Hindi, asked by 8337034181, 1 year ago

I want to write an essay in hindi on the topic "ped ki atmakatha"

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Answered by fluffy
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पेड़ की आत्मकथा :

मैं एक पेड़ हूँ। मैं पृथ्वी पर सभी जीवित चीजों कि मदद करता हूं।  मैं सभी मनुष्यों और पशुओं को भी भोजन उपलब्ध कराने और मैं इस दुनिया में सभी जीवों के लिए ऑक्सीजन का स्रोत हूं। मैं पृथ्वी पर वर्षा में मदद करता हैं। मैं कई छोटे कीड़े और पक्षियों के लिए और भी कुछ अन्य जीवों के लिए आश्रय देता हूं ।सभी शाकाहारी उनकी सभी लाइव समय भोजन के लिए मुझ पर निर्भर होते हे। यहां तक ​​कि मैं पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग को कम कर रहा हूँ।मैं भी पृथ्वी पर प्रदूषण को कम कर रहा हूँ ।  जब मैं छोटा था और अब भी मैं प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हो रहा हूँ । मैं पृथ्वी को बहुत मदद करते आया हूँ । लेकिन अब मनुष्य मुझे नष्ट कर रहे हैं। मैं लंबे समय रहना चाहता हूँ और हमारी पृथ्वी को बचाना चाहता हूँ । 
Answered by Anonymous
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पेड़ की आत्मकथा।
 मैं एक पेड़  हु।  आज के करीब चालीस साल पहले , ठीक इसी जगह मेरा जन्म हुआ था। रिया के मुह से गिरे हुए दाने से मेरे जीवन का शुरुवात हुआ था।    अभी भी वह पल याद है , जब मैंने पहली  बार , सूरज की किरणों को महसूस किया।  क्या अमूल्य पल था वो।  बचपन में मेरा आकर तो बहुत ही छोटा था , यही कही एक - दो फुट का था मैं।  
बचपन में मुझे बहुत कठिनिया भी झेलनी परती थी , छोटे कद का होने के कारन जानवर मुझे हमेशा तंग करते थे, कितने बार तो मेरी जान जाते - जाते बची। खैर, उन दिनों की बात रहे , धीरे - धीरे साल दो साल के अंदर मैं बढ़ा हुआ।  मेरी कद थोड़ी लम्बी हुयी , चलो  शुक्र है , अब मुझे हमेशा जानवरो का डर नही लगा रहता था। अभी दुनिया को नया ही देख रहा थे मैं , नयी नयी चीज़े देखा , नए लोगो को जाना आदि।
 ऐसे ही और तीन - चार साल बिट गए , अब माओं बढ़ा हो गया था , और मैं वो सब करने के लायक बन  चूका था जो बढे पैर कर सकते है।  तो अब मैं , मनुष्यो को अपनी सेवाएं प्रदान करता।  उन्हें अपनी शीतल छाया देता हु, उन्हें फल - फूल देता हु , लकड़ी , कागज़ , बादाम , और सबसे अमूल्य - ओषजन ( ऑक्सीजन ) मानव जाती मुझसे ही प्राप्त करती है। 
पर मानव को देखो, वो तो मुझे जैसे लाखो पेड़  को , जो उन्हें इतनी ज़रूरी चीज़े देता है , उन्हें ही  काट डालता है।  
कुछ साल पहले तो हालत और बुरी , अब तो फिर भी , सरकार के कुछ उद्योगो के सहारे हमारी सुरक्षा होती है।  अब मैं थोड़ा बूढ़ा हो रहा हु , फिर भी चालीस वर्ष मुझ जैसे बरगद के वृक्ष के लिए तो कुछ भी नही , अभी तो और हज़ारो साल मुझे यह दुनिया देखनी है , सच पेड़  होने के कुछ आभाव तो है , पर ज़रा यह भी जानू  कौन इस दुनिया को सौ - दोसौ साल तक देखेगा, मेरी तरह।  पेड़ होना भी कितना भग्यवान है। 
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