मध्यम से बढ़ाते हैं।
खेल खेलने से पेशी बढ़ती हैं । मलबंध रोग का अच्छा इलाज हो जाता है । मन शांत रहता है और प्रसन्न होता है । मोटापन कम होता है । उत्साह बढ़ता है । चेहरा खिलता है । हृदय रोग नहीं आते । अगर होंगे तो भी थोड़ा सा कम होते हैं। बदन में खून का बहाव ठीक ठीक रहता है । दिमाग तेज चलने लगता है । रात को नींद भी ठीक ठीक आता है। इसीलिए बहुत लोग अपने घरों में केरम बोर्ड, बैंक, बिज़नस, चदरंग के खेल खेलते हैं। स्विमिंग पूल भी बनवाते हैं । बाडमिंटन कोर्ट भी बनवाते हैं।
अपने विद्यालय, शहर, राज्य या देश के लिये खेलों में भाग लेना तो बड़ा गर्व की बात है। इस से सभी हमें सम्मान मिलता है । पुरस्कार भी मिलते हैं । ख़ाली समय में हम खेल खेलने से समय भी बीतता है और हम थोडासा आराम करने के बाद ज्यादा दिलचस्पी से पढ़ाई या घर का काम कर सकते हैं। दैनंदिक कार्यक्रम में कुछ समय विनोद या मनोरंजन नहीं होने से जीवन एक तान और नीरस हो जाता है।
बहुत अच्छे खेलने वालों को आजकल बहुत अवसर मिलते हैं अपने जिला, अपने विद्यालय, राज्य , देश के लिए खेलने के लिए। आजकल तो पैसे भी मिलते हैं खिलाड़ियों को। कुछ ही साल पहले तो आई. पी. एल. , आइ . सी. एल . , पी. के, एल. इत्यादि टोर्नामेंट शुरू हुए हैं । इन खेलों को भारत के सब शहरों में बहुत आदरण मिला है। खिलाड़ियों को नौकरी भी मिलता है ।
https://brainly.in/question/660461 -> Thank him here.
जीवन में खेल खुदों का महत्व
स्वस्थ रहने के लिये हमें हर दिन कुछ न कुछ व्यायाम करना चाहिये । खेल भी शारीरिक व्यायाम करने का एक उत्तम तरीका है। खेल खेलने से हम अपना शरीर को चुस्त, और दुरुस्त (योग्य या फिट) रख सकते हैं । बिना व्यायाम के हम मोटे हो जाते हैं और बदन में फाट जाम जाता है। खेलों से हमें आनंद मिलता है । खेल तो आजकल एक पेशा भी है। और खेल एक बड़ा उद्योग और व्यापार भी है ।
खेलों और क्रीडाओं का हमारे जीवन में बहुत महत्व पूर्ण योगदान और भूमिका है । खेलों से हम बहुत कुछ सीखते हैं । बच्चे तो खेलों से अपना समय बिताते हैं और मन बहलाते हैं। वे अपने साथियों के साथ दोस्ती भी खेलों के मध्यम से बढ़ाते हैं।
खेल खेलने से पेशी बढ़ती हैं । मलबंध रोग का अच्छा इलाज हो जाता है । मन शांत रहता है और प्रसन्न होता है । मोटापन कम होता है । उत्साह बढ़ता है । चेहरा खिलता है । हृदय रोग नहीं आते । अगर होंगे तो भी थोड़ा सा कम होते हैं। बदन में खून का बहाव ठीक ठीक रहता है । दिमाग तेज चलने लगता है । रात को नींद भी ठीक ठीक आता है। इसीलिए बहुत लोग अपने घरों में केरम बोर्ड, बैंक, बिज़नस, चदरंग के खेल खेलते हैं। स्विमिंग पूल भी बनवाते हैं । बाडमिंटन कोर्ट भी बनवाते हैं।
अपने विद्यालय, शहर, राज्य या देश के लिये खेलों में भाग लेना तो बड़ा गर्व की बात है। इस से सभी हमें सम्मान मिलता है । पुरस्कार भी मिलते हैं । ख़ाली समय में हम खेल खेलने से समय भी बीतता है और हम थोडासा आराम करने के बाद ज्यादा दिलचस्पी से पढ़ाई या घर का काम कर सकते हैं। दैनंदिक कार्यक्रम में कुछ समय विनोद या मनोरंजन नहीं होने से जीवन एक तान और नीरस हो जाता है।
बहुत अच्छे खेलने वालों को आजकल बहुत अवसर मिलते हैं अपने जिला, अपने विद्यालय, राज्य , देश के लिए खेलने के लिए। आजकल तो पैसे भी मिलते हैं खिलाड़ियों को। कुछ ही साल पहले तो आई. पी. एल. , आइ . सी. एल . , पी. के, एल. इत्यादि टोर्नामेंट शुरू हुए हैं । इन खेलों को भारत के सब शहरों में बहुत आदरण मिला है। खिलाड़ियों को नौकरी भी मिलता है ।
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oho u have copied
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”पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होओगे खराब”- यह कहावत आज निराधार हो गई है । माता-पिता आज जान गए है कि बच्चों के मानसिक विकास के साथ शारीरिक विकास भी होना चाहिए ।
व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन तन और मन रूपी गाड़ी से चलता है । व्यायाम, खेल शारीरिक विकास करते हैं तथा शिक्षा, चिन्तन-मनन से व्यक्ति का मानसिक विकास होता है । खेल के अनेक रूप हैं- कुछ खेल बच्चों के लिए होते हैं, कुछ बड़ों के लिए, कुछ बड़ों के लिए, कुछ वृद्धों के लिए होते हैं । कुछ खेलों को खेलने के लिए विशाल मैदानों की आवश्यकता नहीं होती ।
लेकिन उन में मनोरंजन और बौद्धिक विकास अवश्य होते हैं जैसे- कैरम बोर्ड, शतरंज, सांप-सीढ़ी, लुडो, ताश आदि । ‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है ।’ जो बच्चे केवल पढ़ना ही पसन्द करते हैं खेलना नहीं, देखा जाता है कि वे चिड़चिड़े आलसी या डरपोक हो जाते हैं, यहां तक कि अपनी रक्षा करने में असमर्थ रहते हैं ।
जो पढ़ने के साथ-साथ खेलों में भी भाग लेते हैं वे चुस्त और आलस्य रहित होते हैं । उनकी हड्डियां मजबूत और चेहरा कान्तिमय हो जाता है, पाचन-शक्ति ठीक रहती है, नेत्रों की ज्योति बढ़ जाती है, शरीर वज्र की तरह हो जाता है । छात्र जीवन में केवल खेलते या पढ़ते ही नहीं रहना चाहिए अपितु उद्देश्य होना चाहिए खेलने के समय खेलना और पढ़ने के समय पढ़ना- ”Work while Your you work, play while you play”.
