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व्याकरण प्रकाश-9-10 (कोर्स-ए)
अभ्यास-कार्य
1. 'वाच्य' से क्या तात्पर्य है? उदाहरण देकर समझाइए।
2. अंतर स्पष्ट कीजिए।
1. कर्तृवाच्य तथा अकर्तृवाच्य
2. कर्मवाच्य तथा भाववाच्य
3. उदाहरण देते हुए संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
1.वाच्य
2. कर्मवाच्य
3. भाववाच्य
4. वाच्य और प्रयोग
4. कोष्ठक से उपयुक्त शब्द का चयन कर वाक्य के रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
1. वाच्य-परिवर्तन के द्वारा लगभग एक ही बात को
कहा जाता है।
(समान रूप से/दो तरह से
2. कर्तरि प्रयोग में क्रिया
के अनुसार बदलती है।
(कर्ता की संज्ञा / परसर्गयुक्त संज्ञा / परसर्गरहित संज्ञा)
3. कर्मणि प्रयोग में क्रिया
से कभी नहीं बदल सकती।
(कर्म/कर्ता / भाव
4. भाववाच्य सदैव
प्रयोग में होता है।
(कर्तरि कर्मणि/ भाव
5. अकर्तृवाच्य के वाक्यों में कर्ता के कार्य को
किया जाता है। (पूरा/निरस्त / सफल)
6. भाववाच्य के वाक्य में क्रिया
होती है।
(सकर्मक /अकर्मक/ सहायक
7. अकर्तृवाच्य बनाते समय मूल क्रिया के
'जा' प्रत्यय जोड़ा जाता है।(पहले/ बीच में/ अंत में)
8. कर्मवाच्य में
प्रयोग नहीं हो सकता।
(कर्तरि/कर्मणि/ भावे
5. दिए गए वाक्य कर्तृवाच्य के हैं या अकर्तृवाच्य के हैं? वाच्य का नाम लिखिए।
वाक्य
वाच्य का नाम
1. चलो, अब काम किया जाए।
2. आइए, कुछ खाते हैं।
3. कहिए, आपको किसने भेजा है?
4. हमसे काम नहीं किया जा सकेगा।
5. भगवान सबका कल्याण करे।
6. उसने कुत्ते को भगा दिया।
7. आप गाली मत दीजिए।
8. बातें न बनाई जाएँ तो अच्छा होगा।
9. परीक्षा में मुझसे लिखा ही नहीं गया।
10. बच्चों को क्या सिखाया जा रहा है?
11. झाड़ क्यों नहीं लगाई गई?
12. शरबत नहीं पिलाओगे?
13. अखबार तो सुबह ही पढ़ा जाता है।
14. कुली से सारा सामान नहीं उठाया जा सका।
15. कल से दौड़ा न जाए।
6. दिए गए कर्तृवाच्य के वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए।
1. आप अपना काम करें।
2. भीड़ में साइकिल मत चलाओ।
3. बुखार है तो दवाई ले लो।
Answers
Answer:
1.) वाच्य के भेद:-
सरल शब्दों में- क्रिया के जिस रूप में कर्ता प्रधान हो, उसे कर्तृवाच्य कहते हैं।
सरल शब्दों में- क्रिया के जिस रूप में कर्म प्रधान हो, उसे कर्मवाच्य कहते हैं। उदाहरण के लिए- कवियों द्वारा कविताएँ लिखी गई।
2.)क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि वाक्य में क्रिया द्वारा संपादित विधान का विषय कर्ता है, कर्म है, अथवा भाव है, उसे वाच्य कहते हैं।
क्रिया के उस परिवर्तन को वाच्य कहते हैं, जिसके द्वारा इस बात का बोध होता है कि वाक्य के अन्तर्गत कर्ता, कर्म या भाव में से किसकी प्रधानता है।
वाच्य के तीन प्रकार हैं : -
♦ कर्तृवाच्य- क्रिया के उस रूपान्तर को कर्तृवाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में कर्ता की प्रधानता का बोध हो।
जैसे- राम पुरतक पढ़ता है, मैंने पुस्तक पढ़ी।
♦ कर्मवाच्य- क्रिया के उस रूपान्तर को कर्मवाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में कर्म की प्रधानता का बोध हो।
जैसे- पुस्तक पढ़ी जाती है; आम खाया जाता है।
यहाँ क्रियाएँ कर्ता के अनुसार रूपान्तररित न होकर कर्म के अनुसार परिवर्तित हुई हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अँगरेजी की तरह हिन्दी में कर्ता के रहते हुए कर्मवाच्य का प्रयोग नहीं होता; जैसे- 'मैं दूध पीता हूँ' के स्थान पर 'मुझसे दूध पीया जाता है' लिखना गलत होगा। हाँ, निषेध के अर्थ में यह लिखा जा सकता है- मुझसे पत्र लिखा नहीं जाता; उससे पढ़ा नहीं जाता।
♦ भाववाच्य- क्रिया के उस रूपान्तर को भाववाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में क्रिया अथवा भाव की प्रधानता का बोध हो ।
जैसे- मोहन से टहला भी नहीं जाता। मुझसे उठा नहीं जाता। धूप में चला नहीं जाता।
यहाँ यह स्पष्ट है कि कर्तृवाच्य में क्रिया सकर्मक और अकर्मक दोनों हो सकती है, किन्तु कर्मवाच्य में केवल सकर्मक और भाववाच्य में अकर्मक होती
[ Thank you! for asking the question. ]
Hope it helps!
Answer:
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Thank you
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