मनुष्य को जो पाठ शिक्षा नहीं सिखा पाती वह खेल का मैदान सिखा देता है । जैसे- खेल खेलते समय अनुशासन में रहना, नेता की आज्ञा का पालन करना, खेल में जीत के समय उत्साह, हारने पर सहिष्णुता तथा विरोधी के प्रति प्रतिरोध का भाव न रखना, अपनी असफलता का पता लगने पर जीतने के लिए पुन: प्रयत्न करना आदि सिखाता है ।
बच्चों की किशोरावस्था से ही उनकी रुचि के खेल खेलने देने चाहिए । उनकी कोमल भावनाओं को कुचलना नहीं चाहिए । उन्हें संघर्ष के लिए तैयार करना चाहिए । जिससे भविष्य में उन्हें खेलों में विजय और यश मिले, विश्व रिकॉर्ड बनाकर, अपना और देश का गौरव बढ़ाए । नेपोलियन को हराने वाले सेनापति नेलसन ने कहा था कि मेरी विजय का समस्त श्रेय किशोरावस्था के खेल के मैदान को है-
व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन तन और मन रूपी गाड़ी से चलता है । व्यायाम, खेल शारीरिक विकास करते हैं तथा शिक्षा, चिन्तन-मनन से व्यक्ति का मानसिक विकास होता है । खेल के अनेक रूप हैं- कुछ खेल बच्चों के लिए होते हैं, कुछ बड़ों के लिए, कुछ बड़ों के लिए, कुछ वृद्धों के लिए होते हैं । कुछ खेलों को खेलने के लिए विशाल मैदानों की आवश्यकता नहीं होती ।
लेकिन उन में मनोरंजन और बौद्धिक विकास अवश्य होते हैं जैसे- कैरम बोर्ड, शतरंज, सांप-सीढ़ी, लुडो, ताश आदि । ‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है ।’ जो बच्चे केवल पढ़ना ही पसन्द करते हैं खेलना नहीं, देखा जाता है कि वे चिड़चिड़े आलसी या डरपोक हो जाते हैं, यहां तक कि अपनी रक्षा करने में असमर्थ रहते हैं ।
जो पढ़ने के साथ-साथ खेलों में भी भाग लेते हैं वे चुस्त और आलस्य रहित होते हैं । उनकी हड्डियां मजबूत और चेहरा कान्तिमय हो जाता है, पाचन-शक्ति ठीक रहती है, नेत्रों की ज्योति बढ़ जाती है, शरीर वज्र की तरह हो जाता है । छात्र जीवन में केवल खेलते या पढ़ते ही नहीं रहना चाहिए अपितु उद्देश्य होना चाहिए खेलने के समय खेलना और पढ़ने के समय पढ़ना- ”Work while Your you work, play while you play”.
मनुष्य को जो पाठ शिक्षा नहीं सिखा पाती वह खेल का मैदान सिखा देता है । जैसे- खेल खेलते समय अनुशासन में रहना, नेता की आज्ञा का पालन करना, खेल में जीत के समय उत्साह, हारने पर सहिष्णुता तथा विरोधी के प्रति प्रतिरोध का भाव न रखना, अपनी असफलता का पता लगने पर जीतने के लिए पुन: प्रयत्न करना आदि सिखाता है ।
बच्चों की किशोरावस्था से ही उनकी रुचि के खेल खेलने देने चाहिए । उनकी कोमल भावनाओं को कुचलना नहीं चाहिए । उन्हें संघर्ष के लिए तैयार करना चाहिए । जिससे भविष्य में उन्हें खेलों में विजय और यश मिले, विश्व रिकॉर्ड बनाकर, अपना और देश का गौरव बढ़ाए । नेपोलियन को हराने वाले सेनापति नेलसन ने कहा था कि मेरी विजय का समस्त श्रेय किशोरावस्था के खेल के मैदान को है-
